[विचरोत्तेजक चिट्ठे] अभी काफी विषयाधारित एवं विषयकेंद्रित चिट्ठे बचे हैं, उन की चर्चा भी करूंगा, लेकिन बदलाव के लिये आज एक नजर “विचारोत्तेजक” चिट्ठों पर डालते हैं. ये चिट्ठे कई विषयों पर लेख प्रकाशित करते हैं. लेकिन इस वर्ग का हर चिट्ठा पाठक को सोचने के लिये मजबूर करता है. मेरी पसंद के लगभग 10 विचारोत्तेजक चिट्ठों में से आज प्रस्तुत हैं तीन. बाकी चिट्ठों के बारें में इस परंपरा में जरूर लिखूंगा.
चिट्ठों को सिर्फ वर्गीकरण के हिसाब से प्रस्तुत किया जा रहा है, न कि किसी तरह की वरीयता या पहलेदूसरे क्रम के आधार पर. कारण यह है कि इन में से हर चिट्ठा अपने आप में अनोखा है एवं किसी भी चिट्ठे की तुलना अन्य चिट्ठे से नहीं की जा सकती.
दीपकबापू कहिन. दीपक भारतदीप से मेरी ‘मुलाकात’ जालजगत में हुई. बातबात में पता चला कि वे तो मेरे ही शहर ग्वालियर के निवासी है. अब तो वे मेरे अनुज तुल्य हो गये हैं. दीपक न केवल जम कर लिखते हैं, बल्कि हर लेख के पीछे गहन चिंतन छुपा रहता है. कभी कभार ये विषय से हट जाते हैं, जैसे कि पुरस्कार आदि के समय हुआ था, लेकिन वह सिर्फ एक क्षणिक प्रक्रिया है. वे पुन: अपने गंभीर लेखन-मनन पर आ जाते हैं. उनका कोई भी पाठक उनके गहन चिंतन/मनन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता.
भारतीयम प्रोफेसर अरविंद चतुर्वेदी के चिट्ठे पर पहली बार मैं संयोग से पहुंचा था. पहले ही लेख में मुझे लगा कि यह व्यक्ति विषय को प्रेषित करने में दक्ष है. फिर उनका परिचय देखा तो एकदम शंकानिवारण हो गया. वे पेशे से अध्यापक हैं एवं स्पष्ट है कि पढाने में दक्ष हैं. उनकी कक्षा में बैठने का दैवयोग न मिल पाया, लेकिन यह चिट्ठा उस खामी को पूरी कर देता है. लिखते रहें अरविंद जी, बस इतना याद रखें कुछ रिटायर्ड अध्यापक लोग भी आपकी जालकक्षा में बैठे हैं.
परिकल्पना जालभ्रमण के दौरान रवीन्द्र प्रभात के चिट्ठे पर मैं पहली बार अचानक ही पहुंचा था. लेकिन उनके लेखन में जो चुम्बकीय आकर्षण था उस कारण मैं दुबारा गया. तब उनकी कविता आदमी भी ख़त्म हो गया और आदमीयत भी…..! ने मेरे मन पर ऐसा असर डाला किये उसे सारथी पर उनकी अनुमति के साथ प्रकाशित किया. इस कविता को जरूर पढें, आप कहेंगे कि आपके विचारों को उन्होंने मथ दिया. लिखते रहें!
पाठकगण कृपया इन तीनों चिट्ठों का पठन करें. आपकी सुविधा के लिये चुने हुए चिट्ठों की कडियां हर लेख में चिट्ठाचित्र के साथ दी जा रही हैं.
सारथी के चयन में ऐसे तो नहीं आ गये मित्र
बात में है दम इसीलिये तो आप छा गये मित्र
chaliye aapki pasand ke baare me pata chal raha hai.
आपकी पसंद देख कर अच्छा लग रहा है और कुछ नये चिट्ठों पर भी जाना हो रहा है जो हमसे छूट जाया करते थे..
आप सही लिख रहे हैं। इन ब्लॉग्स पर ऐसी सोच दीखती है कि मन आश्चर्य और प्रफुल्लता से भर जाता है।
sahi hai.
