अंतस की आकांक्षाएं

“सच तो ये है कि हम अपने अंतस की आकांक्षाओं से
आगे कुछ-भी नहीं देख पाते; सचमुच…ये निगाहें
ही हमारी पथप्रदर्शक हैं, इन मन की विभूतियों से
आगे न हम कुछ जान पाते हैं और न ही समझ पाते हैं,
जिसने परम अनुभूति की आकृति को अपने अंतस में
स्थान दिया ही न हो वह नास्तिकता के पथ पर चला जाए,
कोई आश्चर्य नहीं. काम-ज्वाला और भौतिक-आवरण ने
इंसान के भीतरी चक्षुओं को इस तरह से कैद कर रखा है
कि स्वतः यह आभास होता है– मेरा दृष्टिकोण ही सत्
और सर्वमान्य है किंतु यह सोंच गलत या सही नहीं है,
अंधकार मात्र इसकारण से है क्योंकि दूसरा मत भी हो
सकता है, इसे नकारते हैं– मन की वास्तविक दुनियाँ को
अगर विस्तार दे सकें तो बाह्य सत्ता अपने-आप बृहत हो
जाएगी.”

[चुनी हुई प्रविष्टियां,  Creative Commons, Divyabh Aryan
http://divine-india.blogspot.com/]

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: काविता, काव्य-विधा, काव्य-अवलोकन, सारथी, शास्त्री-फिलिप, hindi-poem, hindi-poem-analysis, hind-context,

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Author: Super_Admin

2 thoughts on “अंतस की आकांक्षाएं

  1. नमस्कार सर,
    आपने मेरे इस लेख को यहाँ स्थान दिया,इससे इसकी सार्थकता और बढ़ गई…।बहुत-2 धन्यवाद…। काफी व्यस्त होने की बजह से आ नहीं पा रहा था…।

  2. हमेशा की तरह सार पुरन और सोचने के लिये बाध्य करने वाला लखेन

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