मेरे लेख पश्चिम का तलुवा, काले अंग्रेजों की जीभ ! के जवाब में “मेरी आवाज” ने इस बार अगर किसी भी हिन्दी ब्लोगर के ब्लोग पर “बड़ा दिन ” अथवा ” नये साल ” पर कोई भी शुभ कामना संदेश देखा गया , तो नामक लेख में एक बहुत अच्छा लेख दिया है जो इस प्रकार है:
इस बार अगर किसी भी हिन्दी ब्लोगर के ब्लोग पर “बड़ा दिन ” अथवा ” नये साल ” पर कोई भी शुभ कामना संदेश देखा गया , तो वो ब्लॉगर हिन्दी ब्लॉगर समाज से बाहर समझा जायेगा । ” बड़ा दिन यानी २५ दिसम्बर ” और ” नया साल यानी ०१ जनवरी ” अग्रेजो की देन हैं और जो भी इस दिन शुभ कामना का आदान प्रदान करेगे वो ” निकृष्ट भारतीये ” समझे जायेगे । हमारा नया साल होली पर होता है इस लिये नये साल की तभी शुभ कामना दे और दिवाली, ईद तो हम मना ही चुके हैं । अगर इंग्लिश से परहेज है तो इन फॉर्मेलिटीज़ को क्यों गले लगाते है ??? हिन्दी ब्लोग्गेर्स !!!!!!!!!!!!!!!!!
नये साल के बारे में फिर कभी चर्चा करेंगे, लेकिन “बडा दिन” चूंकि ईसाईयों का त्योहार है अत: मैं इस विषय पर कुछ कहना चाहता हूं. मेरे सारे पाठक जानते हैं कि ईसा मेरे इष्टदेव हैं एवं मैं उनका घोर भक्त हूं. अत: एक घोर ईसा-भक्त की हैसियत से मैं कहना चाहता हूँ कि वाकई में कोई भी हिन्दुस्तानी “बडा दिन” न मनाये एवं “बडे दिन” की शुभकामनायें न दें. कारण यह है कि “बडा दिन” वाकई में हमारे अंग्रेज-गुलामी की निशानी है. मनाना हो तो सिर्फ ईसा-जयंती मनायें क्योकि यह त्योहार अंग्रेज कौम के भारत में आने के 1700 साल पहले से हिन्दुस्तान में मनाया जाता रहा है एवं ईसा यूरोप में नहीं हमारे अपने पूर्व में अवतरित हुए थे.
“बडा दिन” एवं “ईसा जयंती” एक चीज नहीं है: इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है — अंग्रेज जब इस देश को लूटने के लिये आये उस समय उनके सारे नौकर (भिश्ती, पीर, बावर्ची, चौकीदार, माली, लकडहारे, अन्य नौकर) गरीब तबके के भारतीय लोग थे. हर साल 25 दिसम्बर को “साहब” लोग बडा उत्सव मनाते थे एवं थोडाबहुत खानपान का समान, पुराने (विदेशी) कपडेलत्ते, मेम साहब के फेंकी फ्राकें, जूते, बर्तन, कबाड आदि इन नौकरों को दे देते थे. गरीबी से जूझते इन लोगों के लिये यह बहुत बडी बात थी, अत: उनके लिये 25 दिसम्बर ईसा-जयंती न होकर एक “बडा दिन” हो गया. इस कारण उत्तर भारत (एवं सिर्फ उत्तर भारत) में एक छोटा सा समूह 25 दिसम्बर को “बडा दिन” कह कर पुकारने लगा. मेरी आवाज के लेखक का पाला सिर्फ उन लोगों से पडा है अत: उनको ईसा-जयंती का सही अनुमान नहीं है.
भारतीय ईसाई समुदाय के 5% से अधिक लोग 25 दिसम्बर को न तो “बडा दिन” कह कर संबोधित करते हैं, न ही इसे महज अंग्रेजी साहब के बडे दिन के रूप में मनाते हैं. वे 25 दिसम्बर को ईसा की जयंती के रूप में पिछले 2000 साल से मनाते आये हैं. इस दिन इन 95% ईसाई परिवारों में न तो केक को महत्वपूर्ण समझा जाता है, न ही नाचगाने को. भारत के 95% ईसाई समाज के लिये पिछले 2000 साल से 25 दिसम्बर का दिन ईसा के अवतारदिन के रूप मनाता है एवं यह उनके लिये बडे ही भय एवं भक्ति का दिन होता है यह. अधिकतर पकवान देशज होते हैं. उदाहरण के लिये मेरे घर केक नहीं बनता (मेरी पत्नी बनाना जानती भी नहीं है) बल्कि मीठा गुजिया, मालपुआ, एवं केरल के स्थानीय व्यंजन बनते हैं. भजन कीर्तन पूरी तरह भारतीय भाषाओं में होता है.
अत: “मेरी आवाज” ने सही कहा है. उन्होंने 5% ईसाई समाज को अंग्रेजी गुलामी से मिला “बडा दिन” मनाते देखा है जिसका ईसाजयंती से कोई लेनादेना नहीं है. वाकई में उसे मनाना हमारे गुलामी की यादगार है एवं उसे न मनायें. लेकिन 25 दिसंबर को ईसा जयंती जरूर मनायें क्योंकि ईसा यूरोप में नहीं मध्यपूर्व में अवतरित हुए थे. ईसा के अनुयाई हिन्दुस्तान में 2000 साल से (अंग्रेजों के आने के 1700 साल पहले से) इसे मनाते आये हैं एवं इसका अंग्रेजों से कोई लेना देना नहीं है.
उम्मीद है कि “मेरी आवाज” की गलतफमी दूर हो गई होगी !!
साहब मैं हिन्दू हूँ और शायद जो अपने आप को कट्टरवादी कहते हैं उनसे बेहतर कट्टरवादी हूँ। वो इस तरह के वे तो केवल शोर करते हैं हिन्दु-हिन्दु का बस। पर मैं केवल अनुसरण करता हूँ बस, शोर नहीं करता।
फिर भी – कल क्रिसमस है आज से हमारे घर में हलचल शुरू है। जब ईद हो तब भी मैं खोज कर मित्रों को बधाई देता हूँ।
कहाँ लिखा है हिन्दु धर्म में कि अन्य धर्मों का या मान्यताओं का सम्मान मत करो। मेरे लगभग हर 5-6 लेखों के बाद हिन्दु होने के गौरव की बात मिलेगी। तो क्या हिन्दु होने के नाम पर आतंकवाद शुरू कर दूँ।
अगर महान हो तो ऊपर उठो – उदाहरण बनो कि लोग आप जैसा जीवन जीना चाहें।
तोडफोड, कीचड उछालना – धर्म हो ही नहीं सकता।
इंसान जब पैदा होता है तो केवल एक धर्म होता है उसका – ईश्वर की संतान। और बडा होते होते क्या बन जाता है – राम की संतान, रहीम की संतान, जीसस की संतान। कुछ नहीं कर रहे – सिर्फ अपनी पहचान खो रहे हो।
मैं जानता था यह विवाद खडा होगा ही – अब जिनका काम ही है नारे लगाना, शोर मचाना – करने दो। उनकी भी तो रोजी- रोटी है।
मुझे तो हैरानी शास्त्री जी आप पर होती है कि आप कहाँ वाद-विवाद में फँस जाते हैं।
सप्रेम, सविनय
संजय गुलाटी मुसाफिर
मैं संजय जी की बात से पूरी तौर से इत्तेफाक रखता हूँ.एक हिंदू होने के नाते हमे अपने संकीर्ण विचारों पर अंकुश रखना होगा ,हमारी परम्परा ही ,आ नो क्रतवो यन्तु विश्वतः की रही है [लेट नोबुल आईडियाज् कम टू मी फ्राम आल साइड्स आफ वर्ल्ड ] हमे बड़ा दिन ,क्रिसमस मनाने मे कोई गुरेज नही है .ये कौन से हिन्दी ब्लॉगर लोग हैं जो ऐसे फतवे जारी कर रहे हैं ? यह तो अच्छी बात नही है ,मरे घर तो हर साल सान्ता आते हैं और नन्हें मुन्नों को कुछ ना कुछ जरूर देकर जाते हैं ,यह उनके लिए कितना उल्लास और रोमांच का क्षण होता है .और बड़ा दिन इसलिए भी मनाते हैं कि बाईस तारीख से दिन बड़ा होना शुरू हो जाता है ,सूर्य उत्तरायण होते हैं जो अधिकांश हिदुओं के लिए मंगल कारी मना जाता रहा है .
