अगर हमारे रचित काव्य से, तुमको कुछ आराम मिलेगा
यकीं जानिये इस लेखन को, तब ही कुछ आयाम मिलेगा.
भटकों को जो राह दिखाये, ऐसी इक जब डगर बनेगी
दुर्गति की इस तेज गति को, तब जाकर विराम मिलेगा.
इसी पाठ की अलख जगाने, हमने यह लिख डाला है
पूर्ण सुरक्षित हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
भूख, गरीबी और बीमारी, कैसे सबको पकड़ रही है
हाथ पकड़ कर बेईमानी का, चोर-बजारी अकड़ रही है.
इन सब से जो मुक्त कराये, ऐसी जब कुछ हवा बहेगी
छुड़ा सकेगी भुजपाशों से, जिसमें जनता जकड़ रही है.
इसी आस के भाव जगा कर, गीत नया लिख डाला है
पूर्ण प्रफुल्लित हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
शिक्षित और साक्षर होने में, जो है भेद बता जाती हो
नैतिकता का सबक सिखा कर, जो इंसान बना पाती हो
भेदभाव मिट जाये जिससे, ऐसी एक किताब बनेगी
मानवता की क्या परिभाषा, ये सबको सिखला जाती हो.
ऐसी सुन्दर कृति सजाने, यह छंद नया लिख डाला है
पूर्ण सुशिक्षित हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
मेहनत करने से जो भागे, उनका बिल्कुल नाम नहीं है
डर कर जिनको जनता पूजे , वो कोई भगवान नहीं है
कर्म धर्म है सिखला दे जो, ऐसी अब कुछ बात बनेगी
जात पात में भेद कराना, इन्सानों का काम नहीं है.
धर्म के अंतर्भाव दिखाता, इक मुक्तक लिख डाला है
पूर्ण सु्संस्कृत हो हर इक जन, सपना एक निराला है.
[समीर लाल ‘समीर’ http://udantashtari.blogspot.com/]
हिन्दी चिट्ठाजगत में समीर जी का परिचय देने की आवश्यक्ता नहीं है. हां उनका कहना है कि काव्य विधा में वे पहली बार पैर रख रहें है. ईश्वर करे कि यह कदम कभी भी पीछे न हटें. इस कविता की दो पंक्तियों की तरफ मैं हर शब्दसारथी का ध्यान आकर्षत करना चाहता हूं:
यकीं जानिये इस लेखन को, तब ही कुछ आयाम मिलेगा.
भटकों को जो राह दिखाये, ऐसी इक जब डगर बनेगी
मै उसके साथ अपने चिट्ठाकार मित्रों को याद दिलाना चाहता हूं कि बाजार की ताकतें जब काम करने लगेंगी — हो हिन्दी चिट्ठजगत में चालू हो गया है — तब सिर्फे वे ही चिट्ठे राज करेंगे जहा लोगों को कुछ ठोस मिलेगा — शास्त्री जे सी फिलिप
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बिल्कुल ठीक कहा आपने…कुछ समय बाद एसा ही होने वाला है…हमे बहुत मेहनत करनी पडेगी…
धन्यवाद्
सुनीता
सच कह रहे हैँ सर, आने वाले वक्त की यह पुकार है कि अपने सपनों को नये आयतों में भर कर सार्थक लेखन शैली को पंख दे जो विशाल रहस्यों की विधा को सुलझा सके जहाँ चिंतन चेतना में समाहित हो जड़ता को भी अंकुरित कर दे…।