हम भारतीयों को खलनायकों की आराधना का ऐसा भूत चढ गया है कि अधिकतर लोग ऐसे लोगों के पीछे भागते हैं जो इस देश के लिये कुछ नहीं कर रहे. उदाहरण लीजिये:
1. अभिनेता इस देश के असली नायक नहीं हैं क्योंकि वे फूहड एवं अश्लील मनोरंजन दे देकर लोगों की चिंतन शक्ति नष्ट कर रहे है. वास्तविकता के धारातल से लोगों को एक काल्पनिक जगत में ले जा रहे हैं. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के बीच संतुलन बिगाड रहे हैं
2. क्रिकेट खिलाडी इस देश के असली नायक नहीं हैं क्योंकि वे करोंडों बना लेते हैं लेकिन उनके पीछे पागल सरकारी कर्मचारी हर साल लाखों मनुष्य-दिवस देशनिर्माण के बदले, दफ्तरों में काम करने के बदले, जरूरतमंदों की अर्जी पास करने के बदले, असहायों को सर्टिफिकेट देने के बदले, खेल देखने में लगे रहते हैं.
3. अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में जो जो अध्यापक बच्चों को हिन्दुस्तानी संकृति से अलग ले जाने की कोशिश करते है वे इस देश के असली नायक नहीं हैं क्योंकि वे अगली ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये रास्ता बना रहे हैं.
आजादी की 60वीं वर्षगाठ मनाते समय यह जरूरी है कि हम हिन्दुस्तान के असली नायकों को पहचानें एवं उनको उचित आदर देना सीखें — शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: हिन्दी, हिन्दी-जगत, राजभाषा, विश्लेषण, सारथी, शास्त्री-फिलिप, hindi, hindi-world, Hindi-language,
मेरे मन की बात कह दी है आपने, धन्यवाद।
क्योंकि इस देश में हो क्या रहा है समझ में नहीं आरहा है, लेकिन एक बात साफ है कि इन सब के लिये जिम्मेदार देश के समाचार चेनल है।
बड़ा मुश्किल हो जायेगा असली नायक ढ़ूंढ़ना. सामान्य पत्र-पत्रिकाओं की बजाय रीडर्स डाइजेस्ट के “गिविंग बैक” जैसे कॉलम्स पर जाना होगा!
सही लिखा शास्त्री जी।
असली नायक कौन है? राजनीतिज्ञों का नायकत्व गाली-गलौज का विषय बन गया. सामाजिक कार्यकर्ता फंडिंग एजंसियों के पेरोल पर जीने लगे हैं, संस्कृतिकर्मी और साहित्यकार आपसी राजनीति में उलझे रहते हैं. प्रस्तुत किये गये नायकों से बेहतर है अपने आसपास देखें। जीवन के असली नायक दिख जाते हैं.
32 आने सच