सारथी के विषयाधारित चिट्ठे ही क्यों ?? में में ने विषयाधारित चिट्ठों का महत्व बताया था. कई हिन्दी चिट्ठाकारों के लिये विषय अपने आप में इतना नया है कि टिप्पणी द्वारा कई चिट्ठाकारों ने काफी महत्वापूर्ण प्रश्न उठायें हैं जिनका उत्तर नीचे जोडा जा रहा है.
- प्रस्तावना: अगर एक ही विषय पर हम लिखेंगें तो उस विषय में रूचि रखने वालों को आसानी हो जाएगी, सीधे उस चिट्ठे पर जाकर पढ लेंगें साथ ही जिनको रूचि नहीं है वे उस चिट्ठे पर अनावश्यक क्लिक नहीं करेंगें। लेकिन जो किसी एक विषय के अच्छे जानकार नहीं है वे अलग-अलग विषयों पर लिखते रहे। मैनें हमेशा ही यह पद्धति बनाए रखी। पुरवाई पर हिन्दी साहित्य से कविताएं ही रखती आई हूं और अंताक्षरी में हिन्दी फ़िल्मी गीत। इसी तरह रेडियोनामा में केवल रेडियो की बातें। अन्नपूर्णा
- उत्तर: हर कोई किसी न किसी विषय का जानकार होता है. समस्या जानकारी की नहीं बल्कि पहचानने की है कि किस विषय पर वे लिख सकते है. उदाहरण के लिये, थोडी सी मेहनत एवं एक केमरा-मोबाईल की सहायता से कोई भी व्यक्ति अपने शहर के दर्शनीय स्थानों के बारें में एक अच्छा चिट्ठा बना सकता है. कम से कम उस शहर के बाहर निवास कर रहे चिट्ठाकारों की जानकारी से अधिक आधिकारिक होगा आपका चिट्ठा.
- प्रस्तावना: दो ब्लाग मै लगातार देखता हूँ एक तो ज्ञान जी का और दूसरा उडन तश्तरी वाला। दोनो ही आपके अनुसार खिचडी है। पर देखिये लोग कैसे जुडकर पढते है। ऐसा लगता है जैसे वे हमारे अपने जीवन के बारे मे लिख रहे है। वैसे आपका यह सारथी भी तो खिचडी है। फिर यह कैसा उपदेश दे रहे है। वैसे कहा गया है कि पर उपदेश कुशल बहुतेरे। (दर्द हिन्दुस्तानी)
- उत्तर: ज्ञान जी एवं समीर जी दोनों ही मिश्रित विषयों पर लिखते हैं लेकिन इसके बावजूद उनको पाठक मिलते हैं. इसका कारण उन दोनों व्यक्तियों का चुम्बकीय आकर्षण (Charisma) है. वे अपवाद हैं. मैं और आप उस स्तर तक शायद ही कभी पहुंच पायें. अत: उनके चिट्ठे का उदाहरण न लें. रही सारथी की बात. आपने शायद ध्यान नहीं दिया कि सारथी एक निश्चित ध्येय के साथ लिखा जाता है, और वह है दिशादर्शन/मार्गदर्शन. दस में से पांच लेख सफल चिट्ठाकारी पर एवं बाकी कम से कम चार किसी न किसी विषय पर दिशादर्शन/मार्गदर्शन होता है. उम्मीद है कि मेरे पर-उपदेश को आप इस पृष्ठभूमि में देखने की कोशिश करेंगे.
बाकी कल के लेख में !!
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लिखना मैं भी विषय बद्ध चाहता हूं। इसी कारण से ‘रेलगाड़ी’ नामक ब्लॉग बनाया था। पर उसमें नौकरी में होते हुये मुक्त भव से नहीं लिख पाया।
विषय प्रधान ब्लॉग मुझे भी पसन्द हैं। आपको ज्ञात होता है कि आप किस लिये वहाँ जा रहे हैं।
मैंने पाया कि मैं जितना अपने विषय से जुडकर लिखता हूँ उतना ही वाञ्छित (पाठकों) से जुड रहा हूँ। इसका एक लाभ और हुआ कि जब पाठक को अपने पसंद का विषय मिलता है तो वह आपके लिखे पुराने लेख भी देखता है। यह बात मुझे सबसे अधिक उत्साह-वर्धक लगी।
शास्त्री जी ने मुझे मेरे ब्लॉग से संबंधित जितने भी सुझाव दिए – वे सभी फायदेमंद रहे।
धन्यवाद शास्त्री जी,
मार्गदर्शन करते रहें
हमारी दुविधा यह है कि अगर हम एक ही विषय पर लिखना शुरु करें तो वहीं के हो जाएँगे क्योंकि छठी से दसवीं कक्षा के बच्चो के लिए एक ब्लॉग बनाने का विचार बहुत पहले से है.देखो कब वह इच्छा पूरी होती है…
मेरे दो चिट्ठे ,drdhabhai.blogspot.com ,merachithha.blogspot.com,पहला स्वास्थ्य चर्चा जो कि स्वास्थ्य विषयक है,व दूसरा तत्वचर्चा जो कि समसामयिक है इस प्रकार आप दो भी हो सकते है
फिलिप जी,
कुल मिलाकर सौ तो सक्रिय ब्लाग है। (फुरसतिया जी को पढे) ऊपर से आप कह रहे है इसको छोड दे उसको छोड दे। मुझे लगता है कि नये ब्लागरो को सही मार्गदर्शन की जरूरत है। आपने खुद माना है कि दस मे से पाँच लेख सारथी पर विषय आधारित होते है। तो यह तो खिचडी ही हुआ न। फिर आप कहते है विषय आधारित ब्लाग लिखना चाहिये। इसीलिये कहा कि पर उपदेश कुशल बहुतेरे। वैसे यह मेरी भी गल्ती है कि इस ब्लाग पर आकर व्यर्थ ही समय बरबाद करता हूँ। आप स्वतंत्र है कुछ भी लिखने के लिये। शुभकामनाए।
@दर्द हिन्दुस्तानी
प्रिय दोस्त, इतने जल्दी हथियार मत डालिये. यदि आपको लगता है कि आपकी बात अधिक सही है तो जरूर कहिये. चर्चा का मतलब ही यह है.
