मैं ने पिछले साल कुछ समय निकालकर समकालीन हिन्दी लघु कविताओं का एक विश्लेषण किया था. विश्लेषण का निष्कर्ष यह था कि हिन्दी चिट्ठाजगत में छपने वाले लगभग 20% बहुत ही उम्दा कोटि की होती हैं. ये कवितायें हृदय को छू जाती हैं एवं पाठक को एकदम खुशी, दु:ख, देशप्रेम, या तमाम अन्य भावों से उद्वेलित कर जाती हैं. इस तरह की काफी कवितायें हिन्द युग्म पर एवं कई व्यक्तिगत चिट्ठों पर देखे जा सकते हैं.
इन में से कुछ कविताओं को लेखकों की अनुमति से मैं ने सारथी पर प्रकाशित भी किया था. इतना ही नहीं बल्कि इस श्रेणी की बहुत सी कविताओं को "काव्य अवलोकन" में प्रस्तुत किया था एवं पाठकों ने उन कविताओं को बहुत पसंद किया था.
बाकी बचे 80% में से आधे (कुल कविताओं के लगभग 40%) रचनाकारों की रचनाधर्मिता कम एवं किसी भी तरह से कविता करने की इच्छा को दिखाते हैं. इनका विश्लेषण करने पर लगा कि इस तरह की कविताओं की रचना तो बहुत आसान है. बस आपको इसका मंत्र मालूम होना चाहिये. प्रस्तुत है इंस्टेंट कविता मंत्र नम्बर 1.
कविता की नायिका के रूप में स्त्री या प्रेमिका को ले लीजिये. उसके बाद निम्न भावनाओं को व्यक्त करने वाले कुछ अर्ध वाक्य एक के बाद एक पिरो दें (पूर्ण वाक्य न लिखें, क्योंकि वह तो गद्य हो जायगा, या आपकी पोल खुल जायगी).
- विरह
- वेदना
- अनिद्रा
- याचना
- प्रत्युत्तर
- संतृप्ति
लगभग दसेक कवितायें अपने चिट्ठे पर चला देने के बाद आप इन बिंदुओं में मनचाहे उपबिन्दु लगा कर लघुकाव्य से लेकर महाकाव्य तक के अनुभव से होके गुजर सकते हैं.
और भी कई मंत्र एवं उपंत्र हैं, लेकिन सिर्फ एक परेशानी है — इस तरह की कविताओं को पाठक के रूप में वे ही चिट्ठाकार मिलते हैं जो स्वयं की रचनाओं के लिये इस तरह के टोटके से आगे नहीं बढ पाते हैं.
शास्त्री जी,
प्रणाम |
इस विषय पर मैं पहले ही लिख चुका हूँ (गद्य और पद्य लेखन में कन्फ्यूजन )
http://antardhwani.blogspot.com/2007/10/blog-post_07.html
एक इंटर की आपके गद्य को पद्य में बदल सकती है 🙂
वैसे अब हम भी कविता जरूर लिखेंगे |