हर सफल चिट्ठाकार के जीवन में कई ऐसे मौके आते हैं जब एकदम से उसका मन बंद सा हो जाता है. कल तक जहां विषयों की कोई कमी नहीं थी वहां आज अचानक से कोई भी विषय नहीं सूझता है. कई चिट्ठाकार मित्र इस अवस्था से गुजरते हैं एवं उसका हल सुझाने के लिये मुझे लिखते हैं. साथियों मैं ने 1970 में लेखन शुरू किया था एवं हजारों लेख लिखे हैं अत: यह अनुभव मुझे दर्जनों बार हो चुका है. इसके कुछ आजमाये हल हैं एवं वे इस प्रकार हैं:
1. ऐसी चीजे पढें जहां रोजमर्रा के जीवन सें संबंधित नये नये विषयों की चर्चा होती है. उदाहरण के लिये स्थानीय अखबार का “संपादक के नाम पत्र”. यहां नित नये विषय मिल जायेंये. उनको एक डायरी में नोट करते जायें. कल वे बहुत काम के सिद्ध होंगे.
2. ऐसी चीजें पढें जहां लोग आम जीवन की परेशानियों की चर्चा करते है. उदाहरण के लिये की अखबारों में “मुझे शिकायत है” एवं इसके समान विभागों में रोज पत्र छपते हैं. ये व्यावहारिक विषयों की खान है.
3. “मेरी समस्या” या इससे मिलतेजुलते स्तंभ बहुत से अखबारों एवं पत्रिकाओं में नियमित रूप से दिखता है. ये तो व्यावहारिक विषयों की बहुत बडी खान है.
इस तरह अपने आप को समाज में होने वाले परिवर्तन, समस्यायें, दुख, दर्द आदि के संपर्क में रखें. यह सोचें कि आप क्या जवाब या समाधान सुझायेंगे. बस बन गया एक विषय. अब इसी लेख को ले लीजिये. यह इस हफ्ते मिले एक चिट्ठाकार मित्र के पत्र के जवाब में मैं ने सारे चिट्ठाकारों के लिये लिखा है!!
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अच्छा मार्गदर्शन.
बहुत बढ़िया सुझाव. मेरी समस्यायें पढ़ने में मुझे भी बहुत मजा आता है. भारतीय हूँ न सच्चा. दूसरे की समस्या में मजा तो आयेगा ही. 🙂
ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें. लौट आये कि नहीं??…आप कहीं गये थे.
शुक्रिया. आपकी जासूसी कहानियों का इंतजार है हमें…
ऊपर मेरे ईमेल पते में a छूट गया है. सही पता इसमें है.
और कोई भी विषय न मिले तो यही लिख डालें कि विषय न मिलने पर क्या लिखना चाहिए!
शास्त्रीजी, समस्या उलट है – इतने विषय हैं कि विषय कैसे छानें!
समस्या विषयों की नही, कौन से विषय ऐसे जो ज्यादा पसंद किए जायेंगे उन्हें चुनने की है, अप्र्ताय्क्षित बातें होती हैं अक्सर पर यही टू ब्लोग्गिंग का आनंद है
आपका कहना सही है पर मूल समस्या यह नही है, मूल समस्या वही है जो सजीव जी कह रहे हैं
हमारी भी यही परेशानी है कि कई बार महीनों तक कोई विषय नहीं मिलता और कई बार इतने विषय हो जाते हैं कि किस पर लिखें यह पता नहीं चलता; और इसी वजह से मेरी महीने में दस पोस्ट भी नहीं आ पाती।
मेरा नज़रिया थोड़ा अलग है …माफ़ करे.मेरा मानना है कि हमेशा बेहतर लेखन स्फ़ूर्त ही होता है. अपवाद होते हैं पत्रकार या ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें लिखना ही पड़ता है.अन्यथा परिवेश,मानवीयता,संबधों की गर्मजोशी और आत्मीयता से भरे पूरे व्यक्ति के पास विषय अपने आप चल कर आते हैं…बात मेरी थोड़ी सी रूहानी है लेकिन……सुनी सुनाई बात नहीं है…अपने ऊपर गुज़री है.
इस बारे में हमारे जीतू भाई भी कुछ मजेदार टिप्स दे चुके हैं। 🙂