विचार सदैव से ही महत्वपूर्ण रहे हैं शास्त्री जी यदि भारत और भारतीयता की बात करें तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि हम धर्म को जीते हैं, धर्म हमारे लिए विश्वास है, जीने की कला है। हम बजाय इसके कि सीधे कुछ ना करने को कहें, अधिक उपयुक्त होगा कि उस बात के हर पहलू पर सभी का ध्यान आकृष्ट करें। हम हिन्दी के सेवक हैं, तो वही बने रहें कहीं से भी कुछ चुभने व छलनी करने वाली बात न की जाए तो ही अच्छा । जिसे जो मनाना हो मनाए पर भारत की आत्मा को बचाए रखे। सेवा में राजनीति का स्थान नहीं होता, यदि किसी को कुछ करने या ना करने को कहना है तो नेता बनने में क्या बुराई है ?
डा०आशुतोष शुक्ल
मैने अपने एक मित्र को ईदे-मिलाद-उल-नबी (पैगम्बर साहब के जन्म दिन) पर ईद की बधाई जैसा कुछ कहा। उन्होने धन्यवाद दिया पर यह भी जोड़ा – आज तो प्रार्थना-तपस्या का दिन है बन्धु! ईसा, राम और कृष्ण के जन्म दिन भी इसी प्रकार हमेँ अन्दर झांकने का अवसर देते हैं।
शास्त्री जी,
क्षमा प्रार्थी हूं। मेरे विचार से न तो आपकी ही बात, न ही दूसरी चिट्ठी जिसका जिक्र आपने किया है – उसकी बात सही है। यह कहना – कि बड़ा दिन का अर्थ केवल अंग्रेजों से या केवल ईसाइयों से जुड़ा है – ठीक नहीं है। बड़ा दिन को २५ दिस्मबर से आजकल जोड़ा जाता है पर इसका अर्थ कुछ और ही है। जहां तक मैं समझता हूं बड़ा दिन उत्तरार्ध में सारी सभ्यताओं के लिये महत्वपूर्ण था और है। क्योंकि इसका अर्थ कुछ और है। यह हमेशा से शुभ दिन था और है।
हमारा जन्म सूर्य के कारण हुआ। सूर्य न होता तो जीवन ही नहीं होता। इसलिये सूर्य का महत्व हर सभ्यता में है। सूर्य साल एक में उत्तरी गोलार्ध से दक्षिणी गोलार्ध और वापस उत्तरी गोलार्ध आता है। उत्तरी गोलार्ध के लिये सूर्य का उत्तरायण होना महत्वपूर्ण है। सूर्य के उत्तरायर्ण को मोटे तौर पर बड़ा दिन कहा जाता था क्योंकि इस समय से दिन बड़ा होने लगता था। इसलिये यह शुभ है।
हिंदुवों में इस दिन का खास महत्व है। सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि पर जाता है तो उसे संक्रान्ति कहते हैं। हिन्दुवों में केवल मकर संक्रान्ति ही महत्वपूर्ण है। यह इस लिये कि जब हिन्दू सभ्यता अपने पांव जमाने लगी तब सूर्य इसी समय उत्तरायर्ण होता था। इसी लिये इस दिन खास स्नान का आयोजन होता है। पितामह भीष्म ने मरने का वह दिन चुना जब सूर्य को उत्तरायर्ण होना था।
पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग २५,००० साल में चक्कर लगाती है। इस कारण विषुव भी खिसक रहा है। इसे विषुव अयन कहा जाता है। इसी कारण सूर्य के उत्तरायर्ण का दिन भी खिसक रहा है। यह पहले होने लगा है। मैंने विषुव अयन के बारे में चिट्ठी यहां और इससे संबन्धित सारी चिट्ठियों को संकलित कर यहां डाला है। जब ईसाई सभ्यता जोर पकड़ने लगी तब सूर्य का उत्तरायर्ण २५ दिसंबर को होता था। ईसा का जन्म शुभ दिन होना चाहिये। इसी लिये यह दिन ले लिया गया है और इसे बड़ा दिन कहा जाने लगा। आजकल सूर्य उत्तरायर्ण २२ दिसम्बर को होता है। अब २२ दिसंबर को बड़ा दिन कहा जाना चाहिये पर चूंकि क्रिस्मस का दिन इस शब्द से जुड़ गया है इसलिये यह नहीं हो सकता है। इस तरह के कुछ विचार इस चिट्ठी पर भी हैं।
मेरे विचार में आजकल बड़ा दिन, या क्रिस्मस, या ईसा जयन्ती, ईसा मसीह का जन्म दिन एक ही अर्थ में लिये जाते हैं। यह शुभ दिन है, खुशी का दिन है, यह हमारी अनेकता में, ऐकता का प्रतीक है। मैं भी मनाता हूं। हम सब को मनाना चाहिये। मैं नहीं मानता कि जो इस दिन को मनायेंगे वह भारतीय नहीं।
उन्मुक्त
बड़ा दिन कहने का एक कारण जो आप ने बताया वो कितना सच है इसके बारे में सिर्फ़ अनुमान लगाया जा सकता है.. पर ईसा जयंती को बड़ा दिन कहने का एक कारण यह भी है कि इसी दिन से दिन घटने के बजाय बढ़ने लगता है.. पहले यह दिन २५ तारीख को ही पड़ता था अब शायद २२ या २३ को होता है..यानी कि सूर्य पृथ्वी पर अंकित मकर रेखा तक दक्षिण जा कर उत्तर की ओर लौटने लगता है.. उत्तरायण हो जाता है.. जिसे आप मकर संक्रांति कह सकते हैं.. हिन्दू जो मकर संक्राति १४ जनवरी को मनाते हैं वो आकाशीय मकर राशि में सूर्य के प्रवेश का अवसर है.. दोनों राशि चक्र कभी एक समान थे.. अब उनके बीच २३ अंश का फ़र्क आ चुका है..
आप की तरह मुझे भी ईसा से प्रेम है..आप को ईसा जयंती और बड़े दिन दोनों की बधाई..
मेरा तो जन्म दिन है गुरूजी जी 25 दिसंबर आशीर्वाद दीजिये
इस पोस्ट को लिख कर हम सिर्फ ये कहना चाहते है सहिष्णुता रखिये यही भारतीये संस्कृति है । Hypocracy किसी को कहीं नहीं ले जाती । वेस्टर्न culture हो मुस्लिम culture भारतीये संस्कृति इतनी महान है की अपने मै सब समेट सकती है और फिर भी अक्शुर्ण रह सकती हैं । आप के लेख ज्ञानवर्धक है इस बात का प्रमाण बार बार हमारे ब्लोग पर हैं पर वेस्टर्न culture को मनाने वालो को बार बार आप “निकृष्ट भारतीये ” का दर्जा देते हैं जो गलत हैं । और ना ही हर इंग्लिश बोलने वाला वेस्टर्न culture का अनुयायी है । कोट पेंट पहनना , टाई लगाना आप कि नज़र मे गलत हो सकता है उसी प्रकार आप का कुरता पहना दुसरे की नज़र मे गलत हो सकता है । स्वतन्त्रता का अर्थ हमारे संविधान मे अम्बेडकर जी नए बहुत भली प्रकार से दिया है ।
उन्मुक्त जी आप ने जो जानकारी दी है वह बिल्कुल सही है
शास्त्री जी आपने सही कहा केरल की तरफ के ईसा भक्त केक की जगह भारतीये व्यंजन बनाते है क्योंकी उनमे बहुतो के वंशज हिन्दू थे जिनहे ईसाई धर्म मे कन्वर्ट किया गया था । पर हमारा कोई मंतव्य आप को या आप के धर्म पर debate करने का हैं .