एक बात और न भूलें. कई चिट्ठाकर उन टिप्पणियों को हटा देते हैं जो उनको नहीं पसंद है या जो उनके कथन पर प्रश्नचिन्ह लगाते है. लेकिन सारथी पर आज तक किसी भी चिट्ठाकार की एक टिप्पणी को भी इसलिये नहीं मिटाया गया है क्यों कि मैं विचारों के स्वतंत्र आदानप्रदान में विश्वास रखता हूं. अत: आप जरूर अपनी बात यहां पर आगे भी रखें. जितने लोग किसी विषय पर मेरा प्रस्ताव पढेंगे उतने ही लोग आपका प्रस्ताव भी पढेंगे. प्रबुद्ध पाठकों को अवसर मिलेगा कि एक विषय पर भिन्न दृष्टिकोण को सुने, समझें, एवं अपनी स्वतंत्र राय बनायें — शास्त्री
पुनश्च: आप टिप्पणी नहीं करेंगे तो सारथी को बहुत नुकसान होगा, क्योंकि विचारों के आदानप्रदान से ही हम मानसिकबौद्धिक स्तर पर संपुष्ट होते हैं
विषय आधारित चिठे सँभालने आसान नही हैं, आपको लगातार निरंतरता बनाये रखनी होती है क्योंकि पाठक भी लगभग समान रूचि वाले होते है उदाहरण के लिए चवन्नी जी फिल्मों का अवलोकन करते हैं तो मुझे इंतज़ार रहता है, शनिवार का, अगर वो किसी शनिवार को चुकते हैं तो बहुत से पाठक निराश हो सकते हैं, जो commit नही हो सकते उनके लिए तो यही बेहतर है वो जब जिस मूड में हो उसी की बात करें, वैसे अगर आप किसी ख़ास विषय पर भी लिखना चाहते हैं तो दो अलग ब्लॉग बना सकता हूँ
चलिये इस बहाने चर्चा तो हुई.अब एक चीज और बतायें यदि कोई खुद के डोमेन पर है जैसे मैं या आप भी तो क्या उसे भी अलग अलग चिट्ठे बनाने चाहिए.इससे तो ब्लॉग मैंटीनेंस में ही इतना टाइम लग जायेगा कि लिखने के लिये समय ही नहीं बचेगा.अलग अलग ब्लॉग की मैंटीनैंस से बचने के लिये तो अपने डोमेन पर गया था.ताकि सब कुछ एक ही जगह लिख सकूँ. 😉
@सजीव
प्रिय सजीव, एक अच्छा विषय (जैसे “भारतीय संगीत”) मिल जाये तो विषय आधारित चिट्ठे को कभी भी विषय की कमी नहीं रहेगी.
@काकेश
प्रिय काकेश, विषयाधारित चिट्ठों के बारे में मैं ने जो कहा है उसे मैं ने जिस तरीके से कहा है उसे समझें — मेरे कहने का मतलब यह है कि विषयाधारित चिट्ठों को नियमित पाठक लम्बे समय के लिये मिलने की संभावना है. बाकी लोगों को पाठक मिलने के लिये व्यक्तिगत संबंधों पर निर्भर करना पडेगा.
18 नवम्बर से http://mahashaktigroup.blogspot.com पर आपका मौजूद है।
अगर विषय बड़ा होगा तो लिखने के लिए कुछ न कुछ मिल ही जाएगा | अगर विषय छोटा है तो मुश्किल होगी, मगर मुझे लगता है की एक लेखक वही है जो अपने पसंद किए विषय पर हर वक्त कुछ नया सोच सके और लिख सके | प्रेरणा लेने के लिए कई तरीके है जरूरत है खोजने की और कड़ी मेहनत की |