हिन्दी चिट्ठाकारी को शुरू हुए मुश्किल से 3 साल हुए हैं लेकिन थकावट के लक्षण एवं थकावट की आवाज इधर उधर से आने लगी है. अफसोस की बात है कि इन में से कई लोग हिन्दी के अच्छे एवं जनप्रिय चिट्ठाकार हैं एवं इनके लेखन में बाधा आ जाये तो नुक्सान सारे हिन्दी चिट्ठाजगत का है.
चिट्ठाकारी-थकावट के कई कारण हैं जिन में से मुख्य है वहन करने से अधिक भार उठाना.
Photograph By lluisr
एकाधदो व्यक्तियों को छोड कर हिन्दी चिट्ठाकारों को इस कार्य से न तो कोई आय होती है न ही उनके पेशे में किसी तरह की बढत मिलती है. अत: वे एक सीमा तक ही चिट्ठाकारी का भार उठा सकते है. यदि यह उनके लिये रोजीरोटी का जरिया हो जाता तो खुशी खुशी बहुत से लोग 8 से 10 घंटा प्रति दिन इसके लिये बिता देते क्योंकि रोटी, कपडा, मकान का खर्च निकल रहा है.
कई लोगों ने आसमान को छूने वाले लक्ष्य निर्धारित कर रखें है. जैसे कि 2500 शब्द का एक चिट्ठा रोज लिखना. कोई भी व्यक्ति अवैतनिक तरीके से ऐसा नहीं कर सकता है. अत: जरूरी है कि हर चिट्ठाकार पहले यह तय कर ले कि वह कितना भार उठा सकता है, कितना समय हर हफ्ते दे सकता है. उसके आधार पर उसे तय करना होगा कि वह हफ्ते में एक लेख लिख सकता है या सात. हो सके तो कम से कम चार लेख जरूर लिखें. उपलब्ध समय में चार लेख कैसे लिखे जायें यह आप के ऊपर है. शायद लेख छोटे करने पडे, शायद आसान विषय ढूढने पडे. जहां चाह वहां राह.
पैर उतना ही फैलाये जितनी बडी चादर है, लेकिन फैलाये जरूर.
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कभी कभी आपके शब्दों से खुद से बगावत करने की बू आती है। पर सच तो यह भी है कि हौसला खुद को हराकर ही किया जा सकता है।
मुझे अच्छे से याद है, मेरा एक लेख किसी मित्र के ब्लॉग पर छपा था। लेख का विषय ही था कि हर रोज तो क्या हफ्ते में एक बार लिखना भी मुश्किल है – अगर कोई प्रेरणा न हो तो।
आपकी प्रतिक्रिया आई। आच्छा लिखते हो, पर हफ्ते के कम से कम चार लेख लिखो। मैंने सोचा कोई ‘सिरफिरा’ होगा, लेख पडा नहीं और प्रतिक्रिया लिख गया। तब पहली बार ‘सारथी’ से मुलाकात हुई।
अब मुडकर देखता हूँ तो समझ आता है, कि आप मुझे अपने अंतर्मन को हराने के लिए अपने ही तरीके से प्रेरित कर रहे थे।
लीजिए शास्त्री जी, अब मेरे सिरफिरे होने का प्रमाण लीजिए। जो कहता था लेख नहीं लिखा जाता – प्रतिक्रिया लिखने में ही एक लेख लिख गया।
धन्यवाद
संजय गुलाटी मुसाफिर
प्रेरणा और जूनून तो होनी ही चाहिए तभी समय भी निकलता है और मानसिक तौर पर हम तैयार भी होते हैं फलत: भाव शव्दों का रूप लेते हैं । इसके न रहने पर चिट्ठाकारी व्यर्थ प्रलाप एवं समय-श्रम-धन को नष्ट करने का साधन ही प्रतीत होता है ।
आपको सृजन सम्मान में शीर्ष 22 की श्रेणी में प्रथम स्थान पाने के लिए बधाई ।
आपने मन की बात कर दी!
