अंग्रेजी का विषचक्र

जैसा मैं कई बार दुहरा चुका हूं, कोई भी भाषा बुरी नहीं है, न ही मेरा किसी भी भाषा से विरोध है. मैं हिन्दी मीडियम का पढा हूँ, लेकिन आज अपने प्रयत्न से धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलता हूँ. इस बात को मन में रख कर इस प्रविष्टि को पढें.

Slavery अंग्रेज लोग लुटेरे थे एवं दुनियां को लूट कर उन्होंने आपने आप को धनी एवं संपन्न बनाया. इस लूट को जारी रखने के लिये उन्होंने स्थानीय भाषाओं को रौन्दा एवं अंग्रेजी को राजकाज व सरकार (शासन) की भाषा बना दी. वे चले गये. लेकिन आज भी उच्च स्तर की सरकारी नौकरियां पाने/करने के लिये अंग्रेजी जानना जरूरी है. जो इस तरह की नौकरियों में है उन्होंने अपने बच्चों को भी अंग्रेजी में पढाया अत: जो परिवार शुरू से अंग्रेजी में पटु थे वे अच्छी से अच्छी नौकरियों में जाकर संपन्न हो गये.

जो इस संपन्न समाज के बाहर थे उनके लिये अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों मे भेजना कठिन था क्योंकि सिर्फ प्राईवेट विद्यालय इस तरह की सुविधा देते थे, एवं उनके ग्राहको बढती संपन्नता के साथ इन स्कूलों की फीस भी आसमान छूने लगी. इस तरह जो संपन्न था वह

संपन्नता–>अंग्रेजी–>संपन्नता

के पोषक-चक्र का फायदा उठाता था जबकि जो इसके बाहर थे वे

गरीबी–>देशजभाषा–>गरीबी

के विषचक्र में फंस जाता था. आज यही हिन्दुस्तान में हो रहा है. यह विषबीज बोया अंग्रेजों ने था, लेकिन उखाड फेंकना हमारी जिम्मेदारी है. अत: आज जरूरत अंग्रेजी के विरोध की नहीं है, बल्कि जरूरत इस विषचक्र को तोडने की है. इसके लिये कई कार्य करने होंगे जिनको हम भावी लेखों में देखेंगे.

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Author: Super_Admin

15 thoughts on “अंग्रेजी का विषचक्र

  1. भाषा तो हमें मानव होने का वास्‍तविक एहसास देती है. हिंदी हो या अंग्रेजी, इसी के कारण हम प्रकृति के सबसे विकसित प्राणी हैं. भाषाओं के प्रति दुराग्रह अज्ञानता के अतिरिक्‍त और कुछ नहीं. अंग्रेजी वर्तमान समय का वह सच है जो हमें स्‍वीकार करना ही होगा. सारी दुनिया हिंदी नहीं जानती और जिसे दुनिया से संवाद करना है उसे अंग्रेजी भी सीखनी होगी.

  2. दुष्चक्र से बाहर आने को जबरदस्त इच्छा शक्ति चाहिये। वह कहीं दीखती नहीं।

  3. aapakaa kathan saty hai . Kai bar mujhe aise logo se milane ka mauka mila hai jo apane kam me sarvshresth hai par . bhasha ke abhav me kam suvidhao me kam kar rahe hai. aise hee ek bar hotel ke khansame se bat ui.he was realy too good with food.usane bataya ki use bado hotelo me kam nahee milata kyoki use english nahee ati .jab ki usake sath ke khuch log kam kar rahe hai.Use pata hai wah acha kam karta hai lekin confidence nahee hai .kis par apnee bhasha par.ya khud par.ua us smaj par jo uske hunar ko tavvjo nahee deta……

  4. अंग्रेजी के कारण और भी कई दुष्चक्र अस्तित्व में हैं। इनमें से एक ये भी है-

    अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा एवं अंग्रेजी को अनावश्यक महत्व –> स्वभाषा की उपेक्षा –> अप्रयोग के कारण स्वभाषा ज्ञान में कमी –> अज्ञान के कारण स्वभाषा का तिरस्कार और स्वभाषा के बारे में गलतफहमी –> स्वभाषा की और अधिक उपेक्षा …

  5. संपन्नता और अंग्रेजी के दुष्चक्र को कैसे तोड़ा जाये? आज हिन्दी माध्यम से कौन पढ़ता है? वही जो अंग्रेजी माध्यम से नहीं पढ़ सकता यानि जो गरीब है. हिन्दी माध्यम से अपने बच्चों को पढ़ाने वाला इसलिये अपने बच्चों को हिन्दी में पढ़ाता है क्योकि वह अंग्रेजी में नहीं पढ़ा सकता.

  6. जब इधर उधर नज़र डालो तो अनुभव यही होता है कि आज के समय की माँग है कि हिन्दी का प्रयोग करते हुए हीनभावना न हो और अंग्रेज़ी का इस्तेमाल करते हुए ग्लानि का भाव न आए.

  7. शास्त्री जी,
    सही सोचते हैं आप। बहुत कम लोग जानते होंगे कि एक समय स्वयं इंगलैण्ड में लोगों ने अंग्रेजी छोड फ्रेंच भाषा का प्रयोग शुरू कर दिया था। कुछ बुद्धिजीवियों की सोच थी कि इससे एक संस्कृति का ही पतन हो जाएगा। यही सोच कर वहाँ अंग्रेजी का पुनःचलन किया गया।

    वे तो गुलामी से निकल गए, हम आज भी मानसिक-दास ही हैं।

  8. इग्लिश और शादी दोनो एक समान हे , दोनो के बिना भी सम्भव नहिन , दोनो के साथ भी सम्भव नहिन

  9. अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान पर अंग्रेजी थोपने के पहले स्वयं हिन्दी सीखी थी। टूटी फूटी हिन्दी में ही हुक्म चलाते थे, अंग्रेजी में नहीं। यथा- “टुम क्या करटा हाय!”

