[इन दिनों चिट्ठो के बारे में मैं जो लिख रहा हूं उसकी प्रेरणा रवि रतलामी के विश्व के शीर्ष चिट्ठाकार क्या और कैसे चिट्ठे लिखते हैं…. पढने से मुझे मिली है, एवं मैं उसे यहां पर रेखांकित करना चाहता हूं] जैसा मैं ने पिछले लेख में कहा था, अधिकतर हिन्दी चिट्ठे (80% के आसापास) को एक दिन में 5 से 50 पाठक मिलते हैं. लेकिन उनको इससे अधिक पाठक मिल सकते हैं, बशर्ते वे जमीनी सच्चईयां समझ लें. हां यदि आप को लगता है कि आपक चिट्ठा तो सिर्फ आपके मन की भावनाओं को व्यक्त करने का एक स्वांत: सुखाय जरिया मात्र है तो यह लेख आप के लिये नहीं है. लेकिन चिट्ठाजगत में कम से कम 20% चिट्ठाकार अपने मन की भावनाओं को जन जन तक जरूर पहुंचाना चाहते हैं. इसके बारे में ठहाका के बसंत आर्य ने मेरे लेख निम्न टिप्पणी की थी:
लिखते है तो लोग चाहते भी है कि कोई उनहे पढे.
वरना जंगल में मोर नाचा किसने देखा. आप बताते
रहिए. हम आपके रास्ते पर चलने की कोशिश करेंगे.
पाठकों के एक बहुत बडे समूह को अपने चिट्ठे पर लाने के लिये हर चिट्ठाकर को निम्न बातें समझे लेनी चाहिए:
1. लोगों का समय बेशकीमती है, अत: नियमित रूप से लोग किसी चिट्ठे पर तभी आयेंगे जब उनको उनके द्वारा निवेश किये गये समय का परपूर फायदा मिलेगा.
2. हर नया चिट्ठाकर कुछ दिन तक हर संभावित चिट्ठा पढता है, लेकिन कोई भी चिट्ठाकर अधिक समय तक यह नहीं कर सकता. इसका मतलब यह है कि कोई भी चिट्ठा इन नये नवेलों के पठन पर अधिक समय तक निर्भर नहीं रह सकता.
3. चिट्ठा मुख्यतया एक दोतरफा आदान प्रदान है (चिट्ठा एवं टिप्पणी). यह आदान प्रदान तभी होगा जब उस चिट्ठे को एक निश्चित संख्या में स्थाई पाठक मिले. एक व्यापरिक प्रतिष्ठान के समान यह तभी हो सकता है जब एक निश्चित संख्या में स्थाई ग्राहक हो.
5. जब बहुत सारे चिट्ठे एक ही प्रकार की सामग्री देने लगेंगे, तब लोग किसी विषय पर उसी चिट्ठे पर जायेंगे जहां आधिकारिक, आकर्षक, एवं स्पष्ट प्रस्तुति हो.
अगले लेखों में इस विषय के कई और पहलू देखेंगे — शास्त्री जे सी फिलिप
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अब लेख हमारे लिया था या नही ये तो पता नही पर हमने पढ़ लिया है और आगे भी पढेंगे।
शुक्रिया, प्रतीक्षा रहेगी अगली किश्तों की
अच्छा लगा, जारी रहें. इन्तजार है आगे.
रविजी के ‘गुर’ का अच्छा फॉलो-अप है । नये ब्लागियों को रास्ता भी नजर आएगा और मदद भी मिलेगी ।
आपके अगले लेख की प्रतीक्षा है ।