प्यार की प्यास 002

“क्यों विजय, मैं ने सुना है कि तुम ने आज अविनाश को छेड दिया. सुनो, तुम नये नवेले अध्यापक हो. खून की गर्मी है. लेकिन अविनाश जैसे लोगों से पंगा लेना कोई अकलमंदी नहीं है. ऐसे लोगों को खामोखा छेड कर हम में सो कोई भी अपने बीबी बच्चों की जिंदगी खतरे में नहीं डाल सकता है”, निर्दयी लुहार के  घन के समान प्रिन्सिप‌ल साहब के ये शब्द विजय पर गिरे.

“तो क्या सर मैं ऐसे लोगों को नजर अंदाज कर दूँ और इसकी सजा उन सीधे साद विद्यार्थीयों को दूं  जो ईमानदारी और गुरू के प्रति आदर के साथ पढाई करते हैं? कदापि नहीं. आप जैसे अधिकारियों के कारण ही ये बदमाश आज शेर हो रहे हैं”, विजय एक सांस में बोल गया.

प्रिन्सिपाल सर का चेहरा तमतमा गया. अध्यापकों को लगा कि शायद प्रिन्सिपल का चश्मा इस गर्मी से पिघल जायगा. “सुनो विजय, आज तक किसी लेक्चरार ने मुझसे ऐसी बात नहीं की है. तुम्हारे सारे सीनियर अध्यापक चुपचाप बैठे हैं, लेकिन तुम धृष्टता से मुझे चुनौती दे रहे हो”.

बात और आगे बढ जाती, लेकिन जैसे ही विजय ने मूँह खोला वैसे ही भौतिकी के आचार्य ने टोक दिया. उनकी उमर, विद्वत्त, और सौम्य बोली के कारण कोई भी उनकी बात नहीं काटता था; प्रिन्सिपल साहब भी नहीं.

“सुनो विजय, यहां चर्चा कम हो रही है, और खून अधिक खौल रहा है. इसे हवा देना कोई समझदारी की बात नहीं है. तुम दोनों ही कुछ हद तक सही हो, पर काफी हद तक गलत भी हो. प्रिन्सिपल सर सही कहते हैं कि जबर्दस्ती का झगडा मत मोल लो, और तुम सही कहते हो कि अनुशासनहीनता क्षम्य नहीं है.  प्रिन्सिपल साहब का यह कहना सही नहीं है कि तुम आंख मूँद लो. लेकिन तुम्हारी यह सोच भी सही नहीं है कि हर समस्या को चुनौती से हल किया जा सकता है. विवेक से काम लो, और कोई ऐसा रास्ता ढूंढो कि खून भी न खौले, पर अनुशासनहीनता को प्रोत्साहन भी न मिले”, वे बोले.

हमेशा के समान प्रिन्सिपल साहब के पास आचार्य के इन तर्कों का कोई जवाब न था. विजय शांत एवं मौन रह गया. उसके जीवन में अब दो रणक्षेत्र हो गये थे — घर का एवं नौकरी का. सब के जाने के बाद भी वह बैठा रहा. आचार्य भी बैठे रहे. कुछ मौन के बाद हिचकिचाते हुए विवेक ने मूँह खोला:

“सर, मैं झूठ, दिवास्वप्न, और सीनाजोरी के साथ किसी भी हालात में समझौता नहीं कर सकता. इसे चाहे आप मेरा गुण कहें या मेरी कमजोरी, लेकिन यह स्वभाव अब हर जगह मुझे परेशान कर रहा है”.

“अरे विजय ये तो दिव्य गुण हैं. मानवों में इन्हीं गुणों के अभाव के कारण ही तो आज सारा समाज बर्बादी के कगार पर खडा है. लेकिन फिर भी एक बात है …”

“क्या बात है सर? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जिन गुणों को आप दिव्य कह रहे हैं उनको त्याग कर अपराध के साथ समझौता कर लूँ? क्या आप जैसा व्यक्ति भी …”

“नहीं विजय, कदापि नहीं. मैं तो तुमको सिर्फ इतना सुझाव देना चाहता था कि तुम जिन्दगी में हरेक व्यक्ति को जबर्दस्ती चुनौती देकर उसे सुधारने के बदले जरा सी सौम्यता और समझदारी से बात करके देखों”  विजय को यह बात समझ में नही आई अत: आचार्य बोले:

“अच्छा तो मैं जरा विस्तार से समझाता हूँ. अब अविनाश की ही बात ले लो. जब तुम्हें मालूम है कि वह अध्यापकों को बातबेबात पर चुनौती देता रहता है तो उससे कक्षा में सबके सामने जोरजबर्दस्ती करने के बदले पहले उससे व्यक्तिगत रूप से बात कर लेते तो बहुत अच्छा रहता.”

“पर सर, क्या अविनाश जैसे लातों के भूत भी क्या कभी बातों से मानते हैं?”

“विजय, सब तो नहीं मानते हैं, लेकिन मेरा अनुभव है कि जोर आजमाईश करने से पहले अन्य तरीकों को एक मौका देने में कोई बुराई नहीं है. अधिकतर फायदा ही होता है. ऐसे ही तो भौतिकी पढने वाले कई भूतों को मैं ने लातों कि बिना अपने काबू में किया है. हां, मैं मानता हूँ कि कई ऐसे हैं जो बातों से काबू में नहीं आते हैं. लेकिन एक कक्षा के अनुशासनहीन विद्यार्थीयों मे से जब काफी सारे लोग बातों से काबू में आ जाते हैं तब अध्यापक का प्रभाव काफी अधिक हो जाता है एवं बचे हुए थोडे से उद्दंड लोगों पर कडाई करना कुछ आसान हो जाता है.”

विजय चुप रहा. उसे यह सब बडा ही असह्य लग रहा था, लेकिन उसके सामने बैठे व्यक्तित्व को नकारना उसके लिये आसान नहीं था. तभी आचार्य फिर बोले:

“अरे हां विजय, तुम कुछ और भी कह रहे थे. तुम कह रहे थे कि तुम्हारे ये आदर्श तुम को हर जगह परेशान कर रहे हैं. उसका कया मतलब है?”

विजय पहले तो कुछ हिचका, लेकिन फिर आचार्य के प्रोत्साहन की मुद्रा देख कर बोला: “सर, … बात यह है कि मेरी पत्नी हमेश ही मुझसे कुपित रहती है.”

“क्यों भई क्या बात है? क्या इतनी जल्दी तुम लोगों का प्यार ठंडा पड गया क्या?” [क्रमश:]

[यह एक लघु कथा है, लेकिन जालजगत के हिसाब से एक दीर्घ कथा है.  चार या पांच हिस्सो में ही पोस्ट कर पाऊंगा. कई पाठक जो सोच रहे हैं, उसकी तुलना में  कथा अधिक जटिल है. कृपया मित्रगण टिप्पणी अभी न कर उसे अंत के लिये सुरक्षित रखें. तब आप एक विश्लेषणात्मक टिप्पणी दे दें तो मुझे आगे के लेखन के लिये फायदा होगा]

कहानी के पिछले भाग:
प्यार की प्यास 001

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Author: Super_Admin

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