विद्यालयों में यौन शिक्षा देने के पक्ष में बहुत लोग आजकल तर्क रख रहे हैं. लेकिन वे यह नजरंदाज कर रहे है कि जिन देशों में दशाब्दियों से यौन शिक्षा दी जा रही है वहां इसका क्या परिणाम हुआ. हम सब एक वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं. यहां कोई भी व्यक्ति एक प्रस्ताव या सिद्धांत पेश कर सकता है. लेकिन वह सिद्दांत तभी सही समझा जायगा जब परीक्षण की कसौटी पर वह सिद्ध हो जाये. यदि कोई प्रस्ताव परीक्षण में गलत निकलता है तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण की मांग है कि उस प्रस्ताव को एकदम त्याग दिया जाए.
यौन शिक्षा की अवधारणा 1912 में संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली बार औपचारिक रूप से रखी गई थी, लेकिन ईसाई समुदाय के घोर विरोध के कारण इसे सरकार ने स्वीकार नहीं किया. बढते हुए यौन रोगों के कारण अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग ने 1940 मे पुन: यह मांग दुहराई, लेकिन परिणाम कुछ नहीं हुआ. अंतत: 1953 में अमेरिकन स्वास्थ्य विभाग ने एवं स्कूली शिक्षा के कुछ परिवर्तनवादियों ने 5 लघु पुस्तिकाओं की सहायता से वहां दुनियां की पहली औपचारिक शालेय यौनशिक्षा शुरू की. इससे प्रेरणा लेकर जल्दी ही लगभग सभी विकसित पश्चिमी राज्यों ने यौन शिक्षा को स्कूली पठन का अनिवार्य अंग बना दिया.
विद्यालयों में यौन शिक्षा देने के पीछे मुख्य तर्क यह था कि इससे जवानों में कुंठा कम होगी, मुक्त यौनाचार कम होगा, यौन अपराध कम होंगे, यौन रोग कम होंगे, एवं विवाहित जीवन में सफलता का प्रतिशत बढेगा. किसी भी परीक्षण के लिये 50 साल कम नहीं होते, खास कर जब यह परीक्षण कम से कम 25 राज्यों में किया जा रहा हो. पचास साल के प्रयोग का परिणाम क्या है? हम अमेरिका का ही उदाहरण ले लें. वहां देखते हैं
1. विद्यालयों मे यौनशिक्षा प्राप्त करने के बाद आपसी यौनाचार हर साल बढता जा रहा है, एवं 12 से 15 साल की लडकियां धडल्ले से ऐसी संतानों को जन्म दे रही है जिनके बाप का कोई पता नहीं है क्योंकि ऐसी अधिकतर लडकियों के एक से अधिक लडकों से यौन संबंध है.
2. मुक्त यौनाचार का प्रतिशत हर साल बढता जा रहा है.
3. ताज्जुब की बात यह है कि मुक्त यौनाचार के बढने के बावजूद लोगों की भडकी हुई यौनेच्छायें तृप्त नहीं हो रही है, एवं इस कारण उस देश में वेश्यावृत्ति, बलात्कार एवं लडकियों का अपहरण बढ रहा है.
4. यौन रोगियों की संख्या आसमान छू रही है. स्वास्थ्य विभाग हैरान है.
5. यौन अपराध तेजी से बढ रहे है
यदि अमेरिका एवं यूरोप में पचास साल की शालेय यौन शिक्षा की उपलब्धि यह है, तो सवाल यह है कि हिन्दुस्तान को इसकी क्या जरूरत है. हिन्दुस्तान में यौन अपराधियों की एवं यौन रोगों की कमी है क्या जो हमें पाश्चात्य यौन शिक्षा के सहारे इनका आयात भी करना पडे.
शालेय यौन-शिक्षा पूरी तरह से असफल एक पश्चिमी अवधारणा है जिसने पश्चिम को बर्बाद कर दिया है अत: इसकी जरूरत हिन्दुस्तान को नहीं है — शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: विश्लेषण, आलोचना, सहीगलत, निरीक्षण, परीक्षण, सत्य-असत्य, विमर्श, हिन्दी, हिन्दुस्तान, भारत, शास्त्री, शास्त्री-फिलिप, सारथी, वीडियो, मुफ्त-वीडियो, ऑडियो, मुफ्त-आडियो, हिन्दी-पॉडकास्ट, पाडकास्ट, analysis, critique, assessment, evaluation, morality, right-wrong, ethics, hindi, india, free, hindi-video, hindi-audio, hindi-podcast, podcast, Shastri, Shastri-Philip, JC-Philip,
कुछ लोग बहस चला रहे हैं कि अगर हिन्दुस्तान अमेरिका बन जाए तो क्या होगा. यह लेख उस अनुगूंज में शामिल होना चाहिए.
