नशा वह चीज है जो जानेअनजाने, चाहेअनचाहे, नशेडी को बार बार एक ही काम करने के लिये प्रोत्साहित करती है. इसका मतलब है कि यदि सही रीति से प्रयोग किया जाये तो नशे को जीवन में एक सकारत्मक बल के रूप में साधा जा सकता है.
उदाहरण के लिये दुनिंयां के लगभग सभी महान वैज्ञानिक, लेखक, रचानाकार एवं जननायकों को कर्म का नशा था. कर्म ही उनके लिये जीवन का एकमात्र लक्ष्य था, कर्म ही उनकी आराधना थी, एवं अपने लक्ष्य से संबंधित कर्म उनको ऐसा खीचता था कि वे सब कुछ भूल जाते थे. कहा जाता है कि बिजली के बल्ब के अविष्कारक एडीसन प्रति दिन औसत 16 से 20 घंटे काम करते थे. भारत के कई जननायक भी सिर्फ 4 घंटे सोते थे.
जिन के लिये कर्म आराधना है, जो अपने कर्म से इतना संतोष पा लेते है कि उनको उन आनंद के मार्गों की जरूरत नहीं है जो एक आम आदमी को लगती है, वह एक नशेडी है. ऐसे नशेडी ही विज्ञान को आगे बढाते है, नई दवाओं को ढूढ निकालते हैं, कानून एवं न्याय की नीव मजबूत करते है, एवं किसी भी देश को उसकी नींव से लेकर ऊपर की ओर निर्माण करते है. विद्यालयों में आजकल वे बहुत विरल होते जा रहे हैं फिर भी अध्यापकों के बीच यदा कदा ऐसे नशेडी मिल जाते हैं जिनका एकमात्र नशा अद्यापन है, विद्या दान है. वे देश की नींव डालने के लिये कुशल कारीगर तय्यार करते है.
चिट्ठालेखन भी एक नशा हो सकता है, बशर्ते आपके चिट्ठे के पीछे एक लक्ष्य हो, एक मिशन हो. बाकी लोग चिट्ठा लेखन करते है, पाठकों को क्षणिक एवं अस्थाई आनंद के लिये मसाला दे देते हैं लेकिन ये समर्पित चिट्ठालेख अकेले एक संगणक के सामने दिनरात बैठ कर जीवन निर्माण एवं राष्ट्र निर्माण करते हैं. आप भी यह कर सकते हैं.
इस हफ्ते हम हिन्दुस्तान की आजादी से 61वे वर्ष में प्रवेश कर जायेंगे. इस समय जरूरत है ऐसे लोगों की जिन के लिये कर्म एक नशा है, एक अभियान है, सामाजिक मोक्ष का वाहन है. मेरे चिट्ठाकर मित्रों कम से कम आप मे से दस प्रतिशत आगे आयें आयें, गांठ कस लें, एवं कर्म का नशा अपना और लोगों को न्याय, कानून, जिमीदारी, कर्मठता, देशप्रेम इत्यादि का पाठ परोसें तो अपनी अगली पीढी का कल कुछ और होगा. दुनियां के महान देशो को उनके चुनिंदा कर्मयोगीयों ने इसी तरह महानता की शिखरों तक पहुंचाया है — शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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आप ने बता दिया कि ऐसा भी होता है. कहीं ये लेख भी ऐसे ही तो नही लिखा गया है.
शीर्षक देख कर मै तो चौंक गया था कि सारथी जी क्या कह रहे है ।
हम तो शीर्सक देख ही समझ गये थे कि शास्त्री जी किस नशे की बात कहने वाले है. काश कि सब लोग एसा नशा करते
शास्त्री जी ज़िंदगी मे नशा बहुत ज़रूरी है आपने सही कहा है जब तक हम अपने कर्म को नशे की तरह नही करेंगे तब तक ज़िंदगी में कामयाबी हासिल नहीं कर सकते
किसी भी चीज का नशा हो चाहे जिंदगी का ही क्यों नहीं सामान्य से ज्यादा हमेशा ही घातक होता है…
मेरा मानना है की सामन्य रुप में जो भी स्वभावगत सरल और सुंदर हो वही जीवन का आयाम होना चाहिए…।