वे बोली,
कोई न होगी पतिव्रता
मुझसे अधिक.
तभी तो मैं
पति के गृहस्थी के
कामों में,
कभी भी नहीं करती
नुक्ताचीनी.
कहां आता है उनको
ढंग से खाना पकाना या,
बच्चे खिलाना.
कब उन्होंने बनाया है
स्वादिष्ट खाना,
या ठीक से बुहारा घर,
या साफ पोंछा लगाया फर्श पे.
कब मुझे हुई है तृप्ति
उनकी तनख्वाह से.
लेकिन कब किसी से
की है शिकायत
मेरी इन कठिनाईयों
के बारे में!
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c/पतिवृता/पतिव्रता
c/नुकताचीनी/नुक्ताचीनी
अच्छा लिखा है, पर इस लिहाज से तो लगभग सब पुरुष पत्नीव्रता होते हैं । ऐसे सभी महापुरुषों को मेरा सलाम ।
घुघूती बासूती
बहुत अच्छी रचना है।
क्या बात है आजकल तो ख़ूब कविता हो रही है। बधाई !!
बहुत बढिया!