यदि आप पहली बार यह कहानी देख रहे हों तो कृपया भाग 1 से पढना शुरू करें.
प्यार की प्यास 001
प्यार की प्यास 002
भाग 3:
नहीं सर बात यह नहीं है. मैं भावना से बहुत प्रेम करता हूँ. वह कहती है कि वह सिर्फ मेरे लिये जी रही है. स्पष्ट है कि हमारे प्रेम में आज भी उतना ही उत्साह है जितना हमारी शादी के समय था.
तभी स्टाफ रूम बंद करने के लिये चपरासी आ गया और दोनों को उठना पडा. कालेज के गलियारे किसी कब्रिस्तान से भी अधिक सूने हो रहे थे. विजय ने अपनी घडी देखी तो पता चला कि आज वापसी में कितनी देर हो गई है. अचानक वह किसी अनहोनी की कल्पना से सिहर गया. तुरंत ही आचार्य से विदा लेकर वह अपने स्कूटर पर तूफानी वेग से घर की ओर बढा. उस ने न तो उस बूढे को देखा जो मौत से बालबाल बच गया, न उन लोगों का चिल्लाना सुना जो कह रहे थे, “अरे हवाई जहाज उडाने का शौक था तो यह स्कूटर क्यों खरीदा.”
घर पर वही हुआ जिसका अंदेशा विजय को था. भावना घर का सारा कामकाज छोड कर सडक की ओर खुलने वाली खिडकी पर मूर्तिवत खडी थी. दूसरी मंजिल के इस फ्लेट से काफी दूर तक की सडक दिखती थी. सीढियां फालांगते हुए जैसे ही विजय अपने फ्लेट तक पहुंचा तो दरवाजा अचानक भडाक से खुल गया. “ऐसी जल्दी क्या है? पत्नी से प्यार था तो समय पर घर क्यों नहीं आ गये. मैं ने तुम से कई बार कहा है कि स्कूटर तेजी से मत चलाया करो, और सीढियों पर भी धीरे चढा करो. तुमको कुछ हो गया तो मेरा क्या …”
“पर भावना तुम जरा मेरी कठिनाईयों को समझने की कोशिश करो. यदि कालेज में अत्यावश्यक काम न होता तो मैं समय पर घर आ गया होता.”
“मुझे समझाने के पहले अपने आप को समझाने की कोशिश करो. विजय यदि तुमको मुझसे उतना ही प्यार होता जितना मुझे तुम से है तो तुम कभी के घर आ गये होते. बस मुझे अब कुछ और नहीं सुनना है.” क्रोध से कांपते हुए भावना वहां से अपने कमरे में भाग गई.स्
रात को टीवी पर एक बहुचर्चित कार्यक्रम आने वाला था. विजय को मालूम था कि कि भावना उस कार्यक्रम को देखना चाहती है. पन्द्रह मिनिट पहले ही उसने भावना को याद दिला दिया. विज्ञापन शुरू होते ही वह अधीर हो गया और फिर भावना को आवाज लगाई. “भावना, सुनो! वह प्रोग्राम शुरू होने वाला है. जल्दी से सारा काम छोड कर यहां आ जाओ”.
भावना अपना काम छोड कर टीवी देखने के लिये उठ रही थी जब उस ने विजय की पुकार सुनी, और उसका असर एकदम उलटा हुआ. “यदि मैं काम छोड दूगी तो उसे पूरा कौन करेगा? तुम को तो टीवी और अखबार के अलावा और कुछ भी नहीं सूझता. घर की फिकर हो तब न”.
कार्यक्रम इतना अच्छा था कि विजय ने बात अनसुनी कर दी. इस बीच बर्तन धोकर भावना सीधे बिस्तर पर जा लेटी. मन ही मन वह चाहती थी कि विजय उसे एक बार और बुला ले. उधर विजय उसे बुलाना चाहता था लेकिन वह यह सोचकर चुप रह गया कि कहीं फिरे से बखेडा ना हो जाये. कार्यक्रम खतम हुआ तो टीवी बंद करके विजय बिस्तर पर पहुंचा तो पाया कि भावना सिसक रही है. “मुझे लगा कि तुम को मेरा कुछ तो ख्याल होगा, पर मैं गलत थी. एक तो तुम कालेज से लेट आये, ऊपर से टीवी चालू करते ही मुझे भूल गये” उसने विजय को उलाहना दिया.
“लेकिन भावना, जरा कायदे की बात तो सोचो. जब एक बार बुलाने पर तुम न आई तो दुबारा बुलाने की क्या जरूरत है. ऊपर से अगला झगडा और चालू हो जाता.”
“झगडा, झगडा, झगडा!! सब कुछ शुरू तुम करते हो विजय और फिर प्यार के लिये कहती हूँ तो तुम कायदे, कानून, आदर्श, और सिद्धांतों का पहाडा सुनाते हो!” इसके साथ भावना ने चादर खीच कर अपने को ढांक लिया. उसकी सिसकियां और तेज हो गईं. विजय को भावना के आत्मविरोधी रवैये से बडी कुंठा हुई, लेकिन दिन भर की थकावट और परेशानी के कारण क्षण भर में वह निद्रा की गोद में समा गया.
सुबह नाश्तापानी के बाद वह कालेज पहुंचा तो वहां का नजारा देख कर चौंक गया. अविनाश के नेतृत्व में हडताल की घोषणा हो गई थी. इस बार हडताल के लिये कोई ठोस कारण नहीं था. इस कमजोरी को मन में रख कर अविनाश काफी जहरीले भाषण दे रहा था. स्टाफरूम में पहुंचने पर विजय को पहली बार बडा ही अकेलापन महसूस हुआ. आदर्शों के पालन के लिये इतने बडे कीमत की उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी. सारा स्टाफ उस से कट रहा था. प्रिन्सिपल साहब आग बबुले हो रहे थे. अविनाश से पंगा लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी. अचानक बाहर एकदम सन्नाटा छा गया. लाऊड स्पीकर बंद हो गया. विजय ने खिडकी से झांक कर देखा तो भौतिकी के आचार्य अपने स्कूटर से उतर कर अविनाश की ओर बढ रहे थे… [क्रमश:]
बहुत अच्छे प्रवाह के साथ बह रही है आपकी कहानी. जारी रहिये, हम अंत तक किसी तरह टिप्पणी रोके हैं. बधाई.
@समीर लाल
साफ साफ दिख रहा है समीर जी कि आप टिप्पणी रोके हुए हैं!!
aapne kal kyon nahi likha?
main to har din is kahani ka intzaar karta hun..
मौन हूँ.
आप का यह कथाकार रूप तो छुपा हुआ था। इस माध्यम से पाठक को बात आसानी से हृदयंगम होती है। आप कहानी में घर और काम के स्थानों के द्वंदों को बहुत सही निभा रहे हैं। अगली कड़ी की प्रतीक्षा है।
वाह शास्त्रीजी , दिलचस्प है ये रूप आपका।
कथानक और चरित्रों पर निगाह बनी हुई है…
कहानी नेचुरल तरीके से आगे बढ़ रही है .उत्सुकता बनी हुयी है .
अगला भाग जल्दी से लिखिये sir..
hi i am suraj yar me bahut udas reha hu sayd meri koi koi garlfrend nahi hai isli ya phir koi aacha sa dost nahi hai is liye merko samgh me nahi aata hai so pls helf may
hi i am suraj yar me bahut udas rehta hu sayd meri koi koi garlfrend nahi hai islye ya phir koi aacha sa dost nahi hai is liye merko samgh me nahi aata hai so pls helf may
suraj69165@yahoo.in