हिन्दी जगत के वरिष्ठ एवं जनप्रिय चिट्ठाकार रवि रतलामी एवं इसी तरह जानेमाने हिन्दीप्रेमी बालेन्दु शुक्ल दाधीच जी और संयोजक जयप्रकाश मानस ने जब वर्ष 2007 के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग पुरस्कारों की घोषणा की तो उन्होंने विवाद की उम्मीद तो की थी, लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि इस तरह का उग्र विवाद खडा होगा जो आज दिखा है.
चूंकि मैं सैकडों बार निर्णय दे चुका हूं (एक अध्यापक का जीवन ही यह है) अत: मुझे लगा कि इन तीनों के प्रति लोगों का रूख सही नहीं है, एक तरफ से तो लोगों को प्रोत्साहित करो, पर दूसरी ओर कृतघ्न एवं तंग सोच के लोगों के जूते खाओ. अत: मुझे यह उचित लगा कि सामूहिक रूप से इन लोगों के निर्णय का अनुमोदन किया जाये जो मैं ने कल के अपने लेख 2007 के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग पुरस्कार — एक समीक्षा!! में की थी. लेकिन जब उल्टेसीधे किस्म के विवाद खडे हुए तो रवि जी ने निम्न टिप्पणी द्वारा विषय का खुलासा किया:
शास्त्री जी, आपका बहुत-2 धन्यवाद. लगे हाथ इस मौके पर मैं कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूंगा.
पुरस्कार मात्र तीन घोषित किए गए हैं. साथ में जो सूची घोषित की गई है, वो कोई पुरस्कारों की या पुरस्कृतों की सूची नहीं है, बस एक इंडिकेटिव लिस्ट है, अंतिम दौर की चयन सूची है, जो मेरे इंसिस्टैंस पर प्रकाशित हुई है.
दरअसल, हमने हिन्दी के तमाम चिट्ठों – जिनकी प्रविष्टि आई हो या नहीं – जैसी कि नियमावलि में थी, विचार किया था. फिर उन तमाम चिट्ठों को अलग किया जो पुरस्कार के शर्तों में नहीं थे- यानी महानगर से व तकनीकी जानकारों के. तो इसमें मुम्बई दिल्ली अहमदाबाद कलकत्ता जैसे महानगरों के चिट्ठाकारों के चिट्ठे व तकनीकी ई-पंडित जैसे चिट्ठाकार स्वचालित ही बाहर हो गए. अंतिम चयनसूची आते आते तक जाने-अनजाने इन शर्तों को पूरा नहीं कर पाने वाले – निर्मल आनंद, महावीर, दस्तक, अंतरिक्ष, शास्त्री, नैनोविज्ञान इत्यादि चिट्ठे जो रह गए थे वे यदि प्रथम तीन पर आते तो फिर से स्क्रूटनी पर चयन पर फिर से बाहर हो जाते क्योंकि महानगर व तकनीकी जानकारों के चिट्ठे होने के कारण वे पहले ही विचार योग्य नहीं माने जाते.
इस सूची को प्रकाशित करने के पीछे दो कारण रहे हैं – आप देखेंगे कि तीसरे स्थान पर 6.5 अंकों के साथ चार चिट्ठे हैं, तो फर्स्ट एमंग इक्वल की थ्योरी के अनुसार ममता जी हैं वहां पर. तो इसे विशेष रूप से दर्शाना था. और दूसरा महत्वपूर्ण कारण रहा है वो स्वयंसिद्ध है – आमतौर पर चयन सूची के हर चिट्ठों पर ज्ञान की गंगा बह रही है. और इसी वजह से नई चिट्ठाकार पारूल के उनके एक एकदम ताजा चिट्ठे जिसमें शायद गिने चुने दो या तीन पोस्ट हैं, उन्हें भी अंतिम दौर तक चयन हेतु ध्यान में रखा गया था. यूँ तो यह महज ब्लॉग पुरस्कार ही है, और इसमें कविताओं से लेकर घोर तकनालाजी तक लिखने वाले पुरस्कार के पात्र हैं, मगर, ये बात भी तय है कि पोस्टों की सार्थकता, सामाजिकता, सोद्देश्यता और समाज को कुछ लौटाने, कुछ देने के भाव लिए हुए पोस्ट ही अंतत: निर्णायकों की नज़र में चढ़ पाते हैं और चढ़ते रहेंगे. इसी बात को इंगित करने हेतु इस सूची को जानबूझ कर सोद्देश्य प्रकाशित किया गया था.
