बचपन में "बालभारती" में हार की जीत कहानी पढी थी जो मेरे बहुत से पाठकों को याद होगी. लेकिन यह चिट्ठा उस कहानी के बारे में नहीं है. बल्कि यह उस राजा के बारे में है जो कई बार अपने दुशमनों से हारने के बाद आखिर उनसे बचकर भाग रहा था.
रास्ते में धूपबारिश से बचने एवं छिपने के लिये उसने एक गुफा में शरण ली. थकाहारा वह एकदम से पत्थरों की उस शैया पर लेट कर सो गया. उठने पर वह इस ऊहापोह में था कि वह छुप कर भागता रहे या युद्धक्षेत्र में वापस जाये. अचानक एक मकडी पर उसकी नजर गई जो अपना जाल बुनने की तय्यारी में थी. उस किस्म की मकडियां पहले चