अरे दोस्तों,
यह क्या कह दिया
जिनकी, की हमने तारीफें,
आपको भी वो पसन्द आये,
वो तो तारीफे काबिल हैं
पर मेरी क्यों तारीफें हैं,
क्यों मुझसे उम्मीदें हैं,
मुझको अनजान ही रहने दो.
कह दो उनसे,
यह सब धोखा है,
तारीफों से अगर,
यूँ शायर बनते,
पैदाइशी सब शायर होते,
शायरी को कौन पूछता,
सब तरफ सब शायर होते,
मुझसे तुम उम्मीद ना रखना,
अनजाने मे कुछ लिख दिया है,
अनजान मुझको रहने दो
[अनुमति: एक अज्ञात चिट्ठाकार की कलम से]
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तारीफों से अगर,
यूँ शायर बनते,
पैदाइशी सब शायर होते,
शायरी को कौन पूछता,
सब तरफ सब शायर होते,
मुझसे तुम उम्मीद ना रखना,
अनजाने मे कुछ लिख दिया है,
अनजान मुझको रहने दो
बहुत सुन्दर! मगर कवि का नाम तो कहिये…हम उन्हे भी बधाई दें अच्छी रचना लिखी है…
सुनीता(शानू)
बहुत खूब!!
जी बहुत ही अच्छी लगी आपकी ये कविता। आगे भी ऐसे ही लिखते रहिये।
hello how u r
i love u yaar