सारथी का एक लक्ष्य अन्य चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित एवं प्रोमोट करना है. गद्य पद्य आदि से चुने हुए मोती इस लक्ष्य के साथ चुने-प्रस्तुत किए जाते है. उम्मीद है कि ये आपके लिये उपयोगी सिद्ध होंगे.
पेट भरते ही भले लोग
सिगडी की बुझा देते आग
पर जिनके मन में है
दौलत और शौहरत की आग
वह कभी नहीं बुझती
(तब तक जलती रहेगी यह आग)
मगर किसी रोज यूं भी होता है,
कि मर जाता है कोई ख्वाब,
पलकों से गिर कर टूटता है,
चूर हो जाता है,
और उम्मीदों की हवा भी जैसे बंद हो जाती है, (मौत)
सिसक कर जीते जाएँ भाव मेरे
तड़प कर मरते जाएँ भाव मेरे
सर पटक रोते जाएँ भाव मेरे
जीवन पाना चाहें भाव मेरे !!
(सिसकते भाव)
शब्दों ने
कुछ और कहा है
अर्थों ने
कुछ और गुना है
समझ बूझकर चलने वाले
रस सागर में डूब चुके हैं (सन्नाटों में आवाज़ें)
कोने का बूढ़ा बरगद
निर्विकार सा खड़ा था
सदियों से
बार-बार
दोहराई जा रही
इन्सान की
दोगली प्रवृति का
मूक दर्शक! (प्रवृति!)
Worth Collecting & understanding
मुझे लगता है – और मैं गलत हो सकता हूं – कि हिन्दी ब्लॉग जगत में काव्य ज्यादा ही लिखा जा रहा है।
kaafi din baad aap ke dwaraa kavya avlokan dekah , accha laga
wonderfully presented
कव्यावलोकन कराने के लिए धन्यवाद. कविताओं से अच्छी आपकी प्रस्तुति है .
मेरे सिसकते भाव को सारथी में स्थान दिया .. शुक्रिया