लकिन वो जो भी ब्लॉगर इंग्लिश और वेस्टर्न culture को बुरा मानते हैं अगर नया साल मानते है तो hypocrates है क्योंकी उनकी कथनी और करनी मे अंतर हैं
उम्मीद है कि आप की की गलतफमी दूर हो गई होगी
@maeriawaaj
“हमारा कोई मंतव्य आप को या आप के धर्म पर debate करने का ह”
मुझे यह बात विदित है, अत: मैं ने कोई धार्मिक मुद्धा नहीं उठाया, बल्कि सिर्फ “बडा दिन” के उद्भव के बारे में बताया.
“वेस्टर्न culture को मनाने वालो को बार बार आप “निकृष्ट भारतीये ” का दर्जा देते हैं ”
यह आपकी गलतफहमी है. मै सिर्फ उनकी आलोचना करता हूं जो पाश्चात्य संकृति को ऊंचा एवं भारतीय संकृति को आदिम मानते हैं. ऐसे लोगों का तो घोर विरोध होना चाहिये.
जेसे आप “मै सिर्फ उनकी आलोचना करता हूं जो पाश्चात्य संकृति को ऊंचा एवं भारतीय संकृति को आदिम मानते हैं. ऐसे लोगों का तो घोर विरोध होना चाहिये.” का विरोध करते हए हम दोहरी मानसिक्ता का करते हे
@maeriawaaj,
आपने कहा:
“जेसे आप “मै सिर्फ उनकी आलोचना करता हूं जो पाश्चात्य संकृति को ऊंचा एवं भारतीय संकृति को आदिम मानते हैं. ऐसे लोगों का तो घोर विरोध होना चाहिये.” का विरोध करते हए हम दोहरी मानसिक्ता का करते हे”
मामला स्पष्ट नहीं हुआ. अपने चिट्ठे पर विस्तार से लिखें, हम जरूर पढेंगे !!
ये न करें वो न करें, ऐसे आह्वाहन आज के समय में कोई अर्थ नही रखते। बस जीयो और जीने दो का फ़ंडा सही है, जिसे जैसा पसंद हो, बस किसी दूसरे की व्यक्तिगत या धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न हो।
चाहे क्रिसमस कहें या फ़िर चाहें बड़ा दिन कहें है तो शुभ दिन इसलिए बधाई शास्त्री जी।
आपको क्रिसमस की बधाइ गुरूजी.
