मेरे बचपन में मैं ने बहुत से भगोडे कैदी देखे हैं जिनके दो पैरों में भारी कडे डाल कर दो स्टील के डंडों से वह एक और कडे से जोड दिया जाता था. कैदी को यह तीसरा कडा हाथ मे लेकर संघर्ष करके चलना पडता था क्योंकि इस यंत्र का लक्ष्य ही यह था कि वह भाग न सके. आजकल कानून काफी मानवतावादी हो गया है, अत: सालों से मैं ने यह उपकरण नहीं देखा है.
आजकल कैदियों एवं अपराधियों के प्रति मानवतावादी व्यवहार करने की वकालात सबसे अधिक हो रही है संयुक्त राज्य अमेरिका में. लेकिन मजे की बात यह है कि उस देश में यौन अपराध इस कदर बढ गये हैं कि कई यौन अपराधियों को एक विशेष प्रकार की इलेक्ट्रानैक हथकडी या पैरकडी पहननी पडती है. इन में से दो के चित्र नीचे देखें:
[http://www.ocregister.com/newsimages/news/2005/06/23gps.jpg]
इसकी विशेषता यह है कि वह अपराधी अमरीका में कहां है इसका पता सरकार को पता रहता है. +/- 5 फुट सूक्ष्मता से यह कडी उस व्यक्ति की भोगोलीय स्थिति सरकार को बताती रहती है. इसका मतलब है कि उसके घर के अंदर भी उस की स्थिति सरकार को मालूम रहती है कि वह संडास में है या कारपोर्च में.
[http://images.usatoday.com/tech/_photos/2006/06/07/tracker.jpg]
जो लोग हिन्दुस्तान में बडे जोर शोर से स्कूली यौन शिक्षा की वकालात करते हैं उनको यह जान लेना चाहिये कि यौन शिक्षा के उद्भवस्थान अमेरिका में 50 साल की यौन शिक्षा से निम्न फायदे हुए हैं:
1. 500,000 ले ऊपर सजायाफ्ता यौन अपराधी
2. जिसका मतलब है कि 30 करोड की जनसंख्या में कम से कम पचास लाख यौन अपराधी है (इस आधार पर कि 10 मे से सिर्फ एक को सजा मिलती है)
3. बलात्कार का प्रतिशत: हिन्दुस्तान से 30 गुना अधिक (http://www.nationmaster.com/graph/cri_rap_percap-crime-rapes-per-capita)
4. बलात्कार के पीडितों की संख्या दुनियां के जिन 15 देशों में सबसे अधिक है, उन में 14 में शालेय यौन शिक्षा दी जाती है (http://www.nationmaster.com/graph/cri_rap_vic-crime-rape-victims)
अब सवाल यह है कि यदि पचास साल की यौन शिक्षा एवं हर तरह की यौनिक आजादी के बाद स्थिति यह है कि यौन अपराधों की अनियंत्रित बढत के कारण लोगों पर इलेक्ट्रानिक कडे डालना पड रहा है तो यह स्पष्ट है कि शालेय यौनशिक्षा लोगों को मानव बनाने के बदले उनकी पाश्विक वृत्तियों को भडका रही है. क्या हिन्दुस्तान को इस तरह की शालेय यौनशिक्षा की जरूरत है — शास्त्री जे सी फिलिप
पुनश्च: आंकडों से संबंधित एक जालस्थल की तरफ मेरा ध्यान आकर्षित करने के लिये पंकज नरूला का अभार. उनका बहु उपहोगी चिट्ठा आप यहां: मिर्ची सेठ देख सकते हैं.
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आपने जो सवाल उठाए वो बिल्कुल सही हैं। बिना सोचे समझे अमरीका की तर्ज पर भारत में यौन शिक्षा लागू करना मूर्खता है। हमें विज्ञान में Reproduction का अध्याय पढ़ाने में पसीना आ जाता है, बच्चे उससे जागरुक कम होते हैं, मजे ज्यादा लेते हैं। अगर कल को यौन शिक्षा पढ़ानी पढ़े तो हमारा भगवान ही मालिक है।
बहुत ही सारगर्भित लेख है….भारत में यौन शिक्षा स्कूलों मे देने से समस्याएं बढ़ सकती हैं लेकिन यह भी संभव है कि अज्ञानता के कारण जो भटक जाते थे शायद कुछ कमी आये …समस्याएं तो आएंगी ही चाहे हम जो भी करें….जरूरत है सही सोच और समझ की,जो हमारी संस्कृति के अनुरूप हो।
बहुत गंभीर चर्चा की अपेक्षा रखता है यह विषय….फिर कभी….प्रयास सराहनीय है।