पिछले दिनों ओरछा (झांसी से 29 किलोमीटर) के 500 साल पुराने महल के अनुसंधान एवं भित्तिचित्रों के छायाचित्र लेते समय एक विरल चित्र दिखाई दिया. इसमें 11 स्त्रियों के शरीरों को जोड कर एक हाथी बनाया गया है एवं उस पर एक महावत विराजमान है.
हाथी की दुम एक स्त्री की चोटी है, सींगे हाथ हैं, एवं सूंड एक स्त्री का कमर और पैर है. मेरे अनुसंधान-साथी जिजो के घंटों की मेहनत से ही यह चित्र इस तरह पहचान लायक हुआ है. कारण ?? दर्शकों मे से बहुतों ने इस चित्र की एतिहासिकता एवं विरलता को न समझ कर उनकी जहां मर्जी वहां इसे नाखूनों से कुरेद दिया है. वनस्पति मूल से बने 400 साल या उससे अधिक पुराने ये चित्र दिन की रोशनी में उपस्थित अल्ट्रा वायलेट किरणों के कारण पहले ही हल्के पड चुके हैं. ऊपर से लौंडे लपाडों के नाखूनों ने बचीखुची कसर भी निकाल दी है.
पुरावस्तु विभाग अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचाने के लिये अब इस कमरे को बंद रखता है एवं छायाचित्र के लिये फ्लेश के उपयोग की अनुमति किसी भी हालत में नहीं देता है. अत: एक धुंधले पडे, खुरचे गये चित्र को अंधेरे में हम ने छायाचित्र लेकर काफी मेहनत करके, परिष्कृत करके, इसे आपके लिये यहां प्रस्तुत किया है. जो लोग हिन्दुस्तान के एतिहासिक विरासत के विनाश में आनंद पाते हैं वे इन चीजों की कीमत क्या समझें.
(कुछ विशेष कारणों से एतिहासिक धरोहरों के इन छायाचित्रों का प्रतिलिपि अधिकार सुरक्षित है. लेकिन webmaster@sarathi.info पर संपर्क करने पर तुरंत ही लिखित रूप में इनके उपयोग के लिये अनुमति प्रदान कर दी जायगी)
अच्छा चित्र, अच्छी जानकारी और लोगों की विनाशक दुष्प्रवृत्ति! पढ़ कर दोनो प्रकार के भाव एक साथ आये!
मैं तो यह सोच रहा हूँ कि इस चित्र को अपनी आँखो से देखने का आनंद ही अलग होगा।
आप सही कह रहे हैं प्राचीन धरोहर के प्रति समाज व सरकार की उदासीनता उसे धीरे-धीरे नष्ट करती जा रही है..जो बहुत चिन्ता का कारण है।..बहुत बढिया चित्र है।
ऐतिहासिक महत्व की चीजों के साथ ऐसा व्यवहार बेहद निंदनीय है। हमें इसकी घोर निंदा करनी चाहिये। इससे अवगत कराने का आपका प्रयास अति उत्तम है। धन्यवाद आपका।