शास्त्री जी,मै भगोलिक व जो जानकारीयां आपने दी है उन के बारे में तो नही जानता ।लेकिन मेरे निजि विचार है कि किसी के धर्म मे हस्तक्षेप करना ही गलत है….ईसा जयंती क्यो ना मनाए?….क्या ईसा जयंती मनाने से हम “निकृष्ट भारतीये” कलाएगें?जिसने भी यह फतवा जारी किया है उसे एक बार फिर से विचार करना चाहिए….”निकृष्ट भारतीये” मै तो उसे मानता हूँ जो भारत के साथ गद्दारी करे।ऐसे मे यदि वह कोई भी हो .. किसी धर्म का भी हो…मै गद्दारी करने वाले ऐसे लोगो को तो”निकृष्ट भारतीये”ही कहूँगा।लेकिन आप किस धर्म को मानने वाले हैं…इस को लेकर”निकृष्ट भारतीये” कहना मुझे तो सही नही लगता।मेरी ओर से आपको क्रिसमस की बहुत-बहुत बधाई।
@parmjeet
kabhie kabhie jo kehaa jata hae vo vyang aur lakshana bhi hota hae . voh jitnae bhi blogger dohri maaksiktaa rakhte hae kee blog per likhegae inglish kaa virodh karo , western culture kaa virodh karo , sabse aaage bad kar western culture ko apnate hae
hamare articvle mae kahin bhi shastri jee ke blog ka koi ulekh nahin hae , kyokii usmae bade din ka ulaekh hae isliyae unhonae hamare article ko yahaan dala haen
aur shastri ji is baat ko khud bhi jaante haen kee hamne kahin bhi kisi naam ka ul;ekh nahin kiya yaa , apitu hamare naam ka ulekh karke shastri jee post likhi haen
@मेरी आवाज
मैं ने सारथी के जिस लेख का उल्लेख किया है उसमें मेरी आवाज ने निम्न टिप्पणी की थी:
“maeriawaaj, December 22nd, 2007 at 10:48 am:* kya is baar hindi blogger samaj bada din manaye ga aur nayae saal per ek dusrae ko shubhkamna daega ? agar haan toh pareshani inglish nahin aap kii dohrii mansikta hae”
इसी मतलब का लेख उनके चिट्ठे पर उसी दिन आया. अत: मैं ने दोनों को एक माला की कडी माना.
लेकिन उस लेख में मुझे व्यक्तिगत रूप से लक्ष्य नहीं बनाया गया है. इस कारण मेरे इस लेख में भी मैं ने किसी भी तरह के व्यक्तिगत टार्गेट का उल्लेख नहीं किया है.
यह व्यक्तिगत झगडा नहीं, बल्कि विचारों की असहमति एवं वैचारिक स्तर पर विरोध है. वैचारिक विरोध आपसी द्वेष नहीं है — खास कर मेरी नजर में.
शास्त्री जी आप को और सारे भारतीयों को, और सारी दुनियां को ईसा जयन्ती, बड़े दिन और क्रिसमस की बहुत बहुत बधाइयाँ। भारतीय तो वह है जो वसुधैव कुटुम्बकम को मानता है, नहीं मानता है वह भारतीयता से च्युत हो चुका है। मैं कल ईसा जयन्ती, पहली जनवरी को नववर्ष और १५ जनवरी को मकर संक्रान्ति मनाने जा रहा हूँ। शाकाहारी हूँ इस कारण ईदुज्जुहा नहीं मनाता, पर ईदुलफित्र मनाता हूँ। पहली मई को मजदूर दिवस और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भी पुनः नववर्ष भी मनाता हूँ।
यदि मेरी बधाई से किसी एक व्यक्ति को भी खुशी मिलती है तो मैं उसे बधाई देना पसंद करूंगा।
एक बात और कि मैं ने अपने एक ‘हिन्दूवादी’मित्र से पूछा कि अगर ईसा व मुहम्मद साहब भारत में पैदा हुए होते और ईसाई धर्म व इस्लाम का प्रचार करते तो आप क्या करते? उन का उत्तर था कि फिर उन्हें हम चौबीस अवतारों में शामिल कर उन की संख्या छब्बीस कर लेते।
मैं आज इस में इतना जोड़ना चाहता हूँ कि भगवान की मर्जी हो कि वे भारत के बाहर कहीं भी अवतार लें तो कथित हिन्दूवादी क्या उन्हें अवतार मानने से भी मना कर देंगे।
@Dineshrai Dwivedi,
द्विवेदी जी, भारतीय समाज दुनियां में सबसे विशालदृष्टि रखने वाला है. वसुधैव कुटुम्बकम. यह नजरिया हिन्दू धर्म की देन है जो दर्शन के तल पर इस नजरिये का कारण समझाता है.
क्रिसमस पर्व की बधाई आपको शास्त्रीजी…