हँस और सरस्वती के साथ जिस महत्वपूर्ण हिन्दी पत्रिका को विशेष आदर की दृष्टि से देखा / पढा़ जा रहा है उसमें से एक है इन्दौर से श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका वीणा.हिन्दी साहित्य समिति की गतिविधियों से हिन्दी जगत बाख़बर है फ़िर भी यहाँ यह दोहराने में कोई हर्ज नहींझोगा कि महात्मा गाँधी के पावन चरण दो बार(1918 और 1935) इस संस्था के परिसर में पडे़.अस्सी बरस की इस पत्रिका ने कई वित्तीय और प्रकाशकीय उतार चढ़ाव देखे हैं फ़िर भी यह इसका पुण्य और हिन्दी सेवियों की लगन है कि यह नियमित रूप से प्रकाशित होती रही है.वरिष्ठ साहित्यकार डाँ श्यामसुंदर व्यास स्वास्थ्यगत कारणों से इसके संपादक पद से अभी अभी निवृत्त हुए है और डाँ राजेंद्र मिश्र ने यह ज़िम्मेदारी बख़ूबी सम्हाल ली है. उनके साथ पदेन संपादक के रूप में पं.गणेशदत्त ओझा,उप-संपादक के रूप में श्री सूर्यकांत नागर और राकेश शर्मा,प्रबंध संपादक के रूप में प्रो.चन्द्रशेखर पाठक की ऐसी टीम है जो पूरी लगन और निष्ठा से हिन्दी के इस पावन प्रकल्प में अपना सहयोग दे रही है.संपादक डाँ.राजेन्द्र मिश्र ने आते ही अपनी योग्यता को साबित किया है और वीणा को नया कलेवर देकर इसके पन्नों मे जैसे नई रागिनी छेड़ दी है..
अपने ब्लाँग पर ये ख़बर जारी करने का निमित्त ये भी है कि हमारे हिन्दी ब्लाँगर बिरादरी वीणा जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन के बारे में जाने.बडे़ सादा परिवेश में प्रकाशित होने वाली वीणा के पास इस काँर्पोरेट परिदृष्य में ऐसा कोई तामझाम या प्रमोशन कैम्पेन हे नहीं जिससे वह अपने आपको व्यक्त कर सके. ब्लाँग की दुनिया निश्चित रूप से हिन्दी प्रेमियों की एक ताक़त बन कर उभरी है और वीणा के शहर का एक साधारण सा ब्लाँगर होने के नाते मेरा नैतिक कर्तव्य है कि मै और आप ..हम सब वीणा के लिये जो कुछ कर सकते हों करें.
आपसे ये भी गुज़ारिश कर रहा हूं कि मेरी इस प्रविष्टि को बाक़ायदा काँपी कर अपने ब्लाँग पर भी सूचना(और बेझिझक आपकी अपनी प्रविष्टि या सूचना बज़रिये ई-मेल) के रूप में जारी करें.
इसमें हमारे एग्रीगेटर और चर्चाओं में रहने वाले और लोकप्रिय चिट्ठाकार खा़सी मदद कर सकते हैं .
सदस्य बनकर भी सहयोग किया जा सकता है.नीचे इसके बारे में विवरण दे रहा हूँ:
प्रकाशित सामग्री में से कुछ बानगियाँ दे रहा हूं
जुलाई अंक के संपादकीय से एक अंश
(भावभूमि :हाल ही में न्यूयार्क में सम्पन्न हुआ विश्व हिन्दी सम्मेलन)
अगर हिन्दी को आना है तो सबसे पहले उसे स्कूलों में एक शिक्षा माध्यम के रूप में अपनाना होगा नहीं तो विश्व भाषा के लिये किए जाने वाले प्रयास एक तमाशा बन कर रह जाएंगे.हिन्दी विश्व की भाषा बन जाएगी , भारत की भाषा नहीं और जब तक वह भारत की भाषा नहीं बनती,तब तक उसके विश्व भाषा बनने का कोई भी अर्थ नहीं है.जब तक हिन्दी दिल्ली में नही होगी तब तक उसका लंदन या न्यूयार्क में होना प्रासंगिक नहीं है.
– राजेन्द्र मिश्र.
लघुकथा : सनकी
ब्रीफ़केस बंद करता हुआ वह जैसे ही बाहर निकला, अर्दली ने झुककर सलाम किया.
अर्दली को उसने इशारे से बुलाया तथा बीस रूपये का नोट बतौर बख्शीश देते हुए बोला…चाय पानी के लिये.
साहब ये तो बहुत ज़्यादा है…!
उसके ईमानदार चेहरे की ओर उसने मुग्धभाव से देखा तथा बीस का नोट लेकर
बदले में पचास का थमाते हुए गाडी़ स्टार्ट कर दी.
स्टेयरिंग घुमाते हुए वह सोचने लगा…’काश ! अंदर की कुर्सी पर अर्दली जैसा आदमी होता !
और अर्दली सोचने लगा …काश ! ख़ुदा ने हर आदमी को इस जैसा बनाया होता.
-सतीश दुबे
इसी अंक के अन्य ह्स्ताक्षर : गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर,स्वामी वाहिद क़ाज़मी,
डाँ.माधवराव रेगुलपाटी,सूर्यकांत नागर,जवाहर चौधरी,पदमा सिंह.
हिन्दी मासिक पत्रिका : वींणा
संपादक:डाँ राजेन्द्र मिश्र.
मोबाइल: 09302104498
शुल्क :
विदेशों में : 20 डाँलर
वार्षिक मूल्य : रू.150/-
आजीवन : रू.500/-
(ध्यान रहे 7 अगस्त 2007 से यह शुल्क बढाकर रू.1500/- किया जा रहा है)
अपना ड्राफ़्ट ’वीणा मासिक पत्रिका के नाम से भेजें,इन्दौर मे देय)
संपर्क:
श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति
11 रवीन्द्रनाथ टैगोर मार्ग
इन्दौर 452 001 मध्य प्रदेश
दूरभाष: 0731-2516657
(अमूमन संपादकीय टीम शाम 5 बाद उपलब्ध रहती है
कोई ई मेल आई डी नहीं है..कोई संदेश हो तो मेरे ईमेल
पर भेज दें मै उसे पहुँचा दूंगा:sanjaypatel1961@gmail.com
[http://joglikhisanjaypatelki.blogspot.com/2007/07/blog-post_27.html]
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: हिन्दी, हिन्दी-जगत, राजभाषा, विश्लेषण, सारथी, शास्त्री-फिलिप, hindi, hindi-world, Hindi-language,
वीणा का प्रकाशन पिछले अस्सी वर्षों से अनवरत चल रहा है, यह जानकर बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही आगे भी वीणा अपने को नये-नये रूपों में प्रस्तुत कर चिर-यौवना बनी रहे।
सुखद!!
बधाई!!