कुछ दिन पहले मैं ने दुनियां के सबसे छोटे सिक्के! लेख में फानम (फणम, पणम) नामक सिक्के के बारे में बताया था. तमिल और मलयालम में पणम का मतलब होता है धन, एवं यह नाम वहीं से आया है. फणम दुनियां के सबसे छोटे सिक्के हैं.
फानम का प्रचार मैसूर से लेकर श्रीलंका तक था. 1600 से 1800 तक के नमूने मिल चुके हैं, लेकिन अनुमान है कि 1300 इस्वी से इनका निर्माण प्रारंभ हो गया था.
आज मैं ट्रावन्कोर (आजकल दक्षिण केरल) राज्य का फाणम आपकी जानकारी के लिये लाया हूँ. पिछले लेख में इनकी नापतौल न होने के कारण पाठकों को इनके बारे में सही अनुमान न लग सका था. हां ज्ञान जी ने जरूर अनुमान लगाया था कि ये गेंहूँ के दाने के तुल्य होंगे. वास्तव में इनका व्यास अशोकनगर के अच्छे किस्म के गेंहूं की लम्बाई के तुल्य, या कम, होता है.
इधर दिनेश जी ने आदेश दिया कि सही माप बताई जाय. अत: इस बार एक रुपये के नये सिक्के, एवं सेंटीमीटर के स्केल को भी साथ में लगा दिया है. उम्मीद है अब मित्रगण सही अनुमान लगा सकेंगे.
चूकि ये सिक्के इतने छोटे होते थे, अत: इन को सामान्यतया सिर्फ चांदी या सोने से ही निर्मित किया जाता था. लेकिन यदा कदा इनका निर्माण तांबे से भी हुआ है लेकिन वे इतने विरल हैं कि अभी तक मेरी नजर में नहीं आये हैं.
ऐसा अनुमान है कि विभिन्न प्रकार के जो फणम मैसूर से श्रीलंका तक बनाये गये थे उनकी संख्या 100 से 500 के बीच रही होगी. अब सिक्के इकट्ठा करने वालों के पास भी ये विरल होते जा रहे हैं, एवं अभी तक मेरी नजर में सिर्फ दस प्रकार के फणम आये हैं. इन में भी सिर्फ दो प्रकार के ही चित्र ले पाया हूँ. उम्मीद है कि कम से कम तीन और प्रकार के फणमों के चित्र इस महीने ले सकूंगा.
इस विषय पर कुल मिला कर सिर्फ एक पुस्तक मेरी नजर आया है, लेकिन वह भी एक जर्मन लेखक ने लिखा है. उम्मीद है कि जल्दी ही इस विषय पर मैं एक रंगबिरंगा एवं सचित्र, लेकिन मुफ्त ईपुस्तक लिख सकूंगा. इस दिशा में कार्य चल रहा है.
ओह! बहुत छोटे सिक्के हैं वाकई।
बड़ा गहरा शोध चल रहा है-बहुत नन्हें मुन्ने सिक्के हैं. सो क्यूट. 🙂
Quite interesting !
दूर की कौडी लाये हैं शास्त्री जी… क्या बात है…
अच्छी जानकारी. पणम से ही पर्ण शब्द बना होगा, पर्ण भी मूद्रा का ही नाम था.
कितना अच्छा होता भारतीय मूद्रा का नाम रूपैये के स्थान पर पर्ण जैसा होता तो हम अपने अतीत से जूड़े होते.
शास्त्रीजी बढ़िया शोध है। संस्कृत का पण्य शब्द कारोबार के सिलसिले में प्रयोग होता रहा है। पण्यशाला से ही बना पणसार और फिर पंसारी अर्थात कारोबारी। इस पर मैं शब्दों का सफर में पोस्ट लिख चुका हूं। पण् प्राचीनकाल में मुद्रा भी थी। द्रविड़ भाषा में यही फणम् है। मुंबई का पनवेल भी कारोबारी तट ही था इसी लिए पण्यवेला हुआ पनवेल। शब्दों के सफर पर इसी कड़ी में कुछ और भी आगे लिखूंगा।