कुछ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष निगाहें भी उठी हैं कि अंतिम दौर की सूची में कविताओं के चिट्ठे नहीं हैं – तो यहाँ भी मैं कहना चाहूँगा, कि ब्लॉग पुरस्कारों के लिए कविता, साहित्य इत्यादि के अलग से कुछ श्रेणियाँ रहें तो उत्तम. अन्यथा मुझे अंदेशा है कि सिर्फ कविता, और साहित्य वाले ब्लॉगों पर इस पुरस्कार में तो क्या किसी भी अन्य ब्लॉग पुरस्कार में स्थान बना पाना असंभव तो नहीं मगर मुश्किल जरूर होगा.
इसी बीच, संभवत: श्री संजय बेंगाणी को निर्णयात्मक मापदण्ड हेतु भाषागत शुद्धता को लिए जाने वाली बात पर गुस्सा आया – तो मैं यहाँ स्पष्ट करना चाहूंगा, को वो कोई सोल फ़ैक्टर नहीं था – महज उनमें से एक फ़ैक्टर था. और भाषा और वर्तनी की गलतियाँ किसी ग्रेट पोस्ट या ग्रेट चिट्ठे की महत्ता को कम नहीं करतीं. उन्होंने ये बात भी उठाई कि नए चिट्ठाकारों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए. तो आप देखेंगे कि अंतिम दौर की चयन सूची में ढेरों नए चिट्ठाकार भी हैं जिन्होंने इसी वर्ष लिखना शुरू किया. और सरगम नाम का चिट्टा तो दिसम्बर 2007 में ही प्रारंभ हुआ है.
अंत में मैं निर्णायक मण्डल की ओर से आदरणीय श्री दीपक भारतदीप से बिनाशर्त, करबद्ध माफ़ी चाहता हूँ. जाने अनजाने हमने उनका दिल दुखाया है. हमारा उद्देश्य उनको अपमानित करने का नहीं था. हमने उनके तमाम चिट्ठों में से उस चिट्ठे को अंतिम दौर में विचारार्थ चुना, जिसमें हमें लगा कि उन्होंने कुछ सार्थक पोस्टें लिखी हैं, जो उन्हें ख़ासा नागवार गुजरा. इस मामले में अगर वो सोचते हैं कि हमसे भूल हुई है, हममें समझ नहीं रही, तो हम स्वीकारते हैं कि हमसे भूल हुई है और हमसे समझने में ग़लती हुई है. उम्मीद है कि वे हमें माफ़ करेंगे और अपने तेज रफ़्तार के लेखन में सार्थक लेखन कर और तेजी लाएंगे.
इस विषय पर अन्य चिट्ठाकारों ने विश्लेषणात्मक लेख लिखे हैं जिन्हें आप पुरुस्कार, विवाद और राखी सावंत, सृजन सम्मान में पढ सकते है.
अंत में एक अनुरोध: जो लोग चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं उनको यदि इस तरह सूली पर चढाया जायगा तो नुक्सान चिट्ठाकारों को ही है. परिवार के एक सदस्य को आप अनावश्यक तरीके से दुखी करेंगे तो उसका दुख आज या कल सारे परिवार को होगा. मैं नहीं मानता कि ये लोग किसी तरह के पक्षपात, भाई भतीजावाद, स्वार्थ आदि से प्रभावित थे. तर्क के लिये अब मान लीजिये कि मैं गलत हूँ, तो भी एक दूसरे का दिल दुखाना अच्छी बात नहीं है.
मैं अपनी तरफ से रवि रतलामी, बालेंदु शर्मा, एवं जयप्रकाश मानस के द्वारा हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाजगत के निर्लोभ सेवा, समर्पण एवं स्नेह का अनुमोदन एवं अभिनंदन एक बार और यहां सबके सामने रेखांकित करना चाहता हूँ.
गुरूजी जिनको पुरस्कार न मिला ,वो सभी दुखी हैं,मुझे मिलना भी नहीं था ,मैं भी……पर जिस तरह से काफी सारे लोगों ने टीका टिप्पणियां की हैं ,वह ठीक नहीं है.आप लोग अपना काम करते रहें.जिन लोगों के आप नाम बता रहे हैं इनकी निष्पक्षता सर्वमान्य है.चले चलो…..
मित्रो, अपने निर्णय में हमारी सौ फीसदी आस्था है। हमने प्रविष्टियों का आकलन पूरी सत्यनिष्ठा से किया है। हमारी नजर में किसी का उपनाम या पृष्ठभूमि कोई मायने नहीं रखती। हम ऐसी किसी भी आलोचना से अप्रभावित हैं क्योंकि अपने निर्णय को लेकर हमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है।
Sir
You are a teacher your self . When ever you give marks to someone to declare results and if 3 people get equal marks do you give the award to one out of them because she is a woman ??
in case 3 people get equal marks then they all qualify for the award and it has to be distributed among all three .
all three will will be known as 3rd position holder
then why are you becoming a part of system that is setting a wrong precedence by giving award to one out of three because she is a woman.
