इस हफ्ते कई कविताओं ने मुझे बहुत स्पर्श किया. प्रस्तुत हैं कुछ उद्धरण एवं उन कविताओं तक पहुंचने की कडियां. उम्मीद है कि आप सब लोग इससे सभान्वित होंगे.
मेरी दुकान में हर किस्म के कफ़न मिलते हैं
जिंदा एवं मरे दोनो जिस्म के कफ़न मिलते हैं
यहां गरीबों के भी कफ़न हैं
अमीरों के भी कफ़न है
लेकिन दाम और क्वालिटी में फर्क है [पूरी कविता पढें …]
मुझको काला समझ प्रिये क्यों शादी से इंकार किया
दिल तो काला नहीं हमारा उस पर ज़रा न ध्यान दिया
नहीं हमारे दिल से पूछा बीत रही क्या उस पर है
यह कैसा है न्याय प्रिये क्यों इस पर नहीं विचार किया [पूरी कविता पढें …]
माँ तुमने जब नाम दिया तो तुमको क्या मालूम नही था..?
पीतल की ही धूम यहाँ है, वो होती तो अधिक सही था|
अब तो जो कोई आता है, आँखों में शंका लाता है,
क्या तुम सचमुच ही कंचन हो..? मुझसे प्रश्न किया जाता है| [पूरी कविता पढें …]
इन्हें पता है कि
एक एक कर विदा हो जायेंगी वे
अपने भाइयों के घरों से
जो हिम्मती होंगीं
वे चुन लेंगीं
अपनी पसंद का लड़का
बाकी माँ बाप की मजबूरी और हैसियत
गले में लटकाकर
चल देंगीं भाइयों के घरों से निकलकर
अदेखे चेहरों के पीछे [पूरी कविता पढें …]
तनहाई जब बोल रही हो
मन की राहें खोल रही हो
कौन गुणा करता है मन को
मन से जोड़-जोड़ कर रातें।[पूरी कविता पढें …]
आपका यह प्रयास बहुत लोगों को लाभांवित करेगा।
तहे दिल से इस शानदार प्रयास का स्वागत होना ही
चाहिए…
एक सुझाव है मेरा अगर यही पर आप अपनी समालोचक दृष्टिकोण भी लिख दें तो मुझे लगता है की यह ज्यादा और ज्याद प्रमाणिक काम होगा…क्योंकि यह भी जरुरी है…।धन्यवाद!!!
प्रिय दिव्याभ,
यह एक बहुत अच्छा सुझाव है. जल्दी ही इस दिशा में
काम शुरू हो जायगा
— शास्त्री फिलिप