असीमित संभावना, असीमित उपेक्षा!!

हिन्दुस्तान को ओलिंपिक में जो पहला स्वर्ण पदक मिला है उसे पढ कर दिल को बडी तसल्ली मिली. लेकिन दु:ख भी हुआ. दु:ख इसलिये कि हर क्षेत्र में हिन्दुस्तान के समक्ष असीमित संभावनायें हैं, लेकिन आज मेरेआपके रक्षक ही भक्षक हो रहे हैं एवं देश की असीमित संभावनाओं को नष्ट कर रहे हैं.

चाहे पठनपाठन हो या खेलकूद, वैचारिक मंच, कला, संस्कृति, भाषा, तकनीकी, हर क्षेत्र में भारतीय बुद्धि अन्य कई देशों की तुलना में श्रेष्ठ है. लेकिन कोई भी श्रेष्ठ वस्तु तभी अपना हक पा सकती है जब कद्रदान उसे अन्य लोगों की नजर में लाये एवं उसे अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने का अवसर दे.

आज खिलाडियों को यदाकदा, भूलेभटके, चाहे कोई प्रोत्साहन मिल जाये, लेकिन क्रिकेट जैसे विलायती खेल को छोड कर किसी भी तरह के खेल को या खिलाडी को किसी भी प्रकार का नियमित प्रोत्साहन नहीं मिलता है. जीवित व्यक्तियों की मूर्तियां स्थापित करने जैसे बेकार के लाखों सरकारी प्रोजेक्टों में से एक के लिये जनता का जो पैसा लगाया जाता है उसे किसी एक खेल, कला, या विज्ञान पर खर्च किया जाये तो उस क्षेत्र के लोग आसमान छू लें. लेकिन ऐसे होता नही है. इसका कारण हैं मैं और आप.

जब हम गुलाम थे, पीडित थे, तब लोगों में देशप्रेम की भावना थी. आज रेलगाडी में बिनटिकट यात्री (राष्ट्रीय पैसे की चोरी करने वाले) पर जुर्माना होता है तो आसपास बैठे लोग रेलप्रशासन को बुराभला कहते हैं. लेकिन यदि मैं और आप पहले अपने आप को, फिर अपने परिवार को, मित्रों को, प्रेरित करेंगे तो समाज बदलेगा. कभी न कभी देशप्रेम की भावना लौटेगी. तब असीमित उपेक्षा असीमित संभावना में बदल जायगी.

Share:

Author: Super_Admin

5 thoughts on “असीमित संभावना, असीमित उपेक्षा!!

  1. आज जिसे भी किसी तरह की सफलता मिल रही है , उसके अपने प्रयास की बदौलत। सरकार या समाज से प्रोत्साहन की आप उम्मीद भी नहीं रख सकते हो। सही कहा , उपेक्षा ही उपेक्षा मिलती है , किसी नए क्षेत्र में कदम रखनवालों को।

  2. ” उपेक्षा ही उपेक्षा मिलती है , किसी नए क्षेत्र में कदम रखनवालों को. ” ग़लत बात है यह उपेक्षा तो फ़िर भी अच्छी चीज़ है, अगर पुराने क्षेत्र की बात ( क्रिकेट ) की बात करें तो क्या वहाँ मारा-मारी नहीं है !!
    क्यों सौरव वन-डे टीम में नहीं है !!

    यदि सचिन और सौरव उपेक्षित नहीं होते तो वापसी नहीं कर पाते.

    इस उपेक्षा ने ही नए नाम भारत को दिए हैं, जैसे – कर्नाम्माल्लेश्वरी, राज्य वर्धन, और अब अभिनव बिंद्रा. इसी उपेक्षा ने बहन सायना नेहवाल को यह अवसर उपलब्ध कराया है कि वह आज अपना और देश का नाम रौशन कर पाये, क्योंकि अब तक कोई दूसरा बैडमिन्टन के क्षेत्र में नाम ही नहीं है.
    उपेक्षा कमजोरों को मार हटाती है और पुरुषार्थियों को दूना जोश देती है. धन्य है यह उपेक्षित-प्रसूता धरती. जो अब न जाने कितने पुरुषार्थियों को जन्म देने जा रही है.

  3. आजाद हुए हैं हम,
    लेकिन अनुशासित नहीं।
    अर बात में अराजकता
    स्वेच्छाचारिता हमारी आकांक्षा हो गई
    सोच सामाजिक नहीं रह गई
    वैयक्तिक हो गई
    परिणाम हम रोज देख रहे हैं

  4. भारत में न तो प्रतिभा की कमी है न उसे दिखाने का माद्दा रखने वालों की. खिलाडि़यों के साथ जो होता है वह सब जानते हैं. अभिनव के पिता सक्षम थे तो उन्‍होंने करोड़ों रुपए खर्च कर उसे घर पर अभ्‍यास की सुविधा उपलब्‍ध कराई. सैकड़ो अन्‍य खिलाड़ी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गुमनाम ही रह जाते हैं. एक स्‍वर्ण पदक जीता तो उसे सम्‍मानित करने वालों का तांता लग गया लेकिन पहले जब वह अकेला संघर्ष कर रहा था तब कोई उसकी सुध लेने नहीं आया. हमारी सबसे बड़ी समस्‍या यही अवसरवादी प्रवृत्ति है.

Leave a Reply to महामंत्री-तस्लीम Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *