आपको सादर नमन

एक मित्र के द्वारा रचित एक मोती उनकी अनुमति से प्रस्तुत है. जिस तरह के व्यक्ति को यह कविता समर्पित है, यदि दुनियां में इस तरह के लोगों की संख्या कुछ और बढ पाती तो तो यह संसार कुछ और ही होता !!

आपके कहे शब्द,
बेहद भावुक कर गये,
अपनी ही भावुकता,
अपनी सी ना लगी,
क्या मै भी इतना भावुक हो सकता हुँ?
कोई उम्मीद ना थी,
उस खूबसूरत से गुलदस्ते की,
आपके हर शब्द की,
सादगी और निर्मलता को,
मेरा सादर नमन ।

यह अंतर्जाल की दुनिया,
बडी निराली दुनिया,
असम्भव को,
सम्भव किया,
आपकी दोस्ती का,
सौभाग्य प्राप्त हुआ
इस दोस्ती मे,
बड़प्पन आपका,
जो आपने मुझको दोस्त समझा,
मेरी उलझनें सुलझाई,
और नयी सोच का रास्ता खोला,

जितने भी दिन आपके शब्द पडे,
हर उस दिन का आभार,
हर उस दिन को नमन,
उन शब्दों से भी दोस्ती चाहता था,
हाथ भी उन्होंने बढाया, पर मै थाम ना पाया,
साथ बदल गया, मै आगे ना जा पाया,
फिर भी जो बदल गया हुँ,
वो अलग ना हो पाएगा,
आपका दिया हर नजरिया,
नित नये फूल खिलाएगा,
कुछ नये रंग जरुर लाएगा,
फूल तो फिर, फूल ही हैं
सिर पर सज़ें
या सडक पर ही बिखर जाएँ,
कुछ तो खूबसूरती लाएगें ही,

कैसे शुक्रिया अदा करुँ आपका,
मगर यह भी तय है,
आपके जैसे व्यकतित्व भी कम ही होगें,
सूद समेत लौटाना और आपका व्यंग,
हमेशा याद रहेगा,
बगैर किसी कोशिश के,
सब पर सहज प्रभाव,
आप प्रभावी हैं, पूजनीय हैं,
पर छोटी-छोटी बातें
समझ पाना भी आपकी ही खूबी है

आपकी मजबूती भी मैने देखी है,
और आपका नर्म दिल भी,
जो किसी अजनबी के लिये भी,
चिंतित हो जाता है,
कुछ अफसोस इस बात का है,
शायद मेरे शब्दों ने आहत किया हो,
नासमझ हूँ, व्यर्थ ही कहता हूँ,
फिर भी क्षमा ना माँग पाऊँगा,
आदत अभी बदली नहीं है,
समझ अभी बनी नहीं है,

आगे भी शायद व्यर्थ ही लिखता जाऊँगा,
क्षमा कैसे माँग पाऊँगा,
अभी तो शायद गलतियाँ और भी करता जाऊँगा,
सब गलतियाँ माफ कर,
दोस्त आपने समझा,
आपका बड़प्पन,
मुझे दोस्त आपने समझा,
पर मै दोस्ती कैसे निभाऊँ,
समझ अभी बनी नहीं है,
आपकी सोच तक कैसे पहुँच पाऊँ
दोस्त आपने समझा,
आपका बड़प्पन,
मगर मै दोस्ती कैसे निभाऊँ
बस मेरा सादर नमन है आपको

 

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Author: Super_Admin

22 thoughts on “आपको सादर नमन

  1. वाह! कितनी सरलता से कितनी गहरी बात कह दी गयी. भावनाओं को इतनी साफगोई से कहने की कला सबमें कहाँ होती है? तनिक उनके ब्लोग का लिंक देते तो उन्हें और पढ़ने का आनंद मिल पाता.

  2. @vikash
    रचनाकार ने अपने बारे में किसी भी तरह की सूचना देने से मुझे मना किया है. शायद उनका मानना है कि आदर कृति का होना चाहिये, कृतिकार का नहीं !

  3. @ “मुझे दोस्त आपने समझा,
    पर मै दोस्ती कैसे निभाऊँ,
    समझ अभी बनी नहीं है,”

    दोस्ती निभाने का तरीका
    सबसे अच्छा है,
    दोस्त को अपने समान
    समझना,
    साथ देना उसके दुखदर्द
    सभी मे,
    चाहे वह कहे
    या न कहे तुम से
    कि जरूरत कहां है
    उसको तुम से !!

    — शास्त्री जे सी फिलिप

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

  4. कितनी खूबसूरती से दिल की हर बात कह दी…यकिनन वो अवश्य पुजनिय है जिनके आदर सम्मान में यह कविता निर्मीत हुई है…कितनी प्रभाव शाली सशक्त शैली है लेखन की…एक खूबसूरत रिश्ते को जीने का अनुभव झलकता है…अभिनन्दन है उन अजनबी चिट्ठाकार का जिन्होने यह कविता लिखी है…

    शास्त्री जी आपने भी बहुत सुन्दर लिखा है…जैसे की उन दोस्ती के पलो को जिया है…
    दोस्ती निभाने का तरीका
    सबसे अच्छा है,
    दोस्त को अपने समान
    समझना,
    साथ देना उसके दुखदर्द
    सभी मे,
    चाहे वह कहे
    या न कहे तुम से
    कि जरूरत कहां है
    उसको तुम से !!

