कुछ दिन पहले मैं ने अपने लेख सडक छाप कुत्ते की जनानी कौन? में एक अंग्रेजीदां लडकी के बारे में बताया था जो हमारे ट्रेन कंपार्टमेंट में जितने बेचारें गांव वाले एवं अंग्रेजी के अज्ञान लोग थे उनको “सडकछाप कुत्ते” विशेषित कर रही थी. लेकिन यह इस सिर्फ उस घमंडी अंग्रेजीदां छोकरी मात्र की कहानी नहीं है, बल्कि अंग्रेजी माध्यम में पढे बहुत लोगों की कहानी है.
समस्या यह है कि देश की आजादी के साथ साथ अंग्रेजी स्कूलों के जो कुकरमुत्ते उगे उन में से अधिकतर की नजर पैसे पर थी, न कि देश के लिये भावी पीढियां तय्यार करने पर. इस कारण इन में से बहुत से विद्यालयों मे देशज भाषाओं की जम कर उपेक्षा की गई, देशीय संगीत, संस्कृति, नायकों आदि का मजाक उडाया गया. फलस्वरूप अपने ही देश में इस तरह की एक पीढी पालपोस कर तय्यार हो गई जिनको हर हिन्दुस्तानी चीज हेय लगती है.
दुर्भाग्य से अंग्रेजी का विषचक्र मे जैसा मैं ने कहा, अंग्रेज चूंकि शासन एवं व्यापार के सबसे ऊंचे तबकों का पूरा अंग्रेजीकरण करके गये थे, (कृपा मेकाले नामक अंग्रेज की) अत: यह अंग्रेजी-भक्त, देश-विरोधी पीढी सीधे देश के ऊंचे से ऊचे स्थानों पर पहुंच गई. ये लोग अपने सरकारी नौकरी या व्यापार में जम कर पैसा बनाते हैं, लेकिन भारत एवं भारतीयता इनको दूर से भी नहीं भाते.
ऐसे लोगों के दुष्प्रचार के करण आज भी कई विदेशियों के मन में हिन्दुस्तान का एक ही चित्र है — नंगे भूखे, अपढ लोगों का देश. अपनी विदेश यात्राओं के दौरान लोगों की इन गलतफहमियों का निराकरण करने के बहुत मौके मिले हैं.
जैसा मैं ने एवं कई अन्य चिट्ठाकारों ने बारबार लिखा है, अंग्रेजी से हमारा कोई विरोध नहीं है. लेकिन जो विषचक्र हम सब को जकडे है उसे तोडने के लिये हरेक को आगे आना होगा. उदाहरण के लिये, यदि आपके बच्चे अंग्रेजी माध्यम से पढते हैं तो यह आपकी जिम्मेदारी है कि वे अपनी मातृभाषा एवं भारतीय संस्कृति के भी निकट रहें. यह कैसे करना होगा यह आपके ऊपर है.
लेकिन जो विषचक्र हम सब को जकडे है उसे तोडने के लिये हरेक को आगे आना होगा
बिलुकुल सही कहा है आपने , तो क्या पूरा हिन्दी ब्लॉगर समाज इस बात के लिये तैयार है की इस वर्ष हम सब बड़ा दिन और नव वर्ष की बधाई नहीं देगे क्योकि ये अग्रेजो की परंपरा है । अगर इग्लिश आप को पिछड़ेपन का एहसास दिलाती है तो इन दो दिनों का आप को भी शिव सैनिको की तरह बहिष्कार करना होगा , इन दो दिनों को काला दिवस के रूप मनाने कि ताकत अगर आप मे है तो आप सच मे Hindi भक्त है और किसी दोहरी मानसिकता के शिकार नहीं है ।
भारतीये संस्कृति मे हमेशा ही सबको समेत कर आगे बदने की ताकत रही है और हर कोई महात्मा गाँधी नहीं हो सकता जो अपने बच्चो को अनपढ़ रखे ।
क्यो फिर आप सब बी जे पी को , मोदी को हिंदुत्व का तमगा देते है । वो भी आप की तरह भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते है ।
आईये दोहरी मानसिकता का आवरण उतर फेके और जो सलाह दूसरो को देते है खुद पर लागू करे ।
नये साल और बडे दिन की बधाई को हिन्दी मे ना डे कर इन दो दिनों का इस लिये बहिष्कार करे क्योंकी हमे इंग्लिश और अंग्रेजो की गुलामी अब नहीं करनी है
एकदम सही लिखा है सारथी जी, मैं खुद इस बात का गवाह हूँ, जब मैंने विदेश से आने वाले एक भारतीय युवक के साथ उसके अंग्रेज सहायक को देखा, लेकिन उसके अपने शहर में भारतीय अधिकारी/कर्मचारी उस अंग्रेज के सामने बिछे-बिछे जा रहे थे, जबकि वह अंग्रेज शर्मिन्दा होकर बार-बार कह रहा था कि यह भारतीय युवक मेरा बॉस है, लेकिन वह अधिकारी उस भारतीय युवक को कोई भाव देने को ही तैयार नहीं था, अब बताईये उस अंग्रेज के मन में इस देश की कैसी छवि निर्माण हुई होगी?
apke lekh se mai bhut prabhavit hoa .
hamari soch bhi kush isi tarah ki hai.
ise parkar hame mansik bal mila sath hi yah visvash jaga ki koi hamari bhi tarah kik soch ka vayakti hai.
log apni thori si soch badal de aur apne des apni bhasa se lagav rakhe to yah deshit me hi hoga.
sochniy vishay hai. desh angrejo, angreji se gulam hua. desh bhakto ne azadi ke liye lambi larayee lardi. azadi mili. kya itna balidan kafi nahi tha. desh ke garib, kamjor, nirksharo v 80 cror janata ki bhasa par agrej hindustaniyo ne punah kabja kar liya. jish desh ki praja ki bhasa itni dayniy ho, us desh ke prajtantra ki sthiti kya hogi.
thik
apke lekh se mai bhut prabhavit hoa .
mera bharat mahan bus kahane ko hi hai….
i am also indian… but we indians have durty politics….hum aapas main hi ladte hai//
apne jo kaha wo bilkul sahe hai per mai apne jo rai dena chahta hu wo ye hai k eska mukhy karan to hm he hai agar angreje school khule to hm unka baheskar karsakte the per hamne to aisa nahe keya hm apne bacho ko angreje k leye khud preret keye jeska labh angreje ko mele aj bohot se des hai jha angrege se jyada waha k bhasa ko deya jata hai aur germoney eska asan udaharn hai.