आपकी बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं। मेरे चिट्ठे तो इतने सूने रहते है कि समझ में ही नहीं आता कि किसी को मेरे चिट्ठों की जानकारी है भी या नहीं।
कैसा रहेगा अगर हम चिट्ठाकारी को एक पत्रिका की तरह बना दे।
कह तो आप ठीक रहे है । अगर कुछ दिन ना लिखे तो मन कुछ उचट सा जाता है। पर फिर जहाँ लिखना शुरू करते है तो वापिस उसी मूड मे आ जाते है।
आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर एक पुराना शेर याद आया,
गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग मे,
वो क्या खाक गिरेंगें जो घुटनो के बल चलें।
फिलिप साहब गिरना भी ज़रूरी है संभलने के लिए,न हों बेकरार करें थोड़ा और ईंतजार,
मेरे हिसाब से समाचार को छोड़कर बाकी सभी लेख रोज नहीं लिखे जा सकते क्योंकि हर विषय मे शोध,खोज,एवं अन्य सामग्री एकत्र करने मे समय तो बगता ही है।
आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर एक पुराना शेर याद आया,
गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग मे,
वो क्या खाक गिरेंगें जो घुटनो के बल चलें।
फिलिप साहब गिरना भी ज़रूरी है संभलने के लिए,न हों बेकरार करें थोड़ा और ईंतजार,
मेरे हिसाब से समाचार को छोड़कर बाकी सभी लेख रोज नहीं लिखे जा सकते क्योंकि हर विषय मे शोध,खोज,एवं अन्य सामग्री एकत्र करने मे समय तो लगता ही है।
मै तो अपने बारे मे कह सकता हूं कि मुझे थकावट नही है पर समयाभाव है और् चिट्ठाकारी मे ज्यादा रस भी नही आ रहा इसलिये समय को ठीक से उपयोग नही कर पा रहा शायद. चलिये इस लेख से कुछ प्रेरणा तो मिलेगी ही.
सारथी जी,बात तो सही है कि कुछ समयाभाव व कुछ आर्थिक कारणों से चिट्ठाकार पीछे हटनें लगते हैं। लेकिन ब्लोग लिखनें का एक नशा है जो उन्हें फिर इस ओर धकेल देता है। आप ने सही कहा-“पैर उतना ही फैलाये जितनी बडी चादर है, लेकिन फैलाये जरूर”
हम भी यही कोशिश कर रहे हैं।
aap sahi kah rahey hain SARGAM naam se shaastriiy sangeet kaa mera blog sirf samay na honey ke karaan sust padaa hai…karen to kya karen
मैं आपकी बात मान कर आजकल लगभग हर दूसरे दिन कोई ना कोई चिट्ठा पोस्ट कर रहा हूं.. और वो भी एक नहीं दो-दो चिट्ठा.. और दोनों को ही मिला कर अभी तक इस महीने में अब-तक 13-14 पोस्ट कर चुका हूं.. ये आपके द्वारा उत्साह वर्धन का ही कमाल है..
शास्त्री जी ,आप भी सहमत होंगे कि सृजनात्मक लेखन रद्दी के भाव रोजाना सम्भव नही है .शायर ने ठीक ही कहा है कि ‘ गजल के शेर कहाँ रोज रोज होते हैं .रही रोज कुछ न कुछ टिपियाने की बात तो लगे रहो मुन्ना भाई ,शायद कुछ फर्क पड़ ही जाय . मगर हाँ कई ऐसे ब्लॉग हैं जहाँ एक मिशन के रूप मे बहुत अच्छा लिखा जा रहा है ,उनके चलते रहने मे आपके सतत प्रोत्साहन ने स्तुत्य भूमिका निभाई है.पर उन्हें भी गुणवत्ता से समझौता नही करना चाहिए .आपको ब्लॉगर सम्मान के लिए बधाई ,दरअसल यह सम्मान का ही प्रकारांतर से सम्मानित होना हुआ.
एक नारा उछाल रहा हूँ -कम लिखो ,काम का लिखो .
अरविन्द जी सही कह रहे हैं.. गज़ल कविता रोज़ नही बन सकते…लेख लिखने के लिए समय चाहिए और समय आगे भागता है और हम उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे… हाथ से फिसलता ही जाता है..फिर भी कभी कभी उसे आगे से दबोच कर कुछ लिख लेते है…