such things in long run make people say that woman dont deserve awards they get it because they are woman.
i think you should have been the first person to guide the judges if they had faltered .
this is the first award that has come for blogger community and if a precedence will be set which is wrong then int he coming years we are going to all follow the wrong precedence
judges are right in judging but they can not select one among three when all three have equal marks.
in case they had to then they should not have shown the marks .
no one is questioning the intregrity of judges but they are also humans and they also can be corrected
आप लोगों से एक अच्छी पहल की है, यह आप जानते हैं और हम भी महसूस करते हैं। इसलिए अप्रिय लगने वाली टिप्पणियों से अपनी दिल छोटा न करें। हम आपकी पहल, आपकी चयन प्रक्रिया, आपके निर्णय का सम्मान करते हैं और अपेक्षा करते हैं कि आप लोग इसे आगे भी जारी रखेंगे।
किसी भी चिट्ठे की महत्ता उसे मिले सम्मान से बढ़ती नहीं और न ही सम्मानित न होने से घटती है। वह चिट्ठाकार के काम से बढ़ेगी और न करने से या गलत करने से घटेगी।
मेरे विचार से अब सम्मान-आपत्तिकर्ता-पुरस्कार की घोषणा की जा सकती है।
शास्त्री जी
आप एक बात समझ लीजिये. आप हम साहित्यकारों की कविताओं और व्यंग्यों से दुखी है तो उन्हें रेटिंग में शामिल मत करिये. आप भी ग्वालियर में रहे और मैं भी और जानते हैं कि इन पुरस्कारों में नाटकबाजी होती है. मैं तो बडे ब्लोगरों में आपको जानता हूँ और अगर आप मेरी रेटिंग ० भी कर दें मैं मान लूंगा पर इस ब्लोगिंग जगत में कोई नहीं है जो मेरी रेटिंग तय करे. आपने तथाकथित ब्लोगरों के काम की बात की है यह बिना स्वार्थ के कुछ नहीं करते और हम क्या ऐसी तैसी नहीं कर रहे हैं. हमारे ब्लोग की रेटिंग छाप कर यह पुरस्कार का वजन बढाना चाहते हैं क्योंकि ”दीपक भारतदीप”को फ्लॉप साबित कर यह उसका वजन बढा रहे हैं. मेरे ब्लोग पर लोग मुझसे कह रहे हैं अपना काम जारी रखूँ. मैं हिन्दी ब्लोग को आन्दोलन बनाना चाहता हूँ और इन्होने उसे रोकने की कोशिश की है. यह होते कौन है कविताओं पर टिप्पणी करने वाले. मैं हिन्दी ब्लोग आन्दोलन में हर आने वाली बाधा से लडूंगा. आपकी इस पोस्ट ने मुझे इस बात के लिए मजबूर किया है कि मैं आगे बढूँ क्योंकि आपने जिन लोगों की प्रशंसा की है उन्होने इस आन्दोलन को रोकने की कोशिश की है क्योंकि इस बिधा को साहित्यकार ही आगे ले जाने वाला है. तय बात है मैं आगे आ रहा हूँ. अपने छोटे भाई को क्षमा करना जिसे अब भी त्वरित गति से आगे बढ़ने वाला और राजीव तनेजा ”भारत का सबसे तेज ब्लोगर” कहते हैं. मेरे लिए यह पुरस्कार काफी है. यह मेरी नहीं मेरे अभियान का हिस्सा है. शेष कुशल
दीपक भारतदीप
@rachna,
Dear Rachna,
first let me remind you that I am a loser in the recent decision. In spite of this loss I endorse the decision of the three men because of a number of reasons
1. When several people have the same marks, it is a common practice of the judges to award the prize to first among equals, the “first” being decided on many counts. The judges in this case only followed a universally established practice and there is nothing strange, new or wrong with that.
2. I have full faith in the integrity of the three judges. I have never met them, but I know them by their works. Thus I endorse them all the more.
3. Should they have shown the marks? The answer will be subjective. In my case I was happy to see the marks. It forced me to repeatedly ask myself why I got only 6.5 marks whereas two of my juniors got better marks. This in turn helped me to discover my weak spots, and this discovery will help me to make Sarathi better in 2008 than what it was 2007.
Every objective person should welcome assessment, judgement, evaluation, critique, etc. This only helps the person to improve upon what he has done so far.
The day we become insensitive to judgement, we have embraced a desire for imperfection instead of perfection.
@दीपक भारतदीप
प्रिय छोटे भाई,
मुझे मालूम है कि साहित्यजगत में निर्णय करते समय काफी उठापटक होती है. लेकिन जिस निर्णय की बात कर रहे हो उसमें ऐसा कुछ नहीं हुआ है.
निर्णायकों को आदेश दिया गया था कि वे सभी चिट्ठों पर नजर डाल लें. इस कारण तुम्हारे चिट्ठा भी उनकी नजर में आ गया और उन लोगों ने रेटिंग कर डाली. उनको क्या मालूम था कि तुम यह नहीं चाहते. खैर जो हो गया वह हो गया. लेकिन इस तरह रवि रतलामी जैसे एक ज्येष्ट भ्राता से माफी मंगवाना अच्छा नहीं है. उन्होंने http://sarathi.info/archives/1084 में तुम से हाथ जोड कर माफी मांगी है.
प्रिय दीपक, तुम एक मंजे हुए चिंतक को. मैं तुम्हारे लेख अकसर पढता हूं. अत: मेरा सुझाव है कि परिवार में बडे भाई द्वारा किया गया कोई कार्य पसंद ना आये तो भी उससे माफी मंगवाना अच्छी बात नहीं है. बडे लोग आदर के पात्र है. रवि जी तो मुझ से छोटे हैं लेकिन इसके बावजूद मैं ने उनका आदर किया अत: तुमको उनको प्रति यही नजरिया अपनाना चाहिये. वे तो तुम से ज्येष्ठ हैं.
एक बात और, अब यह आंदोलन बंद करो. अपनी ऊर्जा पुन: सकारात्मक लेखन में खर्च करो. तुमको इतने लोग (जिन में मैं भी शामिल हूँ) नियमित रुप से पढते हैं कि तुम को ताज्जुब होगा. अब उनके सामने यह अभियानसंबंधी लेख परोसने के बदले पहले के समान तत्वचिंता परोसना शुरू करो.
इसे अपने ज्येष्ट भ्राता का आदेश समझ लो !!
सस्नेह
शास्त्री
चारों ओर हलचल मची हुई है। 🙂
आदरणीय शास्त्री जी ,
आप से भी अनुरोध है कि अब किसी अन्य विषय को लें .दरअसल हिदी मनीषा मे यह दोष जरूर है कि यकायक कुछ लोग स्ययमभू विद्वान् बनकर व्यवस्थाएं देने लग जाते हैं ,वे इस मुगालते मे रहते हैं कि उनका किया धरा सब दैवीय कोटि मे है .जबकि हमारी सनातन सोच ऐसी मानसिकता का सदैव निषेध करती है – सचमुच विद्वान् को अतिशय विनम्र चित्रित करती है .संस्कृत साहित्य के विद्वानों और यहाँ तक कि अपने तुलसी बाबा की विनम्रता से लोगों को सीख लेना चाहिए .पर यहाँ तो माजरा ही अजीब है .हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास ही जुमा जुमा ४-५ साल है तथापि यहाँ मथाधीशी ,गुरूआयी -चेल्हाई शुरू हो गयी है .ये लक्षण मुझ जैसे अदने से ब्लॉग पाठक को अच्छे नही लगते -दुर्भाग्य से मुझे अभी तक मशीनी ज्ञान इतना नही कि अपना भी हिन्दी का एल फुल-फ्लेज ब्लॉग बना लेता .पर लगता है कि यह अछा ही हुआ .इस तरीके से मेरे भी ब्लॉग का मूल्यांकन हो गया रहता .बिना सूचना और अनुमति के ही .यह सब सचमुच हास्यास्पद रहा है. भले मानसों को चिट्ठाकारों को तो कम से कम सूचित करके ही उनके ब्लॉग का मूल्यांकन का सुकर्म चरितार्थ करना था .पर चलिए जो हो गया सो हो गया ,हिन्दी ब्लागिंग की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह सब अनदेखा होना चाहिए .आईये आगे बढ़ें …चरैवेति …..चरैवेति ……
आज दीपक भारदीप ने मेरे चिट्ठे पर चिट्ठा-चुनाव के बारें में एक टिप्पणी की थी. हम दोनों मूल ग्वालियर के हैं अत: हम दोनों आपस में एक भ्रातृत्व की भावना रखते हैं. टिप्पणी के जवाब में मैं ने ज्येष्ट भाई की हैसियत से दीपक भारतदीप से अनुरोध किया था कि वे अब “पुरस्कार के लिये चिट्ठाचुनाव” विषय के विरुद्ध अपना आंदोलन बंद कर दें. मेरे अनुरोध को स्वीकार करते हुए उन्होंने सूचना दी है कि वे अपना आंदोलन बंद कर रहे है. मैं आभारी हूँ उनका कि उन्होंने मेरा अनुरोध स्वीकार किया.
वे जिस वेग से लिखते हैं वह तारीफे काबिल है. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में वे दुगने उत्साह से अपना तत्वचिंतन पाठकों के लिये प्रस्तुत करेंगे — शास्त्री
अंत भला सो सब भला.