    शानू

  5. बड़ी खूबसूरती से बात रखी है. कृति का सम्मान तो निश्चित महत्व रखता है पर कृतिकार का सम्मानित होने का अधिकार भी कमतर नहीं-

    तुझे देखकर जग वाले सब, यकीं नहीं क्यूँ कर होगा,
    जिसकी रचना इतनी सुन्दर, वो कितना सुन्दर होगा.

  6. “जिसकी रचना इतनी सुन्दर, वो कितना सुन्दर होगा”

    रहता है हरेक को इंतजार
    उडन खटोले का.
    मिलता है कुछ न कुछ
    नया,
    उतरता है जब भी खटोला
    किसी के भी द्वार !

  7. नि:श्छल मन से प्रकट ये सुरभि
    संसार को सुंदरतम बनाती है
    हिम्मत देती है कि
    सब कुछ उतना ख़राब नहीं
    जितना हम सोचते हैं
    परमात्मा इस प्रविष्टि के
    हर पाठक का मन मिठास से भर दे
    हर शब्द से खिले मुस्कान…. ऐसा वर दे !

  8. अरे रचना जी भी
    पधारीं क्या हमारी
    कुटिया में.

    अहो भाग्य कि
    आजकल आ रहे हैं
    यहां
    खटोले से लेकर
    डिझाईनर तक.

    अनुरोध है एक मित्रों,
    कि उडा मत ले जाना
    खटोले पर,
    एवं लगा मत जाना
    छाप
    कपडे के बदले हमारे चेहरे पर
    किसी नये डिजाईन का !!

  9. जोगालिखी से पधारे
    हमारे कनिष्ट भ्राता
    संजय पटेल.
    दे गये हम को एक
    सुंदर सी कविता.

    विज्ञापन कला के हैं गुरू,
    हिन्दी विज्ञापन में है
    जिसने गाडा
    मील का पत्थर,
    आपका स्वागत है,
    सारथी की इस कुटिया में!!

  10. sir
    cheating cheating cheating
    you have taken away my style from my blog
    this is copying of thoughts not fair
    not fair
    aab kahan rapt likhaye koi to batao
    chori hua hae idea mera !!!!!!!!!!!!!!!

  11. @http://myoenspacemyfreedomhindi.blogspot.com/
    2007/08/blog-post_23.html

    अरे रचना जी,
    क्यो हो बौखलाती,
    विश्वास कीजिये कि
    आपने विचार लिये हैं
    हमारे,
    न कि हम ने आपके!

    उदारमनस्क हैं हम,
    अत: दे देते हैं आपको
    अधिकार,
    हमारे विचारों के
    उपयोग की !!

    वैसे सोच रहे थे कि
    मांगे आप से रॉयल्टी,
    लेकिन उठे थे आज किसी
    अच्छे का चेहरा देख कर,
    अत: छोड दिया है दावा
    फिलहाल.

  12. creative commons
    को
    कापी राईट
    आप कर दीजीये
    royalty
    भी लीजिये
    पर गुरू को
    royalty
    कौन दे पाया है
    गुरू दक्षिणा
    दे सकते है
    मांग के देखीये
    नत मस्तक हो कर
    sir
    को
    सर भी दे
    सकते है

  13. आपको सादर नमन

    आप के मित्र की ये कविता
    बन रही है मानदंड{बेंचमार्क}
    अंतर्जाल की दुनिया मे
    सौहार्द का स्नेह का
    सोच है उनकी की
    शब्द उनसे ना जाने जाये
    उन्हे शब्दो मे ना देखा जाये
    इसी लिये आप के घर मे
    नये दोस्त बना रहे है
    उनके शब्द ओर
    जो पहले से दोस्त है
    आपस मे आदान प्रदान
    कर रहे है कमेन्ट मे
    हँसते खिलखिलाते शब्दो का

  14. वाह!

    रचना जी और शास्त्री जी, आप दोनों में यूँ ही शब्दों का खेल चलता रहे – बहुत बढिया है!

    🙂

  15. @Rachna

    हे प्रभु, एवं हे प्रभु की रचना
    कैसी विचित्र है यह लीला
    कि इकट्ठे हो जाते हैं
    अनजान लोग जाल पर एक
    परिवार के रूप में.
    यहां उनको सब कुछ मिल जाता है,
    ढूढने पर.
    जो द्वेष ढूढते हैं, उनको विद्वेष मिल
    जाता है अपना बनाया एवं अन्यों का
    दिया.
    जो झगडा ढूढते हैं उनको मिल जाते है
    टंटे अनेक तरह के.
    बहुत कुछ है यहां हरेक के लिये .
    मैं आभारी हूं प्रभु
    कि मुझ आपकी सृष्टि के लिये
    रखे थे बहुत से मित्र आपने.
    अनुरोध है कि सचमुच बन जाये
    ये शब्द, यह सौहार्द्र,
    मापदंड
    अंतर्जाल की दुनियां में

  16. @दुर्गा

    स्वागत है इस सारथीकुटीर में
    दुर्गा का !
    मालूम है आपको कि चुनें
    किस तरह मित्रों को.
    प्रभु करें कि मिले आप
    को मित्र,सखा,
    सहयात्री, सहकर्मी, सह रचनाकार,
    सब श्रेष्ट
    एक से एक !

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