भारत के प्राचीनतम सिक्के 002

ईस्वीपूर्व 2000 के आसपास भारत दुनियां के सबसे धनी इलाकों में से एक था. यह इलाका कई राज्यों में बंटा हुआ था, लेकिन उन सब के बीच एक सांस्कृतिक एकता थी जैसे आज भारत में है. सोना/चांदी यहां इतना प्रचुर था कि ईस्वीपूर्व 300 से 1947 तक लुटेरे इसे लूटते रहे लेकिन मन न भरा. यदि लाखों शहीदों ने उनको भगाया न होता तो यह लूट आज भी चल रही होती.

इतना लुटने के बावजूद सोने एवं चांदी के इतने सिक्के लोगों के पास बचे हुए थे कि सरकारी स्वर्ण नियंत्रण से डरकर पिछले 60 साल से लोग इन सिक्कों को छुपा कर सुनारों को बेचते आये हैं. सुनारों के लिये सोने का सिक्क एक सांस्कृतिक विरासत नहीं, बल्कि सोने का एक और पिण्ड है अत वे इन सिक्कों को पिघालने के अलावा कुछ  नहीं कर पाये. (वैसे भी, न पिघालते तो धंधा कैसे करते).

ताज्जुब की बात है कि इस तरह 2300 साल तक लुटने एवं पिघालने के बावजूद आज भी हिन्दुस्तान में करोडों प्राचीन चांदी के सिक्के एवं लाखों पुरातन सोने के सिक्के बचे हैं. चांदी के सबसे पुरातन सिक्के “आहत सिक्के” कहलाते हैं जो कम से कम तीन तरह के होते हैं.

chandra_k1 
चंद्रगुप्त के काल का चांदी का आहत सिक्का
ashoka_k1
सम्राट अशोक के काल का चांदी का
आहत सिक्का
चित्र http://prabhu.50g.com/के सौजन्य से  

 

पहला प्रकार चपटा होता था एवं गोल, चौकोर, या किसी भी प्रकार के आकार का होता था. प्राचीन भारत में (600 ईस्वी पूर्व से 400 ईस्वी तक) इस इन सिक्कों का प्रचलन सबसे अधिक होता था. गोल  आहत सिक्कों को लकडी पर रख कर बीच में गोलाकार वस्तु से ठोक कर निर्मित किये गये हल्का गोलाई लिये सिक्के कुछ जगह चलते थे. इनकी संख्या बहुत कम रह गई है अत: आजकल  ये चित्र में दिखाये गये पहले किस्म के सिक्कों से अधिक महंगे बिकते हैं.

BentBar01 BentBar02 

गांधार इलाके के आहत चादी के सिक्के जो
सामान्य सिक्कों से 3 से 5 गुना भारी होते थे
Courtesy:
www.jbjcoins.dk

भारत के उत्तरपश्चिम का प्राचीन गांधार काफी संपन्न प्रदेश था अत: वे लोग तब प्रचलित चांदी के सामान्य सिक्कों की तुलना में अधिक भारी सिक्कों का प्रयोग करते थे. इनको भी आहत सिक्के कहा जाता है लेकिने ये सामान्य आहत सिक्कों से भारी एवं गोलाकार होते थे.

प्राचीन भारत की सांस्कृतिक, तकनीकी एवं आर्थिक संपन्नता की चर्चा करते ही कुछ अंग्रेज-भक्त एकदम से मूंह बिचकाने लगते हैं जैसे कि भारत हमेशा ही गरीब और कंगाल रहा हो. पहली बात वे यह भूल जाते हैं कि लुटेरे कंगालों को नहीं संपन्न लोगों को लूटते हैं. दूसरी बात, यदि 2300 साल लगातार युनानी, अफगानिस्तानी, अंग्रेज, डच, फ्रेंच, पुर्तगाली लुटेरों के हाथ लुटने के बावजूद यदि करोडों चांदी के सिक्के अभी भी बचे हैं तो जरा सोच कर देखें कि यह प्रदेश कितना संपन्न रहा होगा.

Share:

Author: Super_Admin

9 thoughts on “भारत के प्राचीनतम सिक्के 002

  1. सच है. प्राचीन भारतीय ज्ञान और सम्रद्ध परम्पराओं की अवहेलना दुखद है. बढ़िया आलेख.

  2. सही फरमाया आपने….पर आजकल की पीढ़ी को जो शिक्षा दी जा रही है वह केवल अपने राष्‍ट्र अपने लोगों से नफरत करना ही सिखा रही है

  3. ये “आहत सिक्के” आहत इसलिए कहे गए क्योंकि इन्हें “हत” यानि पीट-पीट कर चपटा कर के बनाया जाता था.
    आहत सिक्के न सिर्फ़ ठोंक कर ही बनाए जाते थे बल्कि वे
    १. सांचे में ढाल कर,
    २. धातु की चादरों को काटकर,
    ३. कुछ तो ठप्पे लगा कर भी बनाए गए मिले हैं. :}

  4. इन लुटेरों की बातें सोच कर तो आज भी मेरा खून उबलने लगता है, जो शायद अच्छी बात नहीं है पर फ़िर सोचती हूँ कि क्यों न उबले, भारत माता के आँचल से चुराए हीरे किसी दूसरे के माथे पर कैसे सुशोभित हो सकते हैं !!
    मुझे मेरा कोहिनूर वापस चाहिए.

Leave a Reply to mahendra mishra Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *