अधिकतर चिट्ठाकार बहुत उत्साह के साथ चिट्ठाकारी शुरू करते है. लेकिन इन में से सिर्फ 20% ही कुछ काम के चिट्ठाकार बन पाते है. 60% यदा कदा कुछ न कुछ पोस्ट कर देते है, लेकिन ये सामान्यतया आप लिखें खुदा बांचे किस्म की रचनायें होती हैं. बाकी 20% अपने चिट्ठे को मुड कर भी नहीं देखते है. यह नैसर्गिग मानव स्वभाव है एवं इसका एक बहुत अच्छा वर्णन ज्ञान जी ने निम्न लेख में दिया है: "ब्लॉग सेग्रेगेटर – पेरेटो सिद्धांत लागू करने का जंतर चाहिये।" यह 20+60+20 की गुलामी मानव जीवन के हर पहलू में बसी है, अत: ज्ञानदत्त जी के इस लेख को पढ कर इस स्वाभविक गुलामी से बाहर आने की कोशिश हरेक को करनी चाहिये.
हां, यह लेख उन 60% के लिये है जो अच्छे चिट्ठाकार बन सकते हैं लेकिन बन नहीं पाते, न ही पेरेटो के जंजाल से बचना चाहते है. आप निम्न कार्य करें तो आपका चिट्ठा कुछ जल्दी ही दफन हो जायगा:
1. नियमित रूप से लम्बे लेख लिखना एक कठिन कार्य है. बहुतों के लिये यह असंभव है. अत: आप रोज 2000 शब्दों के लेख लिखने का एवं हफ्ते में इस तरह से कम से कम पांच लेख लिखने का लक्ष्य बनायें. आपकी गाडी एक हफ्ते में अपने आप पंचर हो जायगी.
2. ऐसे विषयों पर नियमित रूप से लिखें जिनका किसी भी पाठक से कोई वास्ता नहीं है. उदाहरण के लिये " भारतीय मानसून पर सहारा के ऊटों की जुगाली का असर" किस्म के लेख जम कर लिखें.
3. खूब रोना रोयें कि कोई आपको टिप्पणी नही देता. लेकिन आप भूल कर भी किसी के चिट्ठे पर न जाये. चले भी गये तो टिप्पाने की गलती न करें. टिप्पणी कर दी तो चिट्ठाकर को यह बताना न भूलें कि आप जैसे विद्वान की टिप्पणी उस जैसे अज्ञान के लिये नोबेल प्राईज़ से कम नहीं है.
4. अन्य सभी चिट्ठाकारों को मूर्ख, अज्ञान, पुरापंथी, नालायक, व अपना दुश्मन मानें. उनके वास्तविक अवं कथित अज्ञान के विरुद्ध खुल कर बोलें. अपने शब्दों पर किसी भी तरह का नियंत्रण न करे.
5. लिखने बैठें तो कोई आपके आसपास सास भी ले ले तो जबर्दस्त डाट पिलायें कि इस तरह "शोर" मचा कर वे आपके ध्यान में खलल न डालें.
एक हफ्ते में आपका चिट्ठा दफन हो जायगा एवं आप चैन की बंशी बजा सकेंगे.
आपने चिट्ठे पर विदेशी हिन्दी पाठकों के अनवरत प्रवाह प्राप्त करने के लिये उसे आज ही हिन्दी चिट्ठों की अंग्रेजी दिग्दर्शिका चिट्ठालोक पर पंजीकृत करें!
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: व्यंग, काविता, काव्य, व्यंग-विधा, सारथी, शास्त्री-फिलिप, humour, satire, hindi, poem, hindi, humor,
अच्छा व्यंग्य. हमें नहीं दफनाना जी अपना चिट्ठा इसलिये टिपिया दे रहे हैं.
शास्त्री जी, धन्यवाद। आपकी इस चुटकी के बहाने ज्ञानदत्त जी का लेख पढ़ने को मिल गया। पहले नहीं पढ़ पाया था।
चिट्ठा दफ्न करने के पांचों नुस्खे एकदम झकास हैं। सौ फीसदी कामयाबी की गारंटी हैं।
चलिए कुछ दफन चिट्ठों के दफन होने का कारण तो पता चला।
अच्छे ‘तरीके’ सुझाए।
कोई दफनाना नहीं चाहता। पर करते वही हैं!
चिट्ठाकार अलग-अलग प्रकार के होते हैं। कुछ के पास ब्लॉग पर लिखने के सिवा कोई काम ही नहीं होता है। वे हर दिन ब्लॉग को अपडेट करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे चिट्ठाकार हैं जो खुद के और नौकरी के कार्यों से इतने व्यस्त रहते हैं कि ब्लॉगों को देखना ही बड़ी बात होती है। अगर वे कुछ समय निकालकर हफ्ते में एक लेख ब्लॉग पर डालते हैं, तो उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
शास्त्री जी,
आपकी दी राय को नज़र-अंदाज़ करने का सामर्थ्य मुझमे नहीं । पर आज विवश हूँ क्योंकि अभी दफन होने की चाह नहीं ।
आपके दिए रचनात्मक व सकारात्मक सुझाव अमल में ला सकूँ ऐसा यथासम्भव प्रयास करूँगा ।
धन्यवाद
संजय गुलाटी मुसाफिर
हा हा, व्यंग्य में ही काफी कुछ समझा गए आप। 🙂
चिट्ठा दफ्न करने के पांचों नुस्खे एकदम सुंदर हैं,अच्छा व्यंग्य शास्त्री जी, धन्यवाद।
मैं अपना चिटठा बहुत दिनों से दफ़न करना चाह रहा हूँ पर आप जैसे लोग उसे दफ़न होने ही नही देते हैं.. हाँ कुछ गलतियाँ हो जाती है जैसे हर दिन कहीं ना कहीं कमेंट कर देता हूँ.. और अपने काम मे से समय निकल कर अक्सर कुछ ना कुछ पोस्ट भी कर डालता हूँ.. पर आगे से ये गलती नही होगी.. 😀
और हाँ, देखिये.. मेरे इस कमेंट को मिला कर आपके पास कुल २४ नोबेल पुरस्कार हो गए हैं.. 🙂
वैसे बहुत ही अच्छा व्यंग है यह.. आपको बधाई..
चिटठाजगत मे हमने अभी तो जन्म लिया है और आप दफन होने की बात करते हैं … 🙁 थोड़ा जी लें (लिख ले), मधुरस (विभिन्न चिटठे) पी लें , फिर सोचेंगे..
सही कहा लिखो उससे पहले पढो