जैसा मैं ने अपने पिछले लेख में कहा था, मेरे लेख का विरोध दो चिट्ठाकारों ने किया था: नीरज रोहिला एवं पंकज नरूला ने. दोनों ने यह बात व्यक्त कर दी थी कि यह मेरे साथ सिर्फ वैचारिक स्तर पर किया जाने वाला वादविवाद है, न कि व्यक्तिगत लडाई या झगडा. मैं भी उनकी बातों का पूरा समर्थन करता हूं कि यह हमारा व्यक्तिगत जगडा नहीं हैं एवं हम लोग सिर्फ सूचना के लिये इन लेखों में एक दूसरे का नाम ले रहे हैं. हम सभी सिर्फ एक चीज चाहते हैं: कि सही बात सामने आये. टिप्पणीकारों की भी यही स्थिति है. अत: यदि आपका मकसद आपसी झगडाटंटा देखना है तो वह इस लेखन परंपरा में नही मिल सकेगा. वैचारिक मतभेद एवं विश्लेषण जरूर मिलेगा.
इन दो में पंकज नरूला के लेख को पहले लेते हैं. लगभ 300 शब्दों के लेख में लगभग 40% में उन्होंने मेरे निष्कर्ष की खिल्ली उडाने के लिये एक कहानी दी जिसका विषयवस्तु से कोई लेनादेना नहीं है. बाकी 60% में उन्होंने घूमाफिरा कर बारबार यही बात कही कि वे मुझ से असहमत हैं. लेकिन जहां तक तर्क की बात है, उन्होंने न तो अपनी तरफ से कोई तर्क रखा है न ही मेरे किसी तर्क का या आंकडों का खंडन किया है. अत: मेरे मित्र पंकज ने न तो कोई नई बात बताई, न ही विषय पर किसी तरह का प्रकाश डाला. अत: उन्होंने विषय को आगे बढाने के लिये अपने इस लेख द्वारा किसी तरह का योगदान नहीं दिया.
वे अमरीका में काम करते है. स्वाभाविक है कि उनके द्वारा हिन्दुस्तान को काफी विदेशी मुद्रा हर साल मिलती है. यह खुशी की बात है, एवं मेरी कामना है कि वे दिनरात उत्साह से इसे करें. लेकिन यह भी स्पष्ट है कि जिस तरह अमरीका में काम करने वाले अधिकतर हिन्दुस्तानी अपने अलगथलग हिन्दुस्तानी खोल में रहते हैं वही हाल पंकज का है. जिस तरह मैं अमरीकी श्वेतसमाज की गहराईयों में गया, अमरीकी लोगों के बीच Family Counsellor की हैसियत से जिस तरह मैं उनके सामाजिक मूल्यों एवं पारिवारिक जीवन की गहराईयों मे उतर कर उन को देख सका, उस तरह वे नहीं देख सके हैं. अत: उनकी “अमरीकी यौन शिक्षा” की वकालात सिर्फ एक भावनात्मक वकालात है. न तो उन्हों ने इसे पास से देखा है, न ही अमरीकी समाज की अंतर्धाराओं से वे परिचित हैं. पंकजभाई, आपकी कहानी का मेंढक सचमुच में बहरा है.
दूसरा लेख नीरज रोहिला का है जो पंकज के लेख से दुगुना लम्बा है एवं उसमें नीरज ने कई तर्क एवं उद्धरण दिये हैं. उनके मुख्य प्रश्न एवं मेरे उत्तर निम्न हैं
प्रश्न/प्रस्ताव: भारत में यौन अपराधों का एक बडा हिस्सा कभी आँकडों में आता ही नहीं है, फ़िर आप दोनो आँकडों की तुलना कैसे कर सकते हैं
इस विषय परे मेरे द्वारा प्रकाश्य 8 लेखों में, एक लेख के महज एक बिंदु के अलावा मैं ने अपने लेखों में दोनों आंकडों की तुलना करने का प्रयत्न नहीं किया है, बल्कि अमरीका में पिछले 50 सालों में जो हुआ है सिर्फ उसका तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार है:
पचास साल के प्रयोग का परिणाम क्या है? हम अमेरिका का ही उदाहरण ले लें. वहां देखते हैं
1. विद्यालयों मे यौनशिक्षा प्राप्त करने के बाद आपसी यौनाचार हर साल बढता जा रहा है, एवं 12 से 15 साल की लडकियां धडल्ले से ऐसी संतानों को जन्म दे रही है जिनके बाप का कोई पता नहीं है क्योंकि ऐसी अधिकतर लडकियों के एक से अधिक लडकों से यौन संबंध है.
