मेरे पिछले लेख में मैं ने मनुष्य की स्वाभाविक बर्बरता पर लिखना शुरू किया था. मैं ने यह कहने की कोशिश की थी कि यदि स्त्रियां स्त्रियों के विरुद्ध अपराध करना बंद कर दे तो समाज में क्रातिकारी परिवर्तन आ जायगा. लेकिन जब तक स्त्रियां अपनों के ही विरुद्ध कार्य करते रहेंगे तो पुरुष के स्त्रीविरोधी कार्यों पर नियंत्रण करना मुश्किल है.
इस लेख में केरल के सामूतिरी राजाओं की बर्बरता की चर्चा करना चाहता हूं. आज से कुछ सौ साल पहले केरल के उत्तर का काफी इलाका इनके आधीन था. आज जो प्रदेश “केरल” नाम से जाना जाता है यह बहुत छोटे राज्यों में बंटा हुआ था.
सामुतिरी राज में हर साल एक बडा मेला लगता था. इस मेले का मुख्य आकर्षण हुआ करता था “ममांकम”. इसमें अन्य राजाओं के सैनिक इस राज्य के सैनिकों को चुनौती देते थे. एक एक करके द्वन्द्व युद्ध होता था एवं पराजित सैनिक को मारकाट कर एक कुएं में फेक दिया जाता था.
यदि सामूतिरी के विरोधी का सैनिक विजयी हो जाता था तो द्वन्द्व खतम नहीं होता था, बल्कि सामूतिरी का अगला सैनिक पाले में उतर जाता था. यह क्रम तब तक चलता था जब तक सामूतिरी अपनी श्रेष्टता न साबित कर लेता था. कल मेरे बेटे आनंद की नजर में यह कुआ अचानक पड गया जब वह अपने साथी डाक्टरों से मिलने के लिये उत्तर केरल गया था. रात हो गई थी अत: चित्र, एकदम साफ नहीं है, लेकिन उपर के चित्र में आप इसकी रूपरेखा देख सकते हैं.
यह कुआं पांच भागों में बना है. सबसे नीचे के हिस्से में सिर्फ एक आदमी के लायक व्यास है. उसके ऊपर का हिस्सा कुछ और चौडा है, एवं सबसे ऊपर का हिस्सा लगभग 30 फुट या अधिक व्यास का है. जब एक हारे/अधमरे योद्धा को उपर से डाल दिया जाता था तो एक “फनल” मे बहते द्रव के समान फिसल कर वह सबसे नीचे हिस्से में जा कर हिलडुल न सकने वाले एक तंग हिस्से में जाकर रक्त स्खलन एवं दम घुटने के कारण मर जाता था. स्थानीय लोग कहते हैं कि कुएं के भीतर एक प्लेटफार्म पर एक हाथी खडा कर दिया जाता था जो अधमरे एवं उपर आने की कोशिश करने वाले योद्धाओं को कुचल कर निचले हिस्सों में भर देता था.
एक छोटे राज्य की “महानता” को दिखाने का क्या तरीका था यह!! मनुष्य के समान बर्बर प्राणी और कोई है क्या??
मानव में असुरत्व और देवत्व – दोनो की सम्म्भावनायें अनंत हैं।
सामन्ती समाज के इस तरह के अवशेष दुनियाँ भर के कोने कोने में मिल जाएंगे।
ज्ञान जी और दिनेश जी शत-प्रतिशत सहमति.
इतिहास की कब्रों में गडे इन निरर्थक मुर्दों को उखाड़ने से कोई लाभ भी नहीं है.
इतिहास बर्बरताओं से भरा है.
बर्बर..!!
मनुष्य मे बर्बरता भी चरम पर विकसित है ,इसे दबाये रखने के लिए ही ऋषियों मुनियों ने जाने कितने सुनहले नियम बनाए -उन पर कोई थोडा भी चले तो इस प्रवृत्ति की उग्रता कम हो जाय .मनुष्य दुनिया का सबसे क्रूरतम ,निष्ठुर प्राणी है -यह तो हमारी संस्कृति है जो इसे पराजित किए रहती है -उसका अंकुश कम हुआ की क्रूरता का दौर दौरा ……बात कुछ हजम हुयी शास्त्री जी ?
मुर्दे उखाड़े नहीं एक ऐतिहासिक बात पढी तो बताया की ऐसा भी होता था -हज़ार में एक घटना होती थी इतिहास बन जाती थी आज की बर्बरता के मुकाबले वह बर्बरता कुछ भी नहीं थी हजारों घटनाएं रोज़ हो रही है कोई इतिहास कहाँ तक लिखेगा
मनुष्य मे बर्बरता भी चरम पर विकसित है ,इसे दबाये रखने के लिए ही ऋषियों मुनियों ने जाने कितने सुनहले नियम बनाए -उन पर कोई थोडा भी चले तो इस प्रवृत्ति की उग्रता कम हो जाय .मनुष्य दुनिया का सबसे क्रूरतम ,निष्ठुर प्राणी है -यह तो हमारी संस्कृति है जो इसे पराजित किए रहती है -उसका अंकुश कम हुआ की क्रूरता का दौर दौरा…. [the last line of the my earlier reply to Shastree ji’s post is deleted though it was in a lighter vein only ; the comment is again being put afresh as above ]