River Valley to Silicon Valley: एक समीक्षा: आज बहुत दिनों बाद या यों कहा जाए कि पहली बार किसी पुस्तक की समीक्षा करने का मौका मिला जो मेरे लिए एकदम अलग अनुभव रहा…कई दिनों से यह इच्छा थी कि ऐसा कुछ किया जाए किंतु समयाभाव के कारणत: ऐसा हो नहीं पा रहा था, उसी दौरान ‘अभय जी’ जो रुस में “भारत के राजनयिक” के तौर पर कार्यरत हैं और मेरे अत्यंत करीबी भी खासकर वैचारिक संदर्भ में…ने अपनी स्तरीकृत सफर को शब्दों में ढाल कर “एक पुस्तक” के रुप में पेश किया और जब मैंने इसे पढ़ा तो लगा की इसके संदर्भ में अपने और ‘अभय जी’ के अनुभव को पेश किया जाए…।
BOOK-River Valley to Silicon Valley
Writer-ABHAY KUMAR (Diplomat, MOSCOW)
PUBLISHER-BOOKWELL, INDIA
COVER DESIGN-From the Work Of “Yang Jian Feng”
LANGUAGE-English
हम क्यूँ आज उदासीन है…असफलता को अंत मान लेते हैं…पूर्णविराम समझ लेते हैं; मात्र इसकारण कि जिस लक्ष्य का निर्धारण किया था वह अपनीगलतियों के कारण अधूरा रह गया… Stage Of Preparation की हद सीमित थी। इस पुस्तक में Internal Need को पुष्ट कर External Goal तक पहुंचने का रास्ता है। जैसा की शीर्षक से स्पष्ट है की यह सफर प्राकृतिक सौंदर्य की गोद से आर्थिक गाँव तक का है…आज के युवाओं का सपना भी है सरल संरचना से जटिलतम तक का विकास और यही इस पुस्तक की विशेषता है जो स्वत: ही आज की पीढ़ी को अपने से जोड़ लेती है। बिहार प्रांत के एक गाँव से बिल्कुल सरल व्यक्तित्व का छात्र अपनी वैयक्तिक आकांक्षा या जिज्ञासा को मन में संजोये खुद से उठने का प्रयास पूरी ईमानदारी से संयत हो, उस लक्ष्य को प्राप्त करता है जहाँ से वह दोनों मुकाम को स्पष्टत: देखे और उस ऊँचाई की अभिव्यक्ति को समझ सके। इस पुस्तक में इसी विचारधारा को ध्यान में रखा गया है। वैसे तो निर्मल-चंचल बहाव का अंत शांत सागर की कोख में होता है किंतु बाह्य रुप से देखें तो लगता है की इस बहाव का अंत भौतिकवाद में है, मगर जहाँ तक मैंने इसे समझा है… इसकी धारणा थोड़ी भिन्न है क्योंकि सागर शांत तो है पर किनारों पर वह अत्यंत चंचल होता है, जैसे किसी को हमेशा छू लेना चाह रहा हो, इस रहस्य को ‘अभय जी’ ने अपने जीवन में समझा और तृष्णा को जिज्ञासा से तृप्त किया फिर चक्रिक रुप में स्वयं की अवस्थिति को निर्मल बनाए रखा…।
इस पुस्तक की प्रस्तुति बहुत ही सुंदर है… बहुत ही सामान्य भाषा में लिखा गया जिसे आम लोग भी आसानी से पढ़ पाये। इसमें तीन पीढ़ियों की कहानी है जो अनन्य ढंग से भारत के आर्थिक और वैचारिक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह विशेषता काफी कम पुस्तकों में देखने को मिलती है कि देश के एक गाँव से उठा सामान्य हिन्दी भाषी लड़का अपनी महत्त्वकांक्षा को लिए ” पैमार नदी” से “गंगा” को