2. मुक्त यौनाचार का प्रतिशत हर साल बढता जा रहा है.
3. ताज्जुब की बात यह है कि मुक्त यौनाचार के बढने के बावजूद लोगों की भडकी हुई यौनेच्छायें तृप्त नहीं हो रही है, एवं इस कारण उस देश में वेश्यावृत्ति, बलात्कार एवं लडकियों का अपहरण बढ रहा है.
4. यौन रोगियों की संख्या आसमान छू रही है. स्वास्थ्य विभाग हैरान है.
5. यौन अपराध तेजी से बढ रहे है. यदि अमेरिका एवं यूरोप में पचास साल की शालेय यौन शिक्षा की उपलब्धि यह है, तो सवाल यह है कि हिन्दुस्तान को इसकी क्या जरूरत है. हिन्दुस्तान में यौन अपराधियों की एवं यौन रोगों की कमी है क्या जो हमें पाश्चात्य यौन शिक्षा के सहारे इनका आयात भी करना पडे.
स्पष्ट है कि नीरज का यह प्रश्न गलत है. वे गलत प्रश्न पूछ कर उसका जवाब दे रहे है. मैं ने मुख्यतया अमरीकी यौन शिक्षा के प्रबाव के बारे में लिखा है, न कि हिन्दुस्तान से तुलना की है.
प्रश्न/प्रस्ताव: अमेरिका में यौन शिक्षा के बावजूद यौन अपराधों के बढने के कई अलग कारण हो सकते हैं
बात एक दम सच बात है नीरज. लेकिन “कारण हो सकते हैं” कह कर छोड क्यों दिया. एकाध कारण दे देते तो हमारे भी ज्ञान चक्षु खुलते एवं पता चलता कि हम ने जो कारण दिये हैं उनमें कहीं गलती है क्या.
प्रश्न/प्रस्ताव: इस प्रकार के तर्क देने वालों को सबसे पहले यौन शिक्षा देनी चाहिये जिससे कि वो समझ सकें कि असल में यौन शिक्षा भोग की शिक्षा नहीं है ।
प्रिय छोटे भाई आप अमरीका के जिस स्टेट में काम करते हैं (इस विषय पर अनुसंधान के दौरान मै वहा आया था) वहां प्रयुक्त की जाने वाली यौन शिक्षा की पुस्तकें, यौनशिक्षा के लिये दिखाये जानी वाली फिल्में, एवं क्लासरूम में बच्चों से जो प्ले एक्टिंग (कामांध लोगों की नकल) करवाई जाती है वह आपने एक बार भी गहराई से देखा होता तो आप यह प्रस्ताव वापस ले लेते. मेरे एक अगले लेख में मैं अमरीकी एवं हिन्दुस्तानी यौन शिक्षा की पुस्तकों से उद्धरण पेश करूंगा. तब समझ में आयगा कि भोग तो एक हल्का शब्द है. अमरीकी यौन शिक्षा तो लोगों को पतिपत्नी के पावन यौन संबंध से हटा कर वेश्यावृत्ति, व्यभिचार, गुदा मैथुन, मुख मैथुन, शव मैथुन, मृग मैथुन, शिशु मैथुन, यांत्रिक मैथुन, यंत्र मैथुन, हिंसक/पाश्विक मैथुनाचार, सामूहिक मैथुन/यौनाचार, विवाहित लोगों के बीच पतिपत्नी का आदानप्रदान (जैसे किसी पुस्तकालय से पुस्तकों का आदानप्रदान होता है), सीरियल विवाह (एक के बाद एक विवाह करना), मुक्त यौनाचार, आदि के लिये तय्यार करता है. मैं ने अमरीकी लोगों के बीच रह कर इन चीजों का अध्ययन किया है, देखा है, विश्लेषण किया है, विरोध किया है. अभी भी आधे दर्जन अमरीकी विद्यार्थी पीएचडी के लिये इस विषय पर मेरे मार्गदर्शन में शोध कर रहे हैं. अत: आप इस बात को समझ लें कि आप भावना में बह गये है. यह भी समझ लें कि आप जिस देश में नौकरी कर रहे हैं उस देश में जो हो रहा है उसका अतापता आपको नहीं है.