इन तीनों को तो हम भी पढ़ते है। आपका चयन अच्छा लग रहा है।
सही अभियान..बताते रहें अपनी पसंद..एक विश्लेषण मिल जाता है अगर ब्लॉग पहले नहीं देखा हो तो.
आपकी पसंद के चलते हमें भी कुछ और ब्लॉग्स के बारे में मालूम चलेगा जिन्हे नही जानते थे।
शुक्रिया
आपका ये कार्य सराहनीय है.
और हमेशा की तरह आपकी इस पोस्ट से भी कई जानकारिया इन चिट्ठों के बारे मे मिली.
सारथी जी आपका यह प्रयास प्रशंसनीय है.
दीपक भारतदीप
आदरणीय सारथी जी,
सच ही कहा गया है ,कि परिवार में वरिष्ठ अभिभावक के आशीर्वाद से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है उनकी नसीहतें जो हर क्षण उसे निर्विवाद बनाए रखने में मदद करती है !जब-जब आप मेरे ब्लॉग पर आए हैं मुझे सदैब ही आपका मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है , आपका स्नेह मेरे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है , यह विशलेषण जारी रहे , आभार !
शास्त्री जी , सच तो यह है कि अभी तक के आपके पसन्दीदा चिट्ठे हम लगातार पढ़ते आए हैं. मेरी पसंद के चिट्ठे 003 के तीनों चिट्ठे पढ़ते ज़रूर हैं लेकिन टिप्पणी शायद ही दी हो. कोशिश करेंगे कि टिप्पणी भी दें.
इन नए चिट्ठों से परिचय कराने के लिए धन्यवाद !
इतनी सरल हिन्दी ब्लॉगिंग !! मैं आज अंजाने मैं कुच्छ खोजता हुआ यहाँ पहुँच गया . ओर यह मेरा हिन्दी ब्लॉगगीग मैं पहला दिन है . मैं हिन्दी भाषा का स्मार्थक हूँ और मानता हूँ की हिन्दी ही संपूर्ण भारत को जोड़ने का एक मात्र साधन है. किसी भी देश, व्यक्ति, संस्कृति को गुलाम बनाया जा सकता है उसकी भाषा छीन्न कर. भारत को अंग्रेज़ो ने तो 15 अगस्त 1947 को छोड़ दिया था लेकिन अँग्रेज़ी ने आज तक नही छोड़ा. एक आम भारतीय शूद्द हिन्दी नही बोल सकता. हम आज भी गुलाम हैं, अग्रेज़ी के. ह्म्मे एक और स्वतंत्रता संगराम लड़ना होगा अपनी भाषा को स्वतंत्र करवाने के लिए.
और हिन्दी चिट्ठा उसी ओर एक कदम हो सकता है. जये हिन्दी.
सारथी जी इन चिठ्ठों पर मैं यदा कदा ही गयी हूँ अब नियमित जाने का प्रयास करुंगी…बताने के लिए धन्यवाद
ओह! तो अब सातवीं कड़ी का इंतजार करना है। अब मैं भी बेसबरी से इंतजार कर रही हूँ
आपका यह कार्य बहुत ही अच्छा है। इससे नए-नए चिटठों के बारे में जानने का मौका मिला है। बधाई स्वीकारें।
मैं सारथी जी की पारखी नज़र का प्रसंशक रहा हूं ,और समय समय पर कहता भी रहा हूं.
अब यही सब कहने में ,दिल में कुछ संकोच सा हो रहा है क्योंकि इस पसन्द की सूची में मेरे चिट्ठे का नाम भी शामिल है. कुछ और कहूंगा तो ठ्कुर सुहाती मानी जायेगी.
मैं सारथी जी के ज्ञान व विद्वता की ही नहीं ,उनकी लगन,निष्ठा ,धैर्य आदि अनेक गुणों से प्रभावित हूं.
सारथी जी, आपको मेरा चिट्ठा पसन्द आया ,मुझे खुशी हुई.
हां, कई माह पूर्व दी गयी आपकी सलाह ( कि मुझे लिखने में निरंतरता लानी चाहिये) पर्( प्रयास करने के बावज़ूद ),अमल नहीं कर पा रहा हूं. प्रयास फिर भी जारी है.
धन्यवाद.
आपका चयन बहुत अच्छा है शास्त्री जी