आज चिट्ठाभ्रमण करते समय एक बहुत ही काम का लेख नजर आया. उसका आरंभ इस तरह है: लिखाई में प्रचलित १० ग़लतियाँ….जिनके प्रयोग से आप बेवकूफ़ दिखते हैं
पहले बता दूँ कि यहाँ मैं टाइप में भूल से हो जाने वाली अशुद्धियों (जिन्हेंअंग्रेज़ी में ‘टाइपो’ कहते हैं) की बात नहीं कर रहा हूँ। ऐसी गलतियाँ तो सबसे होती हैं (हालाँकि इनका ध्यान रखना भी बहुत ज़रूरी है)। पर जब ये गलतियाँ अज्ञान के कारणहोती लगती हैं, तो पाठक की नज़रों में आपका “भोंदू स्कोर” बढ़ने लगता है। और आपकी व आपकी बात की विश्वसनीयता उसी अनुपात में घटने लगती है। ये रहीं दस ऐसी व्याकरण या
वर्तनी की गलतियाँ।
१. जहाँ नुक़्ता नहीं लगता, वहाँ नुक़्ते का प्रयोग
गलत- क़िताब, फ़ल, सफ़ल, फ़िर, ज़ंज़ीर, शिक़वा, अग़र
ठीक – किताब, फल, सफल, फिर, ज़ंजीर,शिकवा, अगर
२. बिंदु (अनुस्वार) की जगहचन्द्रबिंदु (अनुनासिक)
गलत – पँडित, शँकर, नँबर, मँदिर
ठीक – पंडित (या पण्डित), शंकर, नंबर (या नम्बर), मंदिर (या मन्दिर)
पूरा लेख पढिये हिन्दी नामक चिट्ठे पर: लिखाई में प्रचलित १० ग़लतियाँ..
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यह लेख विनय जी के द्वारा लिखा गया है। उनके चिट्ठे पर इस तरह के कई उपयोगी लेख मौजूद हैं।
आप नए-पुराने चिट्ठों से उपयोगी सामग्री खोज कर प्रस्तुत करते रहते हैं। आभार!
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इस विषय पर एक बार मैंने भी लिखा था – हिन्दी में देवनागरी का ग़लत प्रयोग।
शुक्रिया इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए!!
अच्छी जानकारी के लिए आभार।
बहुत उपयोगी जानकारी आज के चिठ्ठाकारो के लिये
आपने याद दिलाया शुक्रिया! कई बार गलतियाँ इस नाते भी हो जाती हैं कि हमें लगता है कि जो हमने लिखा सही लिखा है। मसलन मैं ग्लोबल वायसेज़ हिन्दी में इजिप्ट के लिये “मिस्र” की बजाय कई प्रविष्टियों में “मिश्र” लिखता रहा, मुझे इसका हाल ही में ध्यान दिलाया आर.सी.मिश्र ने।
“मैं बहुत बड़ा बेवकूफ हूं :)”, मुझे ये बात तो पता था.. पर इतना बड़ा हूं ये नहीं मालूम था.. कई बार मुझे पता होता था की मैं गलती कर रहा हूं पर सोचता था कि इतना तो चलता है भाई..
जैसे फूल के बदले में फ़ूल लिखा जाने पर मैं उस गलती को सही नहीं करता था.. बस आलस्य का चक्कर था.. हां, कई बार जानकारी के अभाव में भी ये गलतियां हो जाया करती थी..
आगे से इस पर ध्यान दूंगा.. धन्यवाद..