एक बात और बता दूं, कल को जब मैं उद्दरण पेश करूंगा तो मेरे पाठक शर्म से जमीन में गड जायेंगे, यह सोचकर कि क्या ये बातें है जो पाश्चात्य यौनशिक्षा के अंतर्गत पढाई जाती हैं.
प्रश्न/प्रस्ताव: भारत और भारतवासियों के साथ सबसे बडी समस्या ये है कि हम आधी समस्याओं को नकार कर उनसे पीछा छुडाने की बात करते हैं
हो सकता है कि यह बात कई लोगों के बारे में सच हो. लेकिन उसका मतलब यह नहीं है कि मुझे भी आप उस में शामिल कर लें. मैं प्रश्नों को नकारने के पक्ष में नहीं हूं, लेकिन मैं अमरीकी यौन शिक्षा के अंधानुकरण के पक्ष में भी नहीं हूं. अमरीकी यौन शिक्षा को आप सब की तुलना में मैं ने अधिक गहाराई से देखा है एवं विश्लेषण किया है. अभी भी कमी आधे दर्जन अमरीकी पीएचडी विद्यार्थी मेरे निर्देशन में इस विषय पर अनुसंधान कर रहे हैं, अत: कम से कम इतना तो आप एवं मेरे प्रबुद्ध पाठक समझ लें कि इस विषय को मैं ने कितने पास से देखा है.
निष्कर्ष: पंकज नरूला का लेख पढने में मजेदार है, लेकिन इस लेख ने विषय को स्पर्श नहीं किया है. इस लेख में जिस मेंढक का जिक्र है वह न केवल बहरा है बल्कि लंगडा, लूला, एवं काना भी है. नीरज रोहिला का लेख कुछ और विस्तार से लिखा गया है एवं उन्होंने कई मुद्दे उठाने की कोशिश की है. लेकिन उस लेख में भी विषय पर कुछ ठोस नहीं दिया है.
मैं एक बात और यहां जोडना चाहता हूं: दोनों लेखक अमरीका में काम करते हैं लेकिन उन दोनों को कभी भी श्वेत अमरीकी समाज के सामाजिक यौनचिंतन को पास से या गहराई से देखने का मौका नहीं मिला है. उनको अमरीकी यौन शिक्षा के उद्भव, लक्ष्य, या परिणाम के बारे में सतही जानकारी भी नहीं है. वे दोनों अमरीका में रहते तो हैं, लेकिन उन्होंने अमरीकी यौन शिक्षा की पुस्तकों का अध्ययन नहीं किया है, न ही अमरीकी यौन शिक्षा की कक्षाओं में व्यभिचार को प्रोत्साहित करने वाले जो पिक्चर दिखाये जाते है उसके बारें में उनको कुछ पता है. अत: कुल मिला कर वे कुछ भी नहीं कह पाये है. इस विषय पर मेरे शुरू के एक दो लेखों को देख कर उन्होंने बहुत ही सतही किस्म के प्रस्ताव प्रस्तुत किये है.
अभी दो और लेख बचे हैं. उन में से एक लेख में मै काफी उद्दरण प्रस्तुत करने की कोशिश करूंगा. याद रखें कि वे यौन शिक्षा की वर्तमान पुस्तकों से ली गई है, एवं काफी अश्लील किस्म के प्रस्ताव है. मैं उनके लिये जिम्मेदार नहीं हूं, लेकिन वे इस लिये प्रस्तुत किये जा रहे है जिससे अमरीकी यौन शिक्षा कीं अंधी वकालात करने वाले मेरे हिन्दुस्तानी मित्रों की आंखे खुल जायें.
प्रष्टभूमि जानने के लिये देखिये इस विषय मेरे पर अन्य लेख:
यौन शिक्षा, आलोचनाओं एवं आपत्तियों का उत्तर — 1
लाखों अमरीकी यौन शिक्षा से भाग रहे हैं 002
लाखों अमरीकी यौन शिक्षा से भाग रहे हैं 001
यौन शिक्षा — पाश्चात्य राज्यों का अनुभव क्या कहता है ??
हिन्दुस्तानियों को चाहिये क्या पैरों में इलेक्ट्रॉनिक पैरकडी ??
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शास्त्रीजी,
आपका लेख पढकर अच्छा लगा कि आपने हमारे विचारों को एक संवाद की तरह समझा है न कि आपसी लडाई झगडे की तरह ।
आप इस विषय पर दो लेख और लिखने वाले हैं, मैं इस विषय पर अपने विचार आपके उन दोनों लेखों को पढने के बाद ही रखूँगा जिससे कि संवाद में किसी भी Assumption की आवश्यकता कम से कम पडे ।
मैं अमेरिका में पिछले केवल ३ वर्षों से हूँ परन्तु इतने समय में ही मैने अपने विश्वविद्यालय में और अपने जान पहचान वालों के माध्यम से इस विषय पर काफ़ी चर्चा की हुयी है । एक अच्छी बात ये है कि आप और हम दोनों ही शोध से जुडे हुये हैं, अत: किसी भी Hypothesis की तार्किकता जांचना आप और मेरी दोनो की ही Academic Training में शामिल है । आपकी अगली प्रविष्टियों का इन्तजार रहेगा ।
प्रिय नीरज, आपकी टिप्पणी पढ कर अच्छा लगा. एकदम सही कह रहे हो कि “एक अच्छी बात ये है कि आप और हम दोनों ही शोध से जुडे हुये हैं, अत: किसी भी Hypothesis की तार्किकता जांचना आप और मेरी दोनो की ही Academic Training में शामिल है । आपकी अगली प्रविष्टियों का इन्तजार रहेगा ।”
“आपका लेख पढकर अच्छा लगा कि आपने हमारे विचारों को एक संवाद की तरह समझा है न कि आपसी लडाई झगडे की तरह ।” नीरज, झगडा तो वे करते हैं जो विचारविनिमय का मतलब नहीं जानते या जिनके लिये हर बात इज्जत का सवाल है. मेरेआपके लिये यह इज्जत का नहीं अनुसंधान का सवाल है.
फिलहाल कल के लेख के साथ इस विषय से कुछ समय के लिये अवकाश लूंगा. एक हफ्ते के अंतराल के बाद फिर लिखूंगा.
शास्त्री जी,आप का लेख और की गई टिप्पणीयों के सवाल-जवाब पढ़ कर यह बात तो साफ हो जाती है कि हमे अमरीकी यौन -शिक्षा की जरूरत नही है ।यदि अमरीका को कोई फायदा उन्हें अपना कर नही हुआ तो यहाँ उस से फायदा नही नुकसान ही ज्यादा होगा ।क्यूँकि हमारी सभ्यता और उन की सभ्यता में जमीन-आसमान का अन्तर है । लेकिन क्या हमारी सरकारें भी इस बात को समझने की कोशिश करेगी ? बहुत मुश्किल लगता है ।
हम भी चाहते हैं कि इस विषय पर खुल कर चर्चा हो ताकी सही निष्कर्ष निकल सके । कही ऐसा ना हो की जोश में इस कार्य को शुरू कर दिया जाए और बाद मे पछताना पड़े ।