ईसा ने लगभग 2000 साल पहले मध्यपूर्व में एक यहूदी परिवार में अवतार लिया था. दिसम्बर 25 को सारी दुनियां मे उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है.
जन्म के समय ईसा के मांबाप सफर कर रहे थे एवं उस नये शहर में कोई सराय खाली न थी अत: उनके मांबाप को एक गौशाले में टिकना पडा था. ईसा का जन्म इसी गौशाले में हुआ था एवं जन्म के पश्चात उनकी माताश्री ने चरनी का उपयोग पालने के रूप में किया. इस कारण शिशु ईसा को चित्रों में चरनी में लिटे दिखाया जाता है.
ईसा जब लगभग तीन साल के थे तो पूर्वी देशों से विद्वानों के एक समूह ने आकर उनकी आराधना की थी. आसमान में उदित एक नये तारे के अधार पर उन्होंने ईसा के जन्म को पहचाना था. विद्वानों के काफिले के तीन प्रसिद्ध गुरुजन थे, लेकिन काफिला लगभग 50 से 70 विद्वानों का था.
उस समय एक क्रूर राजा उस प्रदेश का शासक था एवं विद्वानों से जानकारी पाकर उस राजा ने ईसा की हत्या करने की कोशिश की लेकिन वह ईसा को न पा सका क्योंकि ईश्वर के देहधारी होने का लक्ष्य पूरा होना अभी बाकी था.
तीस साल की उमर तक ईसा अपने मांबाप एवं भाई बहनों के साथ रहे, लेकिन तब समय आन जानकर वे अपने लक्ष्य के लिये निकल पडे. उन्होंने 12 शिष्य चुने जो उनके साथ हर जगह यात्रा करते थे. इन शिष्यों मे से एक बहुत शक्की किस्म का था एवं ईसा के एक कथन के लिये सीधे प्रमाण भी मांग लिया था. करुणामूर्ति ईसा ने डाटे फटकारे बिना कमजोर विश्वास वाले व्यक्ति को अपना ईस्वरीय रूप दिखा भी दिया. तब से इस शिष्य का नजरिया एकदम बदल गया एवं ईसा के स्वर्गारोहण के बात ये ही शिष्य लिखित रूप में ईसा की वाणी लेकर 50 ईस्वी में हिन्दुस्तान आये थे. चेन्नई शहर के सेंट थामस माऊंट पर ईस्वी 72 में एक दुश्मन के भाले से वे शहीद हो गये थे. लेकिन उन 22 सालों में हिन्दुस्तान के लाखों लोगों ने अपने इष्टदेवता के रूप में ईसा की आराधना शुरू कर दी थी. यह है भारतीय ईसाई समाज का प्रारंभ.
भारतीय ईसाई समाज ईस्वी सन 50 से दो त्योहार मनाता आया है. इसमें से पहला है ईसा जयंती जो आजकल 25 दिसंबर को मनाया जाता है. दूसरा है सूली पर उनकी हत्या के तीसरे दिन पुनर्जीवित हो जाने की याद. इसे पुनरुत्थान-पर्व कहा जाता है. यह चंद्रपंचांग के आधार पर मनाया जाता है अत: आजकल प्रचलित कलेंडर पर इसकी तारीख हर साल बदलती रहती है.
ईसा के जमाने के धर्मगुरू, खास कर जिनका सारा जीवन एक लक्ष्य के लिये अर्पित था, वे दाडीमूंछे नहीं कटवाते थे, एवं लंब चोगानुमा वस्त्र पहनते थे. ईसा का सबसे प्रसिद्ध चित्र बाईं ओर दिया गया है जिसमें उनको इस तरह से दिखाया गया है.
करुणामूर्ति ईसा ने बारबार अपने भक्तों को याद दिलाया था कि मनुष्य अपनी योग्यता द्वारा नही, बल्कि ईश्वर की करुणा द्वारा ही मुक्ति पा सकता है.
करुणामूर्ति ईसा की पावन जयंती के 2007 वें वर्ष के उपलक्ष्य में मैं आप सब के लिये एक बार और ईश्वर के अनुग्रह की कामना करता हूँ.