बहुत बढ़िया लेख.
शास्त्री जी
आप के द्वारा कही गई बाते विचारणीय हैं। लेकिन यदि आप साथ में कुछ आंकड़े भी जोड़ते तो बात ज्यादा गहरी होता। ऐसे आंकड़ों के लिए आप नेशन-मास्टर सजाल का प्रयोग कर सकते हैं
http://www.nationmaster.com
उपरोक्त सारी बाते क्या यौन शिक्षा का ही परिणाम है? या अन्य बदलावों के चलते यह सब हो रहा है? क्या इस पर भी शोध नहीं होना चाहिए. आखिर यौन शिक्षा का मतलब व्यक्ति को यौन सम्बन्धी शिक्षा देना हिअ न की व्याभिचार सिखाना.
@संजय बेंगाणी
जी हां यकीन मानिये पाश्चात्य राज्यों में यही मतलब है !!
शास्त्री जी आप गलत नहीं कहते पर फिर भी मैं कहना चाहूंगा कि सांख्यिकी का पहला सिद्धान्त है There are lies, damned lies and statistics. इसका कारण है।
आप सांख्यिकी को जिस तरह से चाहें चाहे प्रयोग कर सकते हैं और वह विश्वसनीय लगता है। सांख्यिकी का प्रयोग सही है या गलत – केवल विशेषज्ञ ही बता सकते हैं। मान लीजिये मैं कहूं कि ‘क’ टूथपेस्ट अच्छा है क्योंकि इससे मंजन करने वालों में ९०% लोगों के दांत अच्छे रहते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि यह अच्छा टूथपेस्ट क्योंकि हो सकता है इससे न मंजन करने वालों में से ९५% के दांत अच्छे रहते हों। यदि ऐसा है तो यह खराब टूथपेस्ट हो जायगा।
सोचिये यदि पाश्चात्य देशों में यौन शिक्षा न हुई होती तो क्या हाल होता। यदि तब हाल अच्छे होते तब ही आपकी बात ठीक लगती है अन्यथा नहीं।
अपने देश में जिस तरह के टीवी प्रोग्राम आते हैं जिस तरह की खबरे आती हैं, जिस तरह अंतरजाल पर सब उपलब्ध है उसे देख कर तो मुझे लगता है कि यौन शिक्षा होनी चाहिये।
इस बारे में मैंने अपने तथा अपने परिवार के व्यक्तिगत अनुभव भी यहां और यहां लिखे हैं। मैं चाहूंगा इनको भी आप देखें फिर राय कायम करें।
ऐसे यह यौन शिक्षा पर व्यापक बहस जरूरी है।
शास्त्री जी, एक विचारपरक लेख के लिये धन्यवाद. पर मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि पाश्चात्य देशों की बहुत सी सामाजिक समस्यायें यौन शिक्षा के कारण उत्पन्न हुई हैं. विश्व के एड्स मानचित्र ( http://en.wikipedia.org/wiki/Image:HIV_Epidem.png ) को देखकर तो यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि अफ़्रीकी देशों में यौन शिक्षा के अभाव में यह भयावह स्थिति है!
पाश्चात्य देशों में यौन शिक्षा के कारण कम से कम इतना तो अच्छा हुआ है कि वहां विश्वविद्यालयों में जाने वाले छात्र-छात्रायें इतने जागरूक हुए हैं कि अपने पर्स में कण्डोम साथ लेकर चलते हैं! यदि उन्हें यौन शिक्षा न दी गयी होती और वहां का बाकी रहन-सहन, संस्कृति वैसी ही होती जैसी अब है तो और भी भयानक स्थिति होती.
Aug
3यौन शिक्षा — पाश्चात्य राज्यों का अनुभव क्या कहता है ??
