यदि आपका स्थानीय अखबार आज सिर्फ व्यापर से संबंधित, कल सिर्फ खेल से संबंधित, परसों सिर्फ विज्ञान से संबंधित, एवं बाकी दिन मनमाने विषय (जिनकी पहले से आपको कोई सूचना नहीं है) छापे तो क्या आप उसे अपने घर मंगायेंगे? यदि आज से आपका टीवी केबल किसी भी चैनल पर मनामाना विषय दिखाने लगे तो क्या आप केबल सदस्यता जारी रखेंगे?
एक जमाना था जब एक गांव में हर कोई अपने आसपास का हर विषय जानना चाहता था. आज हर किसी को अनावश्यक जानकारी को हटानेमिटाने में ही काफी समय लगा देना पडता है. लेकिन दूसरी ओर लेखक, पत्रकार, विद्यार्थी, अध्यापक, अनुसंधान करने वाले, एवं विभिन्न विषयों की जानकारी का शौक करने वाले आदि लोग निश्चित विषयों पर नियमित रूप से खोज करते हैं. आज पश्चिम में ऐसे हजारों लोग हैं जो भारतीय कला, विज्ञान, इतिहास आदि पर आधिकारिक लेख पढना चाहते हैं. लेकिन हिन्दी में इस तरह के चिट्ठों एवं जालस्थलों की भारी कमी है.
नई शिक्षा प्रणाली के कारण सारी दुनियां में विद्यार्थीयों को विषयाधारित खोज एवं लेखन करना पडता है. इसका मतलब है कि विषयाधारित चिट्ठों के लेख कल भी उतने ही पाठक आकर्षित करेंगे जितना वे आज करते है. अत: यदि आप एक या अनेक विषय पर आधिकारिक जानकारी रखते हैं तो क्यों न उस विषय पर एक चिट्ठा चालू कर देते. या आपके आज के खिचडी-चिट्ठे को क्यों न उस विषय की ओर मोड देते.
संबंधित लेख:
चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: हिन्दी, हिन्दी-जगत, राजभाषा, विश्लेषण, सारथी, शास्त्री-फिलिप, hindi, hindi-world, Hindi-language,
अब हम क्या कहें। सबसे ज्यादा खिचड़ी तो हम ही पका रहे हैं। कीबोर्ड पर लिखते-लिखते खिचड़ी का अनुपात बदल जाता है! 🙂
पर आप सही कह रहे हैं।
एक ही विषय पर लिखना कुछ कुछ बोरिंग सा हो जाता है. ब्लॉगिंग है ही ऎसी विधा कि आपका जो मन आये वह लिखिये.लेकिन आपकी बात भी ठीक लगती है.
ज्ञानजी
खिचड़ी के साथ एक विशेष पकवान भी मानसिक हलचल में शामिल कर लीजिए।
हमारे महाशक्ति समूह पर कई प्रकार की खिचड़ी पकाई जा रही है। और भी तरह तरह के मसाले डालने का प्रस्ताव है। 🙂
मेरे ख्याल से विषय बदलते रहने से भी पाठकों की रूचि बनी रह सकती है।
वैसे चिट्ठों की खिचडी तो हम भी बना देते है ।
पर फिर भी आपके सुझाव पर ध्यान देंगे।
शास्त्री जी बहुत जरूरी बता उठाई आपने !मुझे लगता है अलग अलग विषयों पर अलग अलग ब्लॉग़ बनाना संभव नहीं है ! दूसरे इससे चिट्ठों की पाठक संख्या भी बढ्ने की बजाए घटेगी ! मेरा चिट्ठा यदि एक ही विषय पर सामग्री परोसने लगे तो एकरसता आ जाऎगी ! पाठक के लिए असली आकर्षण तो यह है कि वह यह जिज्ञासा लेकर मेरे चिट्थे पार आय कि आज मैंने क्या लिखा होगा !कोई भी चिट्ठा अपनी सामग्री के विषयों से नहीं विषय के बल्कि भीतर निहित भावधारा से पहचाना जाएगा ! वैसे इस मुद्दे पर और सोचा जा सकता है !
आपकी बात तो सही है किन्तु एक ही विषय के बारे में लिखने के लिए हमें उस विषय पर महारत होनी चाहिए । जब हम किसी भी क्षेत्र के विशेषज्ञ नहीं हैं तब यह नहीं कर पाते । मैं तो केवल जैक औफ मैनी ट्रेड्स मास्टर औफ नन की स्थिति में हूँ ।
घुघूती बासूती
मैं आपसे सहमत हूं शास्त्री जी।
अगर एक ही विषय पर हम लिखेंगें तो उस विषय में रूचि रखने वालों को आसानी हो जाएगी, सीधे उस चिट्ठे पर जाकर पढ लेंगें साथ ही जिनको रूचि नहीं है वे उस चिट्ठे पर अनावश्यक क्लिक नहीं करेंगें।
लेकिन जो किसी एक विषय के अच्छे जानकार नहीं है वे अलग-अलग विषयों पर लिखते रहे।
मैनें हमेशा ही यह पद्धति बनाए रखी। पुरवाई पर हिन्दी साहित्य से कविताएं ही रखती आई हूं और अंताक्षरी में हिन्दी फ़िल्मी गीत। इसी तरह रेडियोनामा में केवल रेडियो की बातें।
आपकी बात को ध्यन में रखूँगा।
kah nahi sakti ki kitni sarthak hai meri baat,magar mujhey lagta hai ki har chitthey key kuch khaas readers hotey hain jo khud ko us blog se relate kar paatey hain aur usey pasand kartey hain phir chahye vahan khichdi hi kyu na parosii jaa rahi ho….vaisey aapki baat uchit hai..maargdarshan ka bahut shukriya
नीलिमा जी की बात तर्कसंगत लगी!!
विषय आधारित चिट्ठे तो आपकी बात सही है पर हर विषय पर एक अलग ब्लॉग तो असंभव सा काम है. लेकिन आपके सुझाव आकर्षक है. वैसे मैंने अभी तक तो जो भी लिखा है वो खिचडी ही है पर आगे सुधरने का प्रयास करूंगा.
फिलिप जी,
दो ब्लाग मै लगातार देखता हूँ एक तो ज्ञान जी का और दूसरा उडन तश्तरी वाला। दोनो ही आपके अनुसार खिचडी है। पर देखिये लोग कैसे जुडकर पढते है। ऐसा लगता है जैसे वे हमारे अपने जीवन के बारे मे लिख रहे है। वैसे आपका यह सारथी भी तो खिचडी है। फिर यह कैसा उपदेश दे रहे है। वैसे कहा गया है कि पर उपदेश कुशल बहुतेरे।