मैं ने अपने कई चिट्ठों में अर्थलाभ के बारे में बताया था. कई चिट्ठाकारों का कहना है कि वे तो सिर्फ स्वांत: सुखाय लिखते हैं अत: अर्थलाभ-हानि से उनको कुछ लेनादेना नहीं है. मैं ने चिट्ठाकारी शौकिया शुरू की थी लेकिन आय से मुझे परहेज नहीं है. बल्कि मेरा मानना है कि आय तो आगे बढने में काफी प्रोत्साहन देता है.
पिछले 3 महीने से मैं हिन्दी एवं अंग्रेजी में आय की संभावनाओं पर अनुसंधान कर रहा था. अपने चिट्ठे पर भी तमाम तरह के विज्ञापन लगा करे देखे. कुल मिला कर मेरे निष्कर्ष निम्न हैं:
** गूगल विज्ञापन हिन्दी में आय का सबसे अच्छा जरिया है. अन्य कोई भी विज्ञापन इसके पास भी नहीं आ पाता.
** हिन्दी में विज्ञापनदाता अंग्रेजी की तुलना में कम है, लेकिन उनकी संख्या बढ रही है जो चिट्ठाकारों के लिये प्रोत्साहन की बात है.
** जिस दिन आपका चिट्ठा 200 से अधिक पाठक प्रति दिन आकर्षित करने लगेगा, उस दिन से आप का जेबखर्च निकलना शुरू हो जायगा.
** सन 2010 के अंत तक हिन्दी चिट्ठों पर पाठकों की संख्या, एवं हिन्दी पाठकों की क्रयशक्ति, दोनों ही, आज से लगभग दस गुना हो जायेंगे.
** विषयाधारित चिट्ठे अन्य चिट्ठों की तुलना में अधिक आय देते हैं.
** अत: यदि आप आय चाहते हैं तो आपको सन 2010 के लिये अभी से तय्यारी शुरू कर देनी चाहिये.
मेरे पुराने लेख:
एक हौसला बना आपको पढ़कर के.
आप ने बहुत सीधे सादे शब्दों में सब कुछ समझा तो दिया…अब देखना है कि हम कितना समझ पाते हैं। आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, शास्त्री जी, अगर लेखन से कमाई भी हो तो इस से काहे का परहेज़। आप इसी तरह बलागिंग से जुड़े हमारे सीधे सरोकार के विषयों पर भी अपनी रिसर्च जारी रखिये। मैं तो आप की पोस्ट देख कर यही सोचा करता हूं कि काश, मुझे भी ब्रीफ में अपनी बात कहना आ जाये। शायद, टाईम ही सिखायेगा मुझे भी यह सब कुछ !!
आप का विश्लेषण सही है, पर पाठकों की संख्या चिट्ठे की सामग्री, उस की गुणवत्ता और उपयोगिता पर ही निर्भर करेगी
शास्त्रीजी पोस्ट का शुक्रिया.
ये 200 पाठक से जेबखर्च के मसले को जरा और साफ करें। विजीटर या पेजलोड ?
हमारी एडप्लेसमेंट में गड़बड़ है या जेबखर्च का मतलब सिर्फ 2 रुपए की चाय 2 की मठ्ठी हर रोज भर है। 🙂
अच्छा है। हम भी इस इंतजार मे है।
shashtri ji, Namaste
jebkharch nikalne wali baat achhi lagi, par iska aasan tarika samjhaeye.
link bhijwaiye ya e mail par vistaar se
shesh shubh
–YM
२०१० तो लगभग आ ही गया है. सिर्फ़ डेढ़ वर्ष बाकी है. हमें तो लगता है अभी और समय लगेगा चिट्ठों से कमाई कहने लायक कमाई होने में. मगर वो बाद की बात है. पहले स्तरीय चिट्ठों की संख्या तो बढे. आज हिन्दी में कितने चिट्ठे हैं जिन्हें पोस्ट का शीर्षक देख कर नहीं बल्कि चिट्ठाकार का नाम देखकर पढ़ा जाता है? हमें तो पच्चीस तीस से अधिक नहीं मिले अभी तक. (आप निःसंदेह इनमें से एक हैं.)
मैं चिट्ठाकारिता महज सेवा और आत्म संतोष के लिए करता हूँ -पैसा कमाने की बात तो मेरे भेजे मे घुस ही नही रही है .पर जब आप जैसे सीनिअर लोग ऐसा कहते हैं तो मुझे विनम्रता वश यह सुन लेना चाहिए .
बहुत बढि़या रिसर्च है शास्त्रीजी.
लगता है मुझ जैसे आलसियों को भी तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.
आपका कोरियर आज भेज रहा हूं….
शास्त्रीजी, आज मैंने आपकी पिछली एक पोस्ट को आधार बनाकर एक पोस्ट तैयार की है. ज़रा देखिये तो!
और हाँ, मुझे भी कुछ जुगाड़ बताइये विज्ञापन का. तकनीक के मामले में मैं पैदल हूँ. मेरे चिट्ठे में कुछ तकनीकी फेरबदल की जरूरत दिख रही हो तो कृपया अवश्य बताइये.