विष्ठा से क्यों डरे ??

लगभग दो महीने की अनुपस्थिति के बाद इस हफ्ते मैं जब हिन्दी चिट्ठालोक में वापस आया तो दो बातें एकदम से दिखीं जिनके कारण कई समर्पित चिट्ठाकार बहुत त्रस्त है:

1. कुछ चिट्ठाकार जम कर गंदगी फैला रहे हैं. हर जगह लीद कर रहे हैं.

2. कुछ चिट्ठाकार जानबूझ कर दूसरों के चिट्ठों पर अन्य चिट्ठाकारों के नाम से भद्दी टिप्पणीयां कर रहे हैं.

इन में से दूसरी बात पर अगले लेख में लिखूँगा, लेकिन अभी इतना बता दूँ कि अब दूसरे व्यक्ति के आईडेंटिटी का प्रयोग करना एक अपराध माना जाने लगा है एवं ऐसा करने वाले व्यक्ति को कडी सजा का प्रावधान हो गया है.

अब जरा एक नजर डालें उन चिट्ठों पर जो इन दिनों जम कर गंदगी फैला रहे हैं. कई लोगों ने लिखा कि वे इससे बहुत दु:खी हैं. यह अच्छी बात है. समाज के किसी भी तबके में मालिनता दिखे तो समाजप्रेमियों को दु:ख होना ही चाहिये. आखिरकार हिन्दी चिट्ठाजगत एक छोटा सा परिवार है जहां हम सब को एक दूसरे के सुख दु:ख का ख्याल रखना चाहिये. लेकिन मुझे अफसोस इस बात का है कि इस गंदगी के कारण कुछ अच्छे चिट्ठाकार चिट्ठाकारी से निराश होने लगे हैं. यह गलत है.

जब हम सडक चलते हैं, गलीकूचों में फिरते है, तो हर जगह मलिन चीजें पडी रहती हैं. इस कारण हम सडक या गली कूंचों से दूर नहीं रहते. हवा में उड कर उन स्थानों पर जाने की कोशिश नहीं करते. बल्कि कोशिश यह रहती है कि हमारे पैरों पर मैला न लगे.

जो गंदगी फैला रहे हैं उनको अपना काम करने दें. आप क्यों यह महसूस करते हैं कि आपको ये सारे चिट्ठे पढने हैं. हिन्दी में काफी सारे अच्छे, सशक्त, विचारोत्तेजक, एवं हर विधा में लिखे चिट्ठे मौजूद हैं. आप चाहें तो इन सब के लेख अब घर बैठे ईपत्र से प्राप्त कर सकते हैं. अत: चिट्ठों के बीच फिर कर अपना मन खराब करने की जरूरत नहीं है.

एक बात याद रखें: जब तक पृ्थ्वी पर मनुष्य का वास है, तब तक यदा कदा विष्ठा के दर्शन जरूर होंगे. जो मलिन है उसके प्रदर्शन में कुछ लोगों को बडी तृप्ति मिलती है.  लेकिन उसका मतलब यह नहीं है कि आप पलायन कर जायें.

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Author: Super_Admin

16 thoughts on “विष्ठा से क्यों डरे ??

  1. गुरूजी मैं भी बहुत दिनों के बाद आज ही पुनः प्रारंभ कर रहा हूं ,प्रणाम

  2. हिन्दी ब्लॉग दुनिया में यदा कदा ऐसे मौके आते रहते हैं यहाँ जम के गंदगी फैलाई गई ….. लेकिन इस बार मुझे एक बात अच्छी लगी वह यह की लगभग सभी समर्पित और वरिष्ठ ब्लोगरों ने अपने ब्लॉग या पोस्ट पर किसी न किसी तरह इस तरह ब्लोगरों को जम कर खरी खोटी सुनाई है. पिछले ३-४ दिनों की कई पोस्टों ने इनके विरुद्ध अच्छा खासा वातावरण तैयार किया है… शायद आइंदा इस प्रकार के गंदगी फैलाने या उसमें कूदने से पहले कई ब्लोगर एक बार विचार करें.
    आपका भी आभार.

  3. राइट यू आर, सर !
    यदि हम एकजुट हो इनको उपेक्षित करें, तो इनका मंतव्य भोथरा हो जाता है ।
    इनकी चर्चा कर के क्यॊं इनको लाइमलाइट में रखा ही जाये ? स्वाभाविक है,
    मन का खिन्न होना, किंतु पलायन करके तो हम पूरी संप्रभुत्ता इनकों ही सौंप
    देंगे । विष्ठा तो हम सब ही निकालते हैं किंतु इतना विवेक तो होना चाहिये कि
    यह सार्वजनिक स्थल पर न निकाला जाये ।
    सादर !

  4. आपने सही और सच्ची बात कही है. मेरा तो मूल मंत्र है – अच्छा देखिये, अच्छा पढ़िऐ, अच्छा लिखिए.

  5. पर गंदगी के बचने के अलावा उसे साफ करने की भी तो कोई जुगत होनी चाहिए.
    आखिर एक तरह से हमारा घर ही है ये ब्लॉग जगत.
    किर्तिश जी से सहमत हूँ. इसी तरह से इन्हे हम दरकिनार कर सकते हैं.

  6. चूंकि मैं भुगत चुका हुँ… मैं सहज नहीं हो पाता। कई बार लगता है छोड़ दूं ये सब ब्लागिंग-ब्लागिंग!
    दो साल पहले क्या यह सोचकर ब्लागिंग शुरु की थी कि आने वाले समय में गालियाँ बकी जायेगी इस माध्यम से?
    अत्यधिक निराश हूँ।

  7. कल समीर जी के आलेख पर उन की जैसी ही भाषा में मेरी टिप्पणी थी……
    उडन तश्तरी वाले समीर लाल जी। को दिनेसराय दुबेदी का कोटा हिन्दुस्तान से राम राम बंचणा जी।
    आगे समंचार ये है जी कि आप फिजूल ही दुखी व्हे रहे हैं जी। काहे की नजर जी, ये नजर वजर के अन्ध बिसवास आप भी पालते हैं क्या जी? हम कतई दुखी नहीं हैं जी। सब अपना अपना धरम निभाए जा रहे हैं जी। ब्लाग कोई मंदर या मसीद नहीं जी। ये तो जंगल है यहाँ सब तरह के जीव जन्तु हैं जी। कुछ पेड़ों पर बसते हैं, कुछ जमीन पर, कुछ दलदल में, कुछ कीचड़ में, कुछ जमीन के भीतर जी। जीने दो जी सब को क्यों परेशान हो रहे हो। सब अपनी अपनी नियति को ही जाएंगे जी। आप-हम तो अपना अपना धरम निभाते चलें यही बहुत है। दीप से दीप जलाते चलें जी। ये अँधेरे वाले कब तक टिकेंगे जी।
    चिट्ठी को तार समझना जी, औरजवाब देना जी।
    आज उन्हों ने जवाब शानदार दिया है।

  8. बिल्कुल ठीक कह रहे है आप.

    दिनेश भाई जी को जबाब पसंद आया तो जबाब देना सफल रहा. 🙂

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