अधिकतर चिट्ठाकार एक दम से कहेंगे कि अरे चिट्ठाकारी में रखा ही क्या है. लेख लिखो, छापते जाओ, बस हो गई चिट्ठाकारी. यदि यह आपका नजरिया है तो एक बात जान लें — जो चिट्ठाकारी को इतना आसान समझता है वह कभी भी उतने पाठक नहीं आकर्षित कर पायगा जितना उसे करना चाहिये. न ही उसे अपनी मेहनत का पूरा फल मिलेगा.
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किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिये अंतर्दृष्टि के साथ साथ मेहनत जरूरी है. यही कारण है कि हमारे एस एस पंडित जी की कचौडियां लोग ऊंगलियां चाट चाट कर खाते हैं लेकिन आसपास की दुकानों में मक्खियां भी नहीं भिनकतीं.
एक चिट्ठे की सफलता में बहुत से “मसाले” पडते हैं जिन में से एक है आपके चिट्ठे का “आवरण”. आपको मालूम होने चाहिये कि बहुत से आकर्षक आवरण या थीम फायरफाक्स में हिन्दी को पूरी तरह खंडित कर देते हैं. चूंकि आजकल जालजगत में लगभग 50% लोग फायरफाक्स पर आधारित ब्राउसरों का प्रयोग करते हैं अत: यदि आप ने अपने चिट्ठे को इस ब्राऊसर में नहीं जांचा है तो आप भारी गलती कर रहे हैं.
किसी भी आवरण को इंटरनेट एक्सप्लोरर में एवं फायरफाक्स में जांच कर देख लें कि अक्षर खंडित तो नहीं हो रहे हैं एवं दोनों में आपका चिट्ठा एकसमान आकर्षक लग रहा है क्या. यदि आज तक आप ने ऐसा नहीं किया तो हो सकता है कि आपको काफी नुक्सान हुआ हो. मुझे तो ऐसे कई हिन्दी चिट्ठे दिखते हैं जिनको मैं फायरफाक्स में नहीं पढ पाता, अत: छोड देता हूँ.
अगले लेख में आपके जानने लायक कुछ और बातें देखेंगे.
शास्त्री जी, मैं अकसर अपनी ही पोस्ट के शीर्षक को ही नहीं पड़ पाता–सब खंडित हो जाता है, ऐसा क्यों, कृपया इस पर भी प्रकाश डालें। निसंदेह इन ब्लागस में भी अपने सभी अनुभवों (खट्टे-मीठे दोनों) का मसाला डालने से ही हम अपनी बात किसी के दिल में उतार सकते हैं, नहीं तो सब कुछ कितना सुपरफिशियल सा ही लगता है
शास्त्री जी…आपके लेख ज्ञान से परिपूर्ण होते हैँ…
इनके लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ….
मुझे भी एक कठिनाई आ रही है कि फॉयर फॉक्स में मुझे हिन्दी पढने में कुछ व्याकरण की अशुद्धियाँ सी दिखाई देती हैँ। इस वजह से मुझे मजबूरन एक्सप्लोरर ही इस्तेमाल करना पढता है । इसका कोई उचित उपाय बताएँ …
मेरे साथ यह तकलीफ शुरु में हुई थी। मैं रेमिंग्टन की बोर्ड का प्रयोग करता था। इस का कोई इलाज नजर नहीं आया। फिर इनस्क्रिप्ट की बोर्ड का अभ्यास किया और उस से हिन्दी टाइप करने लगा। लगता है इस से अक्षर खंडित होने की समस्या तो हल हुई है।
मैं ने आप को टिप्पणी करते समय अपने यूआरएल को जांचा आप की बात सही है। पर गड़बड़ समझ नहीं आई। इस बार सीधे कॉपी करके पेस्ट किया। अब सही होना चाहिए।
वास्तव में लोगों की छोटी-छोटी तकनीकी समस्यायें हैं; जैसा ऊपरकी टिप्पणियों से स्पष्ट है। उन्हे एड्रेस करने का अच्छा काम आप कर रहे हैं।
क्या वाकई हमें रेमिंगटन की बोर्ड छोड कर बेसिक यूनिकोड कीबोर्ड सीखना चाहिए । क्या करें हमसे यह छूटता नहीं है और बेसिक की बोर्ड दिमाक में बैठता नहीं है फलत: बरसों से रेमिंगटन में चलते हाथ रेमिंगटन को ही भाते हैं । हमारा मानना है कि इसका कुछ तो तोड होगा, जुगाडों का देश है भारत ।
सही समस्या की ओर ध्यान खींचा आपने । हमने अपनी इस समस्या को रवि भाई से पूछकर सुलझा लिया है । लेकिन एक सूक्ष्म समस्या का निराकारण नहीं मिल रहा है । वो है अर्ध अक्षरों की समस्या । इस पोस्ट पर संजीव तिवारी की टिप्पणी में भी अर्ध अक्षर हलंत वाले आए हैं । फायरफॉक्स में हमारे सभी चिट्ठों पर ऐसा ही होता है । जबकि एक्सप्लोरर में नहीं । ओपेरा में भी यही हो रहा है । इसका निदान है क्या कोई । जैसा आधा क कुछ यूं दिखता है क् ।
जी सहमत. मैं इस बात का ध्यान रखता हूँ.
शास्त्री जी,इस ओर ध्यान दिलवानें के आभार।
सारथी को पुराने रूप में देखकर ख़ुशी हुई।
मैं इस चिट्ठे को माइक्रोसॉफ़्ट इंटरनेट एक्स्प्लोरर में देख रहा हूँ और कोई भी मात्रा या आधे अक्षर खंडित नहीं दिखाई दे रहे, यानी सब चकाचक है।
हो सकता है ये समस्या फ़ायरफ़ॉक्स में हो।
यह समस्या तो हमें भी दिखाई देती है. फायरफोक्स में हम अपने शीर्षक खण्डित देख पाते हैं. उपाय तो हमें भी चाहिए.