विज्ञान के नाम पर एक फ्रॉड

डार्विन के विकासवाद के प्रमाण के रूप में निम्न चित्र अकसर पाठ्यपुस्तकों में दिखाया जाता है. मजे की बात है कि आज से सौ साल पहले प्रमाणित हो गया था कि यह चित्र एक फ्रॉड है, लेकिन आज भी किताबों में चल रहा है.

Embryos

मानव एवं कई जानवरों के भूणों के इस चित्र को अर्नेस्ट हेकल नामक एक जर्मन वैज्ञानिक ने बनाया था. इस की सहायता से उन्होंने यह स्थापित करने की कोशिश की कि सारे जीव वाकई में डार्विन के विकासवाद के अनुसार ही विकसित हुए हैं.

लेकिन जैसे ही खुर्दबीनों का निर्माण आसान हुआ और जैसे ही औरों ने भ्रूणों का अध्ययन शुरू किया वैसे ही यह स्पष्ट हो गया कि अपने इष्ट सिंद्धांत को सिद्ध करने के लिये हेकल ने असल चित्र में काफी हेरफेर करके यह चित्र बनाया था. बहुत जल्दी ही जर्मन वैज्ञानिक जगत में कई लोगों ने हेकल पर धोखधडी का अरोप लगाया एवं हेकेल ने यह मान लिया कि इस चित्र में उन्होंने हेराफेरी की है. उन्होंने यह भी माना कि उनके अनुसंधान क्षेत्र में काम कर रहे कई वैज्ञानिक अपने इष्ट सिद्धांतों का समर्थन करने के लिये इस तरह का हेरफेर करते है. धोखाधडी स्वीकार करने के बाद वैज्ञानिक जगत में हेकल का प्रभाव बहुत कम हो गया, लेकिन मजे की बात है सौ साल के बाद भी यह छद्म-चित्र भारतीय किताबों में मौजूद है. (अधिकतर पाश्चात्य देशों की किताबों ने 1960 आदि में इस चित्र को रिटायर कर दिया था).

संबंधित लेख:
डार्विन: विज्ञान है या कोरी गप
ईश्वर की ताबूत का आखिरी कील !
अंतरिक्ष में ईश्वर नहीं दिखे!
विज्ञान ने ईश्वर को नकार दिया है ?

Share:

Author: Super_Admin

9 thoughts on “विज्ञान के नाम पर एक फ्रॉड

  1. हजार साल, सौ साल की छोड़ीये, आज हम विकसीत होते भ्रुण को देख सकते है. उसे के अनुसार बात करें.

    प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती.

  2. सच है शास्त्री जी ,हीकेल ने ‘आन्टोजेनी रीकेपीटूलेट्स फिईलोजेनी’ सिद्धांत के जरिये यह बतायाथा कि जीवों की भ्रूनीय अवस्था उनके विकासिक इतिहास की प्रतीति कराते है .आज भी इसके लिए किसी पुस्तक की तस्वीर देखने के बजाय कोई भी जानवरों के भ्रूणों की तुलना कर उनके साम्य को देख सकता है ऑर सहज ही यह निष्कर्ष निकाल सकता है -कि सभी जीवों मे एक आदि साम्यता है उनकी साझा विरासत है –
    सकल राम मय सब जग जानी करऊँ प्रणाम जोरि जुग पानी
    भला इससे डार्विन का मत कहाँ खंडित होता है शास्त्री जी ?
    रही पुस्तक के चित्रों की बात तो उसमे चित्रांकन मे कोई गलती हो सकती है .सिद्धांत अपनी जगह दुरुस्त है .

  3. मतलब यह कि –
    खोटा सिक्का सच्चे सिक्के को चलन से बाहर कर देता है
    यह सिद्धांत विज्ञान में भी यथावत बरकरार है.

  4. रोचक जानकारी है – पहले मुझे मालूम नहीं थी। पर यह अवश्य है – कई बार हम किसी विचारधारा को प्रमाणित करने के लिये तर्क गढ़ते हैं और वह करने में किसी भी सीमा तक चले जाते हैं – छद्म की सीमा में भी!

  5. @ज्ञानदत पाण्डेय
    आपने कहा “कई बार हम किसी विचारधारा को प्रमाणित करने के लिये तर्क गढ़ते हैं और वह करने में किसी भी सीमा तक चले जाते हैं – छद्म की सीमा में भी!”

    यदि हर पाठक इस निष्कर्ष तक पहुंच जाये तो इस लेख का उद्धेश्य पूरा हो जायगा — शास्त्री

  6. वैसे अपनी विचारधारा को प्रमाणित करने के उद्देश्य से ऐसा छद्म और कुत्सीत तरीका अपनाना कहीं से भी उचित नही है , मगर इतिहास के पन्नों में ऐसे कई उदाहरण अनायास ही मिल जायेंगे .निश्चित रूप से मैं सहमत हूँ आपसे कि – धोखाधडी स्वीकार करने के बाद वैज्ञानिक जगत में हेकल का प्रभाव बहुत कम हो गया, लेकिन मजे की बात है सौ साल के बाद भी यह छद्म-चित्र भारतीय किताबों में मौजूद है.आज तो सब कुछ साफ हो चुका है , हाथ कंगन को आरसी क्या ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *