मैं कई कारणों से पिछले दो महीने अपने लेखन में अनियमित हो गया था, लेकिन अब "घर वापसी" हो गई है. इन दो महीनों में अपने पापी पेट के लिये कुछ नये इंतजाम किये एवं एक नया विषय सीखा.
यह नया विषय है "भारतीय सिक्के". दर असल मेरे एक शिष्य उपाचार्य जिजो इसके लिये जिम्मेदार हैं. एतिहासिक स्थानों के चित्र खीचने के लिये वे मेरे साथ हर जगह जाते हैं. पिछले ग्वालियर यात्रा के दौरान उन्होंने अनुरोध किया कि भारतीय सिक्कों पर आधिकारिक रूप से लिखने के लिये मैं अपना मन बना लूँ क्योंकि यह अपने आप में असमान्य रूप से जटिल एक विषय है.
मुझे लगा कि "जटिल" इसलिये होगा कि पिछले 3000 सालों में भारतीयों ने 25,000 किस्म के सिक्के चलाये होंगे. लेकिन विषय प्रवेश के बाद पता चला कि भारत में कम से कम 100,000 किस्म के सिक्के ढाले गये थे, एवं यदि यह संख्या इससे भी अधिक हो तो कोई ताज्जुब नहीं है. मेरे अध्ययनों का फल जल्दी ही मुफ्त ईपुस्तकों के रूप में आने वाला है.
इन दो महीनों में ईपत्र एवं दूरभाष द्वारा जिन मित्रों ने मुझे प्रोत्साहित किया उनका मैं बहुत आभारी हूँ. जल्दी ही मैं आप सब के चिट्ठों पर आऊंगा जिससे आप लोगों के लेखों से कुछ सीख सकूँ.
हां मुझे एक नय "मित्र" मिल गये हैं जिनकी टिप्पणियां बहुत दिलचस्प हैं. इस में से आखिरी टिप्पणी इस प्रकार है
"जै जै ईसाईयत! अगर जरा भी शरम है शास्त्री तो पाठकों को बताओ कि ये सारे प्रवचन ईसाईयत से जुड़े हैं। पर खैर यह तुमारे धर्म का उसूल ही है, रोटी शीक्षा देकर लोगों का धर्म परिवर्तन कराना। और जिन्हें जरा भी भान ना हो उन्हें घुट्टी पिलाना। ध्यान रखो कि मेरी कमेट छपे न छपे तुम पर मेरी नजर है और जिस तरह यशवंत की भड़ासी असलियत खुली, तुमारी भी खुलेगी। सावधान रहो और जो ब्लाग के बारे में लिखते हो उतने तक ही सीमित रहो तो ठीक रहेगा।"
इन्हों ने अपना चिट्ठापता नहीं दिया है लेकिन ईपता है madharmi@gmail.com. मजे की बात यह है कि आजकल मैं जो कुछ भी लिख रहा हूँ उनको वह सब कुछ यही नजर आ रहा है. उम्मीद है कि यह टिप्पणी मेरे मित्रों को सोचने के लिये बहुत कुछ बातें प्रदान करेंगी.
पुनर्स्वागत है शास्त्री जी, सिक्कों के बारे में आपके संकलन निश्चित ही पठनीय होंगे। भुवनेश शर्मा जी से आपके बारे में पता चलता रहा। उम्दा लेखन करते रहें, हरेक की बात पर ध्यान देना जरूरी नहीं है… मुझे भी लोग “संघी” और हिन्दुत्ववादी कहते हैं…
चलिये जी; निन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय!
punah svaagat hai shaastriji.
आप के नए मित्र दया के पात्र हैं।
स्वागत है वापसी पर. 🙂
शास्त्रीजी,
प्रणाम ।
आपके ब्लागजगत में फ़िर से सक्रिय होने से अच्छे अच्छे लेख पढने को मिलेंगे ।
@सुरेश जी,
हमें किसी से कुछ नहीं सुनना, हमे तो पता है कि आप घोर कन्यूनिस्ट हो 🙂 खुश 🙂