पुरुष क्यों स्त्रियों को ऐसा देखते हैं?

स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों के बहुत से कारण हैं एवं इस लेखन परंपरा में इन में से कुछ पर ही प्रकाश डाला जा सकता है, लेकिन उम्मीद है कि इनके द्वारा पाठकों को सोचने के लिये काफी बिंदु मिल जायेंगे.

abortion सामान्यतया स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले सारे अपराधों के लिये अकेले पुरुष को दोषी ठहराया जाता है. निश्चित ही जो पुरुष ऐसा अपराध करता है वह दोषी है. लेकिन इस तरह के अपराधियों की सोच को प्रभावित करने वाले कारकों को पहचाने बिना पुरुष के नजरिये को एकदम बदला नहीं जा सकता. इन में से कुछ कारक हैं:

1. लगभग 80% भारतीय नर बाल्यावस्था में अपनी मां, बुआ, एवं घर की बडीबूढियों के मूंह सुनता है कि बेटा बेटी एक समान नहीं हैं. बेटी एक भार है. उस बालक के मन के कोरे कागज पर स्त्री की क्या छवि अंकित होती है?

2. लगभग 80% भारतीय नर युवा होने पर मां, बुआ, एवं घर की बडीबूढियों के मूंह सुनता है कि परिवार के बडे बूढों द्वारा अब उसके लिये एक लडकी को नापतौल कर, मोलभाव करके, “लाया” जायगा. उस युवा के अचेतन मन में स्त्री के प्रति कितना आदर रह जायगा.

3. लगभग 80% भारतीय नर युवा होने पर मां, बुआ, एवं घर की बडीबूढियों के मूंह सुनता है कि शादी के पहले लडकी पुरुष द्वारा “अनुछुई” होनी चाहिये. लेकिन कुंवारे पुरुषों के कौमार्य के बारें में ऐसी जिद वह अपने बडे बूढों से नहीं सुनता. उस युवा के अचेतन मन में स्त्री के प्रति कितना आदर रह जायगा.

4. बहुत से आधुनिक परिवार गर्भवती स्त्रियों के गर्भस्थ शिशु के लिंग की जांच करके लडकियों की भूण-हत्या कर देते हैं. इसमें घर की वरिष्ठ स्त्रियों का हाथ बहुत अधिक होता है. इस हत्या को एक बहुत प्यारा सा नाम भी है: “सफाई”. मतलब कई परिवारों एवं उनके बडे बूढों के लिये एक कन्या भ्रूण की हत्या एवं एक फोडे की सफाई में कोई अंतर नहीं रह गया है. उस परिवार के युवा पुरुषों के अचेतन मन पर इसका क्या प्रभाव होता है.

कुल मिला कर कहा जाये तो पिछले सौ दोसौ साल से भारतीय समाज में स्त्री को एक “वस्तु” के रूप में देखा जा रहा है. बहुतेरे भारतीय परिवारों मे बहू पर सास द्वारा होने वाले अत्याचार (जिसके विरुद्ध परिवार की वरिष्ठ स्त्रियां आवाज नहीं उठातीं) भी इस नजरिये को पुरुष के मन में घर कर देते हैं कि स्त्री तो एक वस्तु मात्र है जिस पर किसी भी तरह का अत्याचार किया जा सकता है.

जब तक भारतीय समाज में व्याप्त इस नजरिये को जड से नहीं मिटाया जायगा तब तक स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों को मिटाया नहीं जा सकेगा.[Photograph, scalpel for abortion by Esther_G]

कल एक बहुत ही दिलचस्प लेख इंटरनेट के राजपथ पर हिन्दी
की झाँकी मेरी नजर में आया. एक छोटा सा लेख है लेकिन ताज्जुब
है कि संगीता पुरी जी ने कितने सारे हिन्दी चिट्ठाकारों को किस
खूबसूरती से अपने वाक्यों में जोड दिया है !!

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Author: Super_Admin

11 thoughts on “पुरुष क्यों स्त्रियों को ऐसा देखते हैं?

  1. स्त्रियों के प्रति पहले स्त्रियों का नजरिया बदलना स्त्री-पुरुष समानता का लक्ष्य प्राप्त करने की पहली सीढ़ी है। इस पर काम करने के बजाए सीधे पुरुषों पर टूट पड़ना और उस में समय नष्ट करना इस आंदोलन की सब से बड़ी कमजोरी प्रतीत होती है।

  2. इन सारी समस्यायों के जैव विकासात्मक पक्ष को भी समझना होगा कि आख़िर ये अनुचित[?] व्यवहार मानव के ‘सभ्य’ समाज मे अभी भी क्यों हैं ?व्यवहार विद और न्रिशास्त्री इनके हल मे दिन रात लगे हैं .कहीं यह सब प्रकृति की ही कोई अबूझ योजना तो नही है ?

  3. बेहतर शिक्षा और नारी का आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनना शायद मूल भूत आवश्यकता है एटीट्यूड बदलने में।
    ज्ञान जी ऐसा कहे तो सही ही मानना होगा वैस जो ये कहते है और जो ये मानते है उसमे बहुत अंतर है ।

  4. if we stop thinking about daughters as curse or boons and start accepting them as child/baby/human none os would be in any delimma . besides that its important to teach our daughters that they are born equals so that when these daughters become mothers they treat their daughters as equals . also its needed to give same importance and teachings to our son that we give to daughters

  5. पुरुष कोई biological disorder नहीं है। बदलाव परिवार से ही शुरू होना चाहिए और इनका विस्तार समाज तक होना चाहिए। मेरी समझ में स्त्रियों के लिए विचारों और निर्णय की स्वतंत्रता अब भी बहुत कम परिवारों में है।

  6. लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। बदलाव आ भी रहा है, लेकिन प्रक्रिया बहुत धीमी है। उम्मीद की जा सकती है कि लोग अपने सोचने का तरीका और नजरिया बदलेंगे।

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