हर व्यक्ति दर्द से दूर रहना चाहता है, लेकिन मानव हृदय की विशेषता है कि विशेष परिस्थितियों में वह दर्द को एक अनजान अनकहे तरीके से आत्मसात भी कर लेता है. दर्द एक ही समय में उसका शत्रु भी होता है मित्र भी, चुनौती भी देता है सांत्वना भी. गद्य में उस भावना या अनुभव का सटीक वर्णन नहीं हो सकता. उसकी कोई व्याख्या नही हो सकती. उसको तो सिर्फ या तो महसूस किया जा सकता है, या आलंकारिक भाषा में व्यक्त किया जा सकता. रचनाकार ने काव्य विधा में इसे अलंकृत किया है निम्न कविता में.
यदि पहले ही पाठ में यह कविता आपको समझ में आ जाती है तो आपने इस नहीं समझा बन्धु !!!
पार्क मे घूमते देखा
मैने एक लड़की को
आंखो मे पानी था
घूमने का कोई प्रयोजन
भी ना दिख रहा था
पूछा मैंने
” क्या प्यार से धोखा मिला ” ?
कहा उसने
“मुझे प्यार से कुछ भी नहीं मिला
मुझे देने के लिये तो उसके पास धोखा भी नहीं था ”
पूछा मैने
” फिर ये आँसू क्यों ” ?
कहा उसने
” अपना सब कुछ उसे दे दिया ये उसने लिये नहीं ”
कहा मैने
” तो बह जाने दो”
कहा उसने
” इन्हे तो अब मेरी आखो मे ही रहना है
ये बह गये तो उसकी याद भी बह जायगी ”
पूछा मैने
“कितने दिन का साथ था ”
कहा उसने
“सिर्फ सोलह साल ”
कहा मैने
“भूल जाओ ”
पूछा उसने
“किसे,
उसे या तकलीफ को ? “
sir
thank you for brining the pain of my words on your blog .
pain is there in everyone and words dont express pain they reflect it.
and reflection can be of our own pain or the pain we see in others
regds
rachna
रचना जी बहुत अच्छा लिखती है आप…
top rated …..excellant expressions…
सुनीता एवम सनजीव
आप दोनो को धन्यवाद
सुनीता एवम सजीव
आप दोनो को धन्यवाद
ना यादें भूले भुलाई जाती हैं और ना ही ये मन कुछ बातें भुलाना चाहता है…
रचना जी को बहुत धन्यवाद, और सारथी जी को भी धन्यवाद इसे पेश करने के लिए..