    सच तो यह है कि आपको, हमको, किसी को भी पूरी अंग्रेजी नहीं आती, जबकि लाखों, करोड़ों को पूरी हिन्दी आती तो है।

    अंग्रेजी की लोकप्रियता Basic Latin लिपि की तकनीकी सरलता के कारण बढ़ी है, हिन्दी (देवनागरी) तथा भारतीय लिपियाँ अपनी तकनीकी जटिलता के कारण ही पिछड़ी हैं। अंग्रेजी को कोसने के वजाय अच्छा होगा कि हम भारतीय लिपियों को तकनीकी रूप से सरल और सपाट बनाएँ।

  10. आपकी बात से सहमत हूँ पर मुझे भी लगता है कि इच्छाशक्ति की सर्वत्र कमी है. इसमे शायद मैं भी शामिल हूँ.

  11. भाषा का सवाल बड़ा जटिल है ,अंगरेजी के प्रति दुराग्रह ऑर हिन्दी को लेकर आत्ममुग्धता दोनों ही ठीक नही है .हिन्दी का सबसे ज्यादा नुकसान ख़ुद हिदी वालों ,खासकर तथाकथित हिन्दी के साहित्यकारों ने किया है .आज हिन्दी विद्यालयों ,विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभाँगो मे कैद होकर छटपटा रही है .आज के हिन्दी ‘साहित्य ‘ मे ज्ञान विज्ञान के प्रति अभी भी कूप मनडूकता है . रोजमर्रा ऑर सरकारी काम काज मे हिदी का कोई मानक स्वरूप ही नही बन पाया है .उत्तर प्रदेश की हिन्दी अलग है तो म प्र की अलग ऑर राजस्थान की अलग ,कहीं डाईरेक्टर निर्देशक है तो कहीं संचालक ऑर कहीं सिर्फ़ निदेशक .हाऊ फनी !अनेक उदाहरण है ,शास्त्री जी की पीडा समझी जा सकती है .वह पीडा हमारी भी है मगर हमे अत्मान्वेषण भी करना होगा .रहिटोरिक से ही काम नही चलेगा .हमी अभी भी ऐसे विद्वानों की जरूरत है जिनका अंगरेजी ऑर हिन्दी पर समान अधिकार हो -हरिवंशराय बचचन ऑर फिराक गोरखपुरी तो पेशे से अंगरेजी के ही विद्वान् थे पर हिन्दी/उर्दू के अनन्य सेवक रहे .ऐसा हो तो बात बने !

  12. शास्त्री जी, सबसे प्रथम पैराग्राफ मेरे ऊपर भी सत्य है परन्तु फ़िर भी, आपके लेख से आज ख़ुद को वैचारिक रूप से असहमत सा पाता हूँ.

  13. आपकी बात से सहमत हूं। मैं स्वयं अंग्रेजी का अज्ञानी हूं और भुक्तभोगी हूं। अंग्रेजी के अज्ञान में परिवार की आर्थिक स्थिति ही मूल कारक रही। आज इसके बिना गुजारा मुश्किल है यह भी समझ आ गया है पर वक्त भी हाथ से जा चुका है। जिस क्षेत्र में काम कर रहा हूं वहां अगर अंग्रेजी की पारंगतता भी होती तो बहुत कुछ और भी किया जा सकता था। पर शायद यही प्रभु की इच्छा । भरसक प्रयास रहता है कि अंग्रेजी भाषा से अब दुराव न हो। बेटे को अंग्रेजी पढ़ा रहा हूं। अच्छा लेख । शुक्रिया….

  14. अधिकांश लोग प्रकारांतर से बिन अंग्रेजी सब सून कह रहे हैं। हरिरामजी देवनागरी के आगे रोमन के गुणगान कर रहे हैं। कंप्यूटर के लिए रोमन बेहतर हो सकती हैं परंतु भारत में सब के पास कंप्यूटर नहीं है और देवनागरी की तुलना में चीनी, जापानी, हिब्रू या अरबी की लिपि तो और अधिक दुष्कर है। कम से कम देवनागरी जैसी बोली जाती वैसी ही लिखी जाती है।
    पर्यानादजी ने कहा कि जिसे दुनिया से संवाद करना है उसे अंग्रेजी भी सीखना होगी। जनाब यह बिलकुल ग़लत सोच है। अंग्रेजी को लेकर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कुछ पुराने ब्रिटिश उपनिवेशों में ही आप काम चला सकते हैं, जबकि विश्व में 200 से अधिक देश हैं। यदि आप फ्रांस, जर्मनी, स्विटज़रलैंड, जापान, चीन, ईरान, पुर्तगाल, रूस या किसी और देश में जाते हैं तो आपका अंग्रेजी का सारा ज्ञान धरा रह जाएगा।
    भारत की पूरी जनसंख्या को बाहर संवाद नहीं करना होता। ज़रा बिना किसी पूर्वाग्रह के सोचिए, देश की अधिकांश नौकरियाँ और काम धंधे ऐसे हैं जिसमें जीवन भर कभी अंग्रेजी की ज़रूरत नहीं है फिर हर बच्चे पर अंग्रेजी का बोझ क्यों। जिन कामों में वास्तव में अंग्रेजी की ज़रूरत है केवल उन्हीं लोगों अंग्रेजी में प्रशिक्षित करना चाहिए।
    अंग्रेजी के द्वारा दुनिया से संवाद की धारणा ही ग़लत है। वैसे भी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में पहले तीन स्‍थानों पर स्पैनिश, फ़्रेंच और चीनी है।

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