अंग्रेजी से विभाजित होता समाज

अंग्रेजी से विभाजित होता समाज में आशिष ने एक दर्दनाक घटना का हवाले देते हुए एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है: कब तक अंग्रेजी इस देश के अंग्रेजी न जानने वाले होनहार बालकों का भविष्य बर्बाद करती रहेगी.

Axe आज हर दिन हजारों प्रतिभाशाली भारतीय नौकरियों मे चुनाव से सिर्फ इस बात के कारण रह जाते हैं के वे गिटरपिटर अंग्रेजी नहीं बोल पाते है. मजे की बात यह है कि उन में से बहुतों को उन नौकरियों में अंग्रेजी की जरुरत नहीं पडती है, या नाम मात्र को पडती है जो वे जानते हैं. लेकिन चयनकर्ता की जिद है जरूरत न होने पर भी वे इस विदेशी भाषा को जरूरी ही समझेंगे. अंग्रेजी के प्रति गुलामी हमारे मनों में ऐसी हावी हो गई है कि हर जगह वह राज करती है.

चूंकि क्रांतिकारियों के एवं नेताजी सुभाषचंद्र बोस के शिष्यों ने मुझे बचपन में ही प्रभावित कर दिया था अत: मैं ने बचपन से हिन्दी में हस्ताक्षर करना शुरू कर दिया था. विदेश-यात्राओं में विदेशियों ने कभी इस मामले में मुझे नहीं टोका लेकिन हिन्दुस्तान में तमाम तरह के फारम भरते समय बहुतों ने टोकाटाकी की है. कई बार हिन्दी हस्ताक्षर के कारण वहनकर्ता या बेयरर चेकों द्वारा पैसे मिलने में काफी टोकाटाकी का सामना करना पडा है. अधिकतर ने पूछा कि आप तो पढेलिखे जान पडते है, लेकिन हिन्दी में हस्ताक्षर! एक ने पूछा कि क्या आप अंग्रेजी नहीं जानते क्या, जैसे कि सिर्फ अंग्रेजी के जानकारों को ही बैंक में लेनदेन की अनुमति दी जाती हो.

हम में से हरेक की जिम्मेदारी है कि अंग्रेजी को राजकाज के सिंहासन से उतार कर हिन्दी को उसका स्थान दिलाने की सतत कोशिश करें. अंग्रेजी से किसी तरह का विरोध नहीं है. भाषा कोई भी बुरी नहीं है. लेकिन जब हिन्दी के हक को अंग्रेजी मारने लगती है तो इस बात का विरोध होना जरूरी है.

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Author: Super_Admin

9 thoughts on “अंग्रेजी से विभाजित होता समाज

  1. अंग्रेजी तरक्की के लिए जरूरी तो है ही। लेकिन, अब बहुत कुछ बदला भी है। हिंदी भी बिक रही है ताकतवर हो रही है। आप जैसे हिंदी के शुभचिंतक हैं तो, आगे सब भला ही होगा।

  2. शायद अब हिन्दी में हस्ताक्षर के लिए नहीं टोका जाता, क्योंकि मैं पिछले पंद्रह वर्षों से केवल हिन्दी में ही हस्ताक्षर कर रहा हूँ और कहीं पर परेशानी नहीं आई।
    परंतु यह तो तय है कि अंग्रेजी न जानने वाला अन्य किसी भी क्षेत्र में पारंगत हो फिर भी गिटर-पिटर करने वालों के सामने सहमा-सहमा ज़रूर रहता है।

  3. शास्त्री जी कहानी यहाँ समाप्त नहीं होती । अभी हाल में एक हिन्दी की अध्यापिका से चर्चा चली । मैंने जब बताया कि कवर्ग से लेकर पवर्ग और अन्य स्वरों व अक्षरों की रचना इस आधार पर है कि मानव मुख से निकलने वाली हर संभव आवाज़ को अलग सा बोला व लिखा जा सके – तो यह जानकारी उनके लिए भी नई थी।
    किसी भाषा को सीखना जानना बुरा नहीं – पर इतनी समृद्ध भाषा को नकार कर …

  4. असली कारण हिन्दी(देवनागरी) की तकनीकी क्लिष्टता, भ्रष्ट वर्णक्रम, असंपुष्ट व्याकरण, नपुंसक लिंग का अभाव आदि हैं, जो हिन्दीतर भाषियों के लिए टेढ़ी खीर हैं। इस दिशा में हिन्दी विद्वानों को पहले ठोस कार्य करना चाहिए।

  5. अंग्रेजी और हिन्दी में लाग-डांट की बात क्यों की जाये। ज्ञान जहां, जिसमें मिले; सम्प्रेषण जहां जैसे बेहतर हो किया जाये।

  6. हम कितना कुछ कहकर मन बहला लें परन्तु बात आपकी पते की है । लगभग सारे हिन्दी साहित्य व हिन्दी में हर सम्भव अनुवाद पढ़ने वाले लोग भी अंग्रेजी के कॉमिक पढ़ने वालों के सामने अनपढ़ माने जाते हैं ।
    घुघूती बासूती

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