एक ओर सारी दुनियां में आजादी की लहर फैल रही है तो दूसरी ओर सेन्सरशिप की कोशिश भी बढ रही है. चीन ने जिस तरह से गूगल को नकेल पहना दिया है वह इसका सबसे अच्छा उदाहरण है. आज सुबह ईपत्र में एक लेख मिला कि अब कई देश इस तरह की तय्यारी कर रहे हैं. यह एक खतरे की घंटी है. अंतर्जाल का मतलब ही “जानकारी” का खुला आदान प्रदान है. जहां भी सामान्य जानकारी पर हथकडी लगाने की मांग की जाती है, या कोशिश होती है, वहां अंतर्जाल की आत्मा मर जाती है.
देवयोग से हिन्दी जालजगत अभी सिर्फ एक बालक है जो अभी तक इस तरह की बातों से प्रभावित नहीं हुआ है. लेकिन अंतर्जाल पर कोई भी समूह एक अलग थलग द्वीप के समान नहीं है, बल्कि हर भाषाई समूह दूसरे समूहों से काफी जटिल तरीके से जुडा हुआ है. फलस्वरूप हो सकता है कि कल यह मांग उठे कि हिन्दी जाल जगत में भी सेन्सरशिप लागू किया जाये. जाल जगत में कुछ भी पूरी तरह से असंभव नहीं है. अत: इस बाल्यकाल में ही हमें कुछ बाते सोच लेनी चाहिये.
1. हम हिन्दी चिट्ठाकार हमेशा जालसंस्कृति का समर्थन करें जो अश्लील साहित्य एवं अपराध को छोड कर हर विषय में जानकारी के मुक्त आदानप्रदान का समर्थन करता है. पाठक पर छोड दिया जाये कि वे यह तय करें कि उनको इस जानकारी के समुद्र से क्या चाहिये एवं क्या नहीं चाहिये.
2. भाषा, धर्म, राजनीतिक झुकाव, आदि के आधार पर यदि किसी भी खोज यंत्र पर किसी भी तरह की सेन्सरशिप का सुझाव भी आये तो हम सब मिल कर उसका विरोध करें.
3. खोज यंत्रों के ही अन्य एक रूप अर्थात सामूहिक एग्रीगेटरों पर किसी भी तरह की बंदिश लगाने के बारे में कोई सुझाये या सोचे तो तो सब मिलकर उसका विरोध करें.
जानकारी का मुक्त आदान प्रदान जालजगत की आत्मा है. अश्लील साहित्य एवं अपराध को छोड कर किसी भी तरह की जानकारी को जांचने, उसकी गुणवत्ता को नापने या तय करने, या किसी भी प्रकार का प्रतिबंध लगाने का अधिकार किसी भी सर्च इंजन या किसी भी एग्रीगेटर को नहीं है. कल आप ब्लॉगर या वर्डप्रैस पर जाएँ और वहाँ लिखा हो: एक लेख लिखये, हम उसे जाँचेंगे अगर आप अच्छा लिखते हैं तो आप खाता खोल सकते हैं. या गूगल व याहू खोज में आपकी साईट डालने से पहले उसके विषयवस्तु की जांच की जाए तो वह जालजगत की आत्मा के साथ हिंसा होगी. यही बात टेक्नोरेटी जैसे एग्रीगेटरों पर भी लागू होती है.
हिन्दी जालजगत को डीमोज (Dmoz.org) बिना किसी प्रतिबंध के सूची में जोड रहा है. चिट्ठों की बात करें तो अभी सिर्फ चार बडे चिट्ठे हैं: नारद, हिन्दीब्लोग्स, चिट्ठाजगत एवं ब्लोगवाणी. इन में से किसी ने भी अपनी नीति स्पष्ट नहीं की है, लेकिन इन पर दिखने वाले चिट्ठों की संख्या एवं लेखों से ऐसा अनुमान है कि चिट्ठाजगत हरेक तरह के चिट्ठे को शामिल कर लेता है एवं किसी तरह की जांच नहीं होती है. निरीक्षणों के आधार पर मेरा अनुमान है कि नारद भी शायद यही विशाल दृष्टि रखता है. हिन्दीब्लोग्स, एवं ब्लोगवाणी की नीति अभी स्पष्ट नहीं हुई है. इन दोनों पर उतने चिट्ठे नहीं दिखते जितने अन्य दो पर दिखते हैं, लेकिन मुझे उम्मीद है कि वे भी जालजगत की मुक्त आत्मा के अनुसार ही काम करेंगे न कि व्यक्तिगत चिट्ठों की आत्मा के अनुसार. इन के अलावा कुछ छोटे एवं व्यक्तिगत एग्रिगेटर हैं, लेकिन चूकि ये व्यक्तिगत कार्य हैं अत: वे इस लेख की परिधि में नहीं आते हैं. व्यक्तिगत का मतलब है कि उस में प्रतिबंध होंगे.
लगे हाथ एक सुझाव भी दे दूं. हिन्दी जालगत अभी बाल्यावस्था में है. Dmoz.org का हिन्दी विभाग अपनी नीति तय कर चुका है एवं वह जालजगत के अनुरूप मुक्त है. मैं Dmoz के संपादकों में से एक हूं अत: मुझे आधिकारिक जानकारी है. बाकी हिन्दी यंत्रों के लिये इस विषय में नीतियां तय करने एवं जनता की नजर में लाने का अच्छा समय है. खास कर चिट्ठाजगत में जो चार बडे एग्रिगेटर है उनके लिये यह एक अच्छा अवसर है कि वे इन बातों के बारें में विचारमंथन करके अपनी नीति चिट्ठाकारों को स्पष्ट करें कि वे मुक्त हैं या नियंत्रित हैं, क्योंकि चिट्ठाकारों के बिना एग्रीगेटर नहीं चल सकते हैं. उम्मीद है कि जल्दी ही नारद, हिन्दीब्लोग्स, चिट्ठाजगत एवं ब्लोगवाणी इस मामले में अपना आधिकारिक प्रस्ताव चिट्ठाकरों के सामने रखेंगे — शास्त्री जे सी फिलिप
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अश्लील साहित्य एवं अपराध को छोड कर
क्यों? श्लील – अश्लील का निर्णय कौन करेगा?
अपराध – बे-अपराध का निर्णय कौन लेगा?
यह एग्रेगेटर के ऊपर है कि वह किसकी फीड ले अथवा नही पर किसी भी एग्रेगेटर के लिये किसी भी चिट्ठे को हटाना ठीक नहीं है। यह तय कर पाना कि क्या अशलील है क्या नही, क्या अनुचित है क्या नहीं – मुश्किल कार्य है। यह पाठकों के उपर छोड़ना चाहिये कि वे किस चिट्ठे को पढ़ना चाहते हैं किसको नहीं।
bloggers will survive on their own but for aggregators the life line is the post from bloggers . and mark it that bloggers are not getting space from aggregators to write .
अब ऐसे ही अपनी बात को काटेंगे तो कैसे चलेगा शास्त्री जी? एक ओर मुक्त सूचना के प्रवाह की बात तथा सेन्सरशिप का विरोध और दूसरी ओर स्वयं ही सेन्सरशिप लगाने की बात कर रहे हैं?