मैं आपको और आपके परिवार को ईसामसीह के जन्मदिन पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें देने जा रहा था। उससे पहले यह पोस्ट निमित्त बन गयी। अब वह इस टिप्पणी के माध्यम से कर रहा हूं।
क्राइस्ट मेरे लिये कृष्ण हैं।
सभी को क्रिसमस मुबारक।
सारी दुनियां के साथ साथ आप को सपरिवार ईसा मसीह के जन्मदिन की बधाइयां।
बचपन की याद आती है।
मटुँगा, मुम्बई में Don Bosco स्कूल में पढ़ाई की थी और मेरे कई इसाई मित्र थे। उन सब की और विशेषकर पादरियों की याद आती है जिनसे मैंने शिक्षा ली।
हमारी ओर से भी इस अवसर पर शुभकामानाएं।
G विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु
आप सभी को ईसा मसीह के जन्मदिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं
Sir
Wish you and your family a very happy x-mas. May God make you his most blessed son.
Rachna
जहां तक मुझे मालुम है मां मरियम और जोसेफ नाज़रेथ के रहने वाले थे। उस समय जनगणना होनी थी इसलिये सबको अपने पूर्वजों के यहां आना पड़ा। इसीलिये वे जोसेफ के पूर्वजों के शहर बेथलहम में आये। यहां सब लोग जन गणना के लिये आ रहे थे इसलिये बहुत भीड़ थी। सारी सराय भर गयी इसलिये उन्हे अलग जगह टिकाया गया। ईसा मसीह का जन्म manger में हुआ। वह मुख्यतः भेड़ और बकरियां रहने की जगह थी। क्या उसे गौशाला कहना ठीक होगा? उन्हें सूली पर जेरुसलम में चढ़ाया गया।
merry christmas to u and whole family
@उन्मुक्त
“ईसा मसीह का जन्म manger में हुआ।”
जन्म manger में या चरनी में नही हुआ था, बल्कि जन्म के बाद उनको वहां रखा गया था.
गौशाला या अस्तबल ही सबसे सही अनुवाद है!!
शांति का वाद्य बना तू मुझे प्रभु शांति का वाद्य बना तू मुझे
हो तिरस्कार जहां करूं स्नेह हो हमला तो क्षमा करूं मैं
हो जहां भेद अभेद करूं हो जहां भूल मैं सत्य करूं
हो सन्देह वहां विश्वास घोर निराश वहां करूं आस
हो अंधियार वहां पे प्रकाश हो जहां दु:ख उसे करूं हास
शांति का वाद्य बना तू मुझे प्रभु शांति का वाद्य बना तू मुझे !
( अनुवाद – नारायण देसाई )
इस शुभ दिन की बधाई। आप सभी खूब प्रसन्न रहे और आपकी सभी मनोकामनाए पूर्ण हो- ऐसी ईश्वर से कामना है।
हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें, शास्त्री जी।
अभी अपनी एक अन्य मित्र से कह रहा था –
Few die for masses, only if Almighty chooses to!
शास्त्रीजी,
आपको एवं आपके परिवार को ईसा की जयंती की हार्दिक शुभकामनायें । अमेरिका में अपने प्रवास के दौरान मैं ईस्टर और क्रिसमस के दिन चर्च अवश्य जाता हूँ, मुझे चर्च में सबका साथ में मिलकर Carols गाना बहुत अच्छा लगता है । मजे मजे में मित्र मुझे ३०% ईसाई भी कहते हैं । कल मैं यात्रा कर रहा हूँ इसलिये आज रात को ही चर्च चला गया । जाकर बडा अच्छा लगा, सभी बुजुर्गों को क्रिसमस की बधाईयाँ दीं और उन्होने भी आशीष दिया ।
ईसा का प्रेम और सदभावना का संदेश आज के दौर में बडा प्रासंगिक है ।
ईसा जयंती की बहुत बहुत मुबारक!!
क्रिसमस की हार्दिक बधाई आपको एवं पूरे परिवार को,और मेरे जन्मदिन पर आपके अविस्मरणीय उपहार के लिए धन्यवाद
बधाई व शुभकामनाएं स्वीकारें. ईश्वर का अनुग्रह आप व आपके परिवार पर सदा बना रहे.
बधाई व शुभकामनाएं स्वीकार करें!!
merry christmas and good wishes!
ईसा के जन्मदिन पर आपको तथा आपके पूरे परिवार को बधाई और शुभकामनाएं ।
आप और आपके परिवार को पावन दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ
क्रिसमस के शुभ पर्व पर आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं. नया वर्ष आपको मंगलमय हो.
आपको तथा आपके परिवार को क्रिसमस एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
आपको सपरिवार ईसा मसीह के जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनायें
शात्री जी और सभी चिट्ठाकार भाईयों ,बहनों को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएं !
शास्त्री जी ,उन्मुक्त जी कृपया बेथलेहम के तारे के बारे मे भी कुछ प्रकाश डालें .
एक दिन देरी से शुभकामनाएँ स्वीकारें।