2 पाठक या 2000 पाठक प्रति दिन ??

हिन्दी चिट्ठा-जगत धीरे धीरे बढ रहा है. पाठकों की संख्या भी बढ रही है. एग्रीगेटर इस बढत में काफी योगदान दे रहे हैं क्योंकि इनके कारण ही नवागंतुक चिट्ठाजगत की व्यापकता से परिचित हो पाते हैं. जल्दी ही वे कुछ चिट्ठों पर पाठ-निशान लगा लेते हैं एवं उनको नियमित रूप से पढते है. इसके साथ साथ वे एग्रीगेटरों को देख कर उन चिट्ठों पर भी चले जाते हैं जिनके विषय उनको आकर्षित करते हैं. इस तरह हरेक हिन्दी चिट्ठे को प्रति दिन 1 से लेकर 200 पाठक मिल जाते हैं. मेरा अनुमान है कि इन दो माध्यमों द्वारा (पाठ चिन्ह एवं हिन्दी एग्रीगेटरों द्वारा)  200 से अधिक दैनिक पाठक शायद किसी भी हिन्दी चिट्ठे को नहीं मिलता है.

200 पाठक आकर्षित करने वाले 10 चिट्ठे भी नहीं है, मेरे हिसाब से. अधिकतर चिट्ठों को 5 से 50 पाठक मिलते हैं, जिन में से कम से कम आधे पाठक (साथी चिट्ठाकार)  बार बार आते है, एवं सिर्फ आधे ही नये है. यह कोई स्वस्थ स्थिति नहीं है. लेखक लोग जितना समय एवं धन (इंटरनेट के लिये) निवेश कर रहे हैं इसे उसका उत्साहजनक परिणाम नहीं कहा जा सकता है. यदि यह स्थिति बदलनी है तो हिन्दी चिट्ठाकारों को अपनी सोच बदलनी पडेगी. जिस तरह कल तक ठेले पर जो सब्जी बेची जा रही है, उसे आज रिलायेन्स वाले सुपरमार्केट में बेच रहे हैं उसी तरह चिट्ठाकारों को यहां भी सोचना होगा.

ठेलों पर अभी भी सब्जी बिकती है, एवं वह जरूरी है. लेकिन एक दिन में 1000 ठेले लायक सब्जी इन सुपरमार्केटों मे ठेले से भी सस्ती बिक जाती है. फरक है सोच का, तरीके का, प्रस्तुति का, ग्राहक के मन को समझने का. यदि हिन्दी चिट्ठाकर आज अपने सोच को नहीं बदलते तो कल जब उनके ही साथी 2000 पाठक प्रति दिन आकर्षित करेंगे, उनको तब भी 20 पाठक प्रति दिन से संतोष करना होगा. अगले दो तीन लेखों में इस विषय के कई पहलू देखेंगे, खास कर यह कि पाठक कैसे जुटाये जायें.

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Author: Super_Admin

10 thoughts on “2 पाठक या 2000 पाठक प्रति दिन ??

  1. शास्त्री जी, आपका कहना सही है, चिट्ठाकारों के चिट्ठे के विषय चुनने मे ज्यादा ध्यान देना चाहिए। उससे भी बड़ी बात है, पाठकों को आकर्षित करने के साथ साथ उन्हे बाँध कर रखना। हो सकता है आप एक अपने शीर्षक से एक बार किसी अपने चिट्ठे पर खींच सके, लेकिन बार बार काठ की हांडी नही चढती।

    मै आपसे इस बात से सहमत नही हूँ कि हिन्दी के किसी भी चिट्ठे को २००/प्रतिदिन से ज्यादा पाठक नही मिलते। कुछ चिट्ठे है, जिनका आंकड़ा इससे भी ज्यादा है। एक बात और, अब सिर्फ़ ब्लॉगर ही चिट्ठा नही पढते, कई अन्य लोग भी पढते है। इसका नमूना यदि आपने देखना हो तो अपने हिटकाउन्टर की रिपोर्ट का अध्ययन करें, कि लोग कहाँ कहाँ से और कब कब आ रहे है।

  2. २००० पाठक सोच ही नही सकते है। हम तो उनमे है जो थोड़े मे ही खुश है।

  3. Bhai sare bloggers koyi lekhak to nahin. mukhya baat hai ki unhein likhne ki iksha hai aur wo isiliye is madhyam ka prayog kar rahe hain. is baat mein koyi sandeh nahin ki apne content ko pathakon ke upyogi banane ki koshish humein humesha karni chahiye. Par TRP ki chinta mein jis mool uddeshya se hum blog jagat mein aaye hain ye bhoolna nahin chahiye. Wo 2000 ke aankdon ko prapta karne se kahin jyada mahatwapoorna hai.

    Apne Roman Blog mein aane wale (pichle mahine us par 6200 hits huyin thi) logon ke pahuchne ke tareekon ke vishleshan se ye clear tha ki jyada log angreji mein 80% search kar ke wahan pahunchte hai. Hindi ke blog par khoj kar pahuchne walon ki sankhya abhi bhi apekshakrit kam hai…par jaise jaise hum apne apne content ka hissa badhate jayeenge ye sankhya badhegi.

    Par aakhir mein yahi chahoonga ki hits, referred links ye sab apni jagah par hain par apne man ko anterjaal ke panon par apni terah se apne aks ke sath vyakta karna sabse mahatwapoorna hai.

  4. @प्रमेन्‍द्र

    आप ने शायद मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया. मैं ने कहा था कि: “कि इन दो माध्यमों द्वारा (पाठ चिन्ह एवं हिन्दी एग्रीगेटरों द्वारा) 200 से अधिक दैनिक पाठक शायद किसी भी हिन्दी चिट्ठे को नहीं मिलता है.”

    सभी माध्यमों से मिलने वाले सारे पाठकों की बात नहीं हो रही है.

  5. बहुत बढिया लिखा आपने . लिखते है तो लोग चाहते भी है कि कोई उनहे पढे. वरना जंगल में मोर नाचा किसने देखा. आप बताते रहिए. हम आपके रास्ते पर चलने की कोशिश करेंगे.

  6. मेरे विचार में इसके कई कारण हैं।
    पहला कारण यह भी है कि बहुत लोग हिन्दी के चिट्ठों के बजाय अंग्रेजी के चिट्ठे पढ़ते हैं यह इसलिये भी है कि हिन्दी चिट्ठाकारी अभी उतनी लोकप्रिय नहीं हुई है।
    हमको विषयों का भी ठीक चयन करना होगा और चिट्ठियों का स्तर भी ऊंचा करना होगा।

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