August 3, 2007 |
विद्यालयों में यौन शिक्षा देने के पक्ष में बहुत लोग आजकल तर्क रख रहे हैं. लेकिन वे यह नजरंदाज कर रहे है कि जिन देशों में दशाब्दियों से यौन शिक्षा दी जा रही है वहां इसका क्या परिणाम हुआ. हम सब एक वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं. यहां कोई भी व्यक्ति एक प्रस्ताव या सिद्धांत पेश कर सकता है. लेकिन वह सिद्दांत तभी सही समझा जायगा जब परीक्षण की कसौटी पर वह सिद्ध हो जाये. यदि कोई प्रस्ताव परीक्षण में गलत निकलता है तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण की मांग है कि उस प्रस्ताव को एकदम त्याग दिया जाए.
यौन शिक्षा की अवधारणा 1912 में संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली बार औपचारिक रूप से रखी गई थी, लेकिन ईसाई समुदाय के घोर विरोध के कारण इसे सरकार ने स्वीकार नहीं किया. बढते हुए यौन रोगों के कारण अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग ने 1940 मे पुन: यह मांग दुहराई, लेकिन परिणाम कुछ नहीं हुआ. अंतत: 1953 में अमेरिकन स्वास्थ्य विभाग ने एवं स्कूली शिक्षा के कुछ परिवर्तनवादियों ने 5 लघु पुस्तिकाओं की सहायता से वहां दुनियां की पहली औपचारिक शालेय यौनशिक्षा शुरू की. इससे प्रेरणा लेकर जल्दी ही लगभग सभी विकसित पश्चिमी राज्यों ने यौन शिक्षा को स्कूली पठन का अनिवार्य अंग बना दिया.
विद्यालयों में यौन शिक्षा देने के पीछे मुख्य तर्क यह था कि इससे जवानों में कुंठा कम होगी, मुक्त यौनाचार कम होगा, यौन अपराध कम होंगे, यौन रोग कम होंगे, एवं विवाहित जीवन में सफलता का प्रतिशत बढेगा. किसी भी परीक्षण के लिये 50 साल कम नहीं होते, खास कर जब यह परीक्षण कम से कम 25 राज्यों में किया जा रहा हो. पचास साल के प्रयोग का परिणाम क्या है? हम अमेरिका का ही उदाहरण ले लें. वहां देखते हैं
1. विद्यालयों मे यौनशिक्षा प्राप्त करने के बाद आपसी यौनाचार हर साल बढता जा रहा है, एवं 12 से 15 साल की लडकियां धडल्ले से ऐसी संतानों को जन्म दे रही है जिनके बाप का कोई पता नहीं है क्योंकि ऐसी अधिकतर लडकियों के एक से अधिक लडकों से यौन संबंध है.
2. मुक्त यौनाचार का प्रतिशत हर साल बढता जा रहा है.
3. ताज्जुब की बात यह है कि मुक्त यौनाचार के बढने के बावजूद लोगों की भडकी हुई यौनेच्छायें तृप्त नहीं हो रही है, एवं इस कारण उस देश में वेश्यावृत्ति, बलात्कार एवं लडकियों का अपहरण बढ रहा है.
4. यौन रोगियों की संख्या आसमान छू रही है. स्वास्थ्य विभाग हैरान है.
5. यौन अपराध तेजी से बढ रहे है
यदि अमेरिका एवं यूरोप में पचास साल की शालेय यौन शिक्षा की उपलब्धि यह है, तो सवाल यह है कि हिन्दुस्तान को इसकी क्या जरूरत है. हिन्दुस्तान में यौन अपराधियों की एवं यौन रोगों की कमी है क्या जो हमें पाश्चात्य यौन शिक्षा के सहारे इनका आयात भी करना पडे.
शालेय यौन-शिक्षा पूरी तरह से असफल एक पश्चिमी अवधारणा है जिसने पश्चिम को बर्बाद कर दिया है अत: इसकी जरूरत हिन्दुस्तान को नहीं है – शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: विश्लेषण, आलोचना, सहीगलत, निरीक्षण, परीक्षण, सत्य-असत्य, विमर्श, हिन्दी, हिन्दुस्तान, भारत, शास्त्री, शास्त्री-फिलिप, सारथी, वीडियो, मुफ्त-वीडियो, ऑडियो, मुफ्त-आडियो, हिन्दी-पॉडकास्ट, पाडकास्ट, analysis, critique, assessment, evaluation, morality, right-wrong, ethics, hindi, india, free, hindi-video, hindi-audio, hindi-podcast, podcast, Shastri, Shastri-Philip, JC-Philip,
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6 Comments so far
संजय तिवारी on August 4, 2007 12:18 am कुछ लोग बहस चला रहे हैं कि अगर हिन्दुस्तान अमेरिका बन जाए तो क्या होगा. यह लेख उस अनुगूंज में शामिल होना चाहिए.
बहुत बढ़िया लेख.
पंकज नरुला on August 4, 2007 12:52 am शास्त्री जी
आप के द्वारा कही गई बाते विचारणीय हैं। लेकिन यदि आप साथ में कुछ आंकड़े भी जोड़ते तो बात ज्यादा गहरी होता। ऐसे आंकड़ों के लिए आप नेशन-मास्टर सजाल का प्रयोग कर सकते हैं
http://www.nationmaster.com
संजय बेंगाणी on August 4, 2007 4:24 am उपरोक्त सारी बाते क्या यौन शिक्षा का ही परिणाम है? या अन्य बदलावों के चलते यह सब हो रहा है? क्या इस पर भी शोध नहीं होना चाहिए. आखिर यौन शिक्षा का मतलब व्यक्ति को यौन सम्बन्धी शिक्षा देना हिअ न की व्याभिचार सिखाना.
Shastri JC Philip on August 4, 2007 5:10 am @संजय बेंगाणी
जी हां यकीन मानिये पाश्चात्य राज्यों में यही मतलब है !!
उन्मुक्त on August 4, 2007 5:35 am शास्त्री जी आप गलत नहीं कहते पर फिर भी मैं कहना चाहूंगा कि सांख्यिकी का पहला सिद्धान्त है There are lies, damned lies and statistics. इसका कारण है।
आप सांख्यिकी को जिस तरह से चाहें चाहे प्रयोग कर सकते हैं और वह विश्वसनीय लगता है। सांख्यिकी का प्रयोग सही है या गलत – केवल विशेषज्ञ ही बता सकते हैं। मान लीजिये मैं कहूं कि ‘क’ टूथपेस्ट अच्छा है क्योंकि इससे मंजन करने वालों में ९०% लोगों के दांत अच्छे रहते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि यह अच्छा टूथपेस्ट क्योंकि हो सकता है इससे न मंजन करने वालों में से ९५% के दांत अच्छे रहते हों। यदि ऐसा है तो यह खराब टूथपेस्ट हो जायगा।
सोचिये यदि पाश्चात्य देशों में यौन शिक्षा न हुई होती तो क्या हाल होता। यदि तब हाल अच्छे होते तब ही आपकी बात ठीक लगती है अन्यथा नहीं।
अपने देश में जिस तरह के टीवी प्रोग्राम आते हैं जिस तरह की खबरे आती हैं, जिस तरह अंतरजाल पर सब उपलब्ध है उसे देख कर तो मुझे लगता है कि यौन शिक्षा होनी चाहिये।
इस बारे में मैंने अपने तथा अपने परिवार के व्यक्तिगत अनुभव भी यहां और यहां लिखे हैं। मैं चाहूंगा इनको भी आप देखें फिर राय कायम करें।
ऐसे यह यौन शिक्षा पर व्यापक बहस जरूरी है।
अमित on August 4, 2007 12:44 pm शास्त्री जी, एक विचारपरक लेख के लिये धन्यवाद. पर मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि पाश्चात्य देशों की बहुत सी सामाजिक समस्यायें यौन शिक्षा के कारण उत्पन्न हुई हैं. विश्व के एड्स मानचित्र ( http://en.wikipedia.org/wiki/Image:HIV_Epidem.png ) को देखकर तो यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि अफ़्रीकी देशों में यौन शिक्षा के अभाव में यह भयावह स्थिति है!
पाश्चात्य देशों में यौन शिक्षा के कारण कम से कम इतना तो अच्छा हुआ है कि वहां विश्वविद्यालयों में जाने वाले छात्र-छात्रायें इतने जागरूक हुए हैं कि अपने पर्स में कण्डोम साथ लेकर चलते हैं! यदि उन्हें यौन शिक्षा न दी गयी होती और वहां का बाकी रहन-सहन, संस्कृति वैसी ही होती जैसी अब है तो और भी भयानक स्थिति होती.