लांघता हुआ “यमुना” के किनारों तक पहुंचता है और अपने अभियान को ‘मसूरी’ के “लालबहादुर शास्त्री प्रशिक्षण संस्थान” में समाप्त कर इसका मूल्यांकन Silicon valley में करता है। साथ ही पीढियों के मध्य जो एक दूरी बन गई है उसके समानांतर जिसप्रकार का अंतर्द्वंद उभरा है, उसके बीच क्या तालमेल हो सकता है, वह अद्वितीय है…। वर्तमान परिपेक्ष में यह आम है, जबकि एक तरफ हमारी उंगलियाँ कम्प्यूटरों पर दौड़ रही हैं और हमारे दादा अभी-भी वही हैं जहाँ से बहुतों ने जीवन आरंभ किया था, बहुत ही संवेदनशीलता से दोनों की मार्मिक अवस्थिति हो दिखाया गया है…। यह कहानी मेरी नजर में या औरों के लिए सामान्य है पर जिसमें यह अपनी प्रमुखता रखता है वह “ईमानदार व्यक्ति का एक ईमानदार प्रयास है”, लक्ष्य प्राप्ति बिना किसी अहं के; मात्र ज्ञानार्जन को इसका साधन मानता है। कई लोग हैं जो अपनी प्रतिभा तक को ताक पर रखकर सीढ़ियां बनाते हैं और दो क्षण की प्रसिद्धि को सबकुछ मान लेते है…मगर जो संदेश इस पुस्तक का है वह यह कि अगर हृदय में जोश हो तो आसमान पर भी लकीरें खींच सकते है बगैर किसी बनावट के।
लेखक ने कहीं भी उपदेशात्मक तथ्य को समाहित नहीं किया है वरन मात्र व्यवहारिकता को दर्शाया है जो मुझे काफी प्रभावित कर गया।अब वक्त आ गया है जब हम अपनी थोथी नैतिकता से उपर उठकर बाह्य वातावरण को देखे और स्वीकार करने की क्षमता को बढ़ाए जिसे हम नकार रहे हैं। यह पुस्तक मुझे एक अन्य कारण से भी प्रिय है वह है माता-पिता के लिए दिव्य प्रेम, सामान्यत: ‘अद्भुत’…एक ऐसा प्रेम जो आज की पीढ़ी के लिए मात्र ‘कोशिश’ है वह ‘अभय जी’ के लिए ‘पुकार’ बन गई है; ऐसी पवित्रता जो निश्चय ही अतुलनीय है… इसका उद्गार इतना स्वस्फुरीत है कि आप यह स्वत: ही सोचने लगेंगे की दो पीढ़ी जो अलग-अलग स्थलों पर जाकर रुक गई है लेकिन फिर भी एक महीन धागा है जो इसे जोड़ रहा है। हमेशा देखा गया है कि जब हम अपनी जमीन से काफी उठ जाते है तो एक अदृश्य रेखा खींच जाती है मगर यहाँ पर शाश्वत प्रेम ने मेरे हृदय को द्रवित कर दिया चूंकि अभय जी को मैं व्यक्तिगत रुप में जानता हूँ तो मैंने साक्षात रुप में इसे महसूस भी किया है…। आप इसे पढ़े और खासकर वर्तमान पीढ़ी के लिए तो यहाँ बहुत कुछ है लेने को “MUST READ”!!! विशेष के लिए आप यहाँ क्लिक करें।
“विश्वास अगर अदम्य हो तो लक्ष्य राह बन जाता है,
दृष्टि का वह पथ-प्रदर्शक, मंजिल आगे बिछ जाता है”॥
[मुक्त प्रतिलिप्यांतरण के अंतर्गत: River Valley to Silicon Valley: एक समीक्षा]
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: पुस्तक-समीक्षा, सिलिकन-वैली, सारथी-पुनरवलोकन, सारथी,
शास्त्री सर,
मेरी कलम की नादानी को आप ने अपने जाल पर लाकर मेरा अंतर गौरव को बढ़ाया है… आपका शुक्रिया…।