आज हम दतिया इलाके के एतिहासिक छायाचित्र खीचने गये थे, तो इस इलाके की एक घटना याद आ गई.
इस इलाके में अशिक्षा अभी भी बहुत अधिक है, खास कर स्त्रियों के बीच. लोग सोचते हैं कि पढालिखा देने से लडकियां परंपरागत कामों से जी कतराने लगती है.
इस इलाके में परिवार नियोजन वालों का बडा दबदबा रहा है. कुछ सालों पहले एक स्त्री छ बच्चे जनने के बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में परिवार नियोजन के लिये मदद लेने आई तो उन लोगों ने निरोध के काफी सारे पैकेट उसे पकडा दिये. यहां के गावों में ये मुफ्त में बंटते थे. सीनियर सिस्टर ने एक पैकेट खोल कर उस उपकरण को अपने अंगूठे पर पहना के दिखाया कि इसका सही उपयोग कैसे होता है. यह भी बता दिया कि हर बार एक नये उपकरण का उपयोग करना है एवं उसे अपने पति को “पहना” देना है.
चार महीने के बाद वह स्त्री रोती कलपती आई कि सब कुछ करने के बाद भी वह फिर गर्भवती हो गई है. काफी दुख एवं ग्लानि के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की सिस्टर ने सारा इतिहास पूछा कि हर बार एक नया उपकरण अपने पति को “पहना” देती थी क्या आदि. उसका हर उत्तर हां में था. बडा ताज्जुब था कि फिर गडबड कैसे हुई.
अचानक सिस्टर के दिमांग में एक विचार कौधा. उसने पूछा कि “कहां पहनाती थी”. वह बोली, “सिस्टर आपने जैसा अपने अंगूठे पर पहना कर मुझे दिखाया था उसी तरह हर बार मैं इसे अपने पति के अंगूठे पर पहना देती थी”.
अशिक्षा, तेरा नाम अज्ञान है !!
और पढ़े-लिखे, शहरों में आ बसे लोग लड़कियों को पढ़ाते तो हैं फिर उन्हें आगे करियर के लिए प्रेरित करने की बजाय मोटा दहेज देकर ब्याह देते हैं.
मेरे मुहल्ले में कई पोस्ट ग्रेजुएट्स दिनभर गेंहूं बीनने या कपड़े धोने जैसे कामों के अलावा कोई काम नहीं करतीं.
शास्त्री जी, हमारे यहां सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि शिक्षा से आशय सिर्फ़ डिग्री लेने तक ही सिमट कर रह गया है।जैसे कि साक्षर होने का मतलब सिर्फ़ दस्तखत करने से
shashtri jee,
dukh kee baat yahi to hai ki samaaj ke aadhe ang ko abhee tak hamne adhooraa hee rakha hua hai. kal se dekhiyegaa mahila diwas kee nautanki
कई पढ़े-लिखे भी ऐसी मूर्खता करते देखे सुने गए हैं फिर गाँव की अपढ़ स्त्रियों को क्या दोष दें !
संजीत त्रिपाठी जी ने ठीक ही कहा है कि -…..साक्षर होने का मतलब सिर्फ़ दस्तखत करने से…यह हमारे समाज की सबसे बड़ी बिडम्बना है !
बात सही है आज शिक्षा की आवश्यकता स्त्री को भी उतनी ही है जितनी की पुरूष को…