कालेज जीवन में न केवल पाठ्यक्रम की पढाई हुई, बल्कि वास्तविक जीवन से संबंधित कई बातों को पास से सीखने का मौका मिला. इस में से एक पाठ यह था कि कोई व्यक्ति “धर्म” का आवरण ओढ ले तो वह धार्मिक या पवित्र नहीं बन जाता. लेकिन आजकल मैं नायकों की चर्चा कर रहा हूँ, अत: फिलहाल उस विषय की ही चर्चा करेंगे.
मेरा एक साथी पिक्चर देखने का बेहद शौकीन था. वह हमेशा एक ही बात दुहराता था “ही मेन तो हिन्दुस्तान में एक ही है, और वह है अमिताभ बच्चन”. सालों के बाद काऊंसलिंग का अध्ययन करते समय इस बात का विस्तार से विश्लेषण करने का मौका मिला तब निम्न प्रश्न मन में आये:
- क्या 60 करोड (तब की जनसंख्या) में एक भी असली पुरुष नहीं है
- क्या अभिनय आदमी को आदमी बनाता है, या उसकी अंतर्सत्ता उसे पुरुष बनाती है
- क्या कारण है कि महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल, हरगोविद खुराना, एवं होमी भाभा के देश में उसे एक अभिनेता के अलावा एक भी ‘असली’ पुरुष नहीं दिखाई दे रहा.
कथाकहानियां काल्पनिक होती हैं, लेकिन उनका असर वास्तविक होता है. उन में इतनी मनोवैज्ञानिक शक्ति होती है कि कहानियों में जिसे भी नायक दिखाया जाता है सुननेदेखने वाला उस पर लट्टू हो जाता है. उसका अनुकरण करता है. उसे अपनी आराधना का पात्र बना लेता है.
वेताल एवं मेंड्रेक (एवं उनके सहयोगी) उस समाज के नायक हैं जहां नीति एवं न्यास सबसे उन्नत स्थान पर है. जहां किसी पुरुष या नायक को उसकी नैतिक गुणवत्ता के आधार नायक माना जाता है, न कि ढिशुम ढिशुम करने के कारण, न कि बन्दूक लेकर सब को भून देने के कारण. ये नायक स्त्रियों को कभी भी वासनात्मक दृष्टि से नहीं देखते. कभी भी मद्यपान नहीं करते. वेताल जब दूध मांगता है तो लोग उसका मजाक उडाते हैं, लेकिन ली फाक उसे हमेशा वेताल की महानता के रूप मे दिखाना नहीं भूलता है.
यदि हम अपने बच्चों एवं नाती पोतों के लिये इस तरह के महान नायकों को मेहनत से ढूंढ कर नहीं निकालेंगे तो नायकों के बदले खलनायक उनका मार्गदर्शन करेंगे. सवाल यह है कि बच्चे और नातीपोते पैदा करने के बाद उनको नैतिक बर्बादी के लिये छोड देना है तो फिर आपके मेरे जीवन का मतलब क्या है.
सारथी जी, समाज के असली नायक तो अनाम से हैं। दो-चार के बारे में तो हमने ही पोस्टें लिखी हैं। पर बिकते नहीं वे ज्यादा।
ज्ञान जी से सहमत हूं..
बहुत से लोग है …जिन्हें पास से जीते लड़ते देखा है..हाँ आपके दोस्त का अमिताभ का भरम टूट गया होगा.
“यदि हम अपने बच्चों एवं नाती पोतों के लिये इस तरह के महान नायकों को मेहनत से ढूंढ कर नहीं निकालेंगे तो नायकों के बदले खलनायक उनका मार्गदर्शन करेंगे. सवाल यह है कि बच्चे और नातीपोते पैदा करने के बाद उनको नैतिक बर्बादी के लिये छोड देना है तो फिर आपके मेरे जीवन का मतलब क्या है.”
मैं आपसे सहमत हूँ महाशय.
बिल्कुल जी. आपसे सहमत हूँ.
निःसंदेह बाल-साहित्य की तरफ़ ध्यान दिया जाना बेहद ज़रूरी है। अच्छा एवं प्रेरणात्मक बाल-साहित्य बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये आरगैनिक उर्वरक जैसा काम करता है।
आप से पूरी तरह से सहमत हैं।
Mandrake ki comics padhiye yahan se..
http://rapidshare. com/files/ 118786030/ the_sinister_ bait__mandrake_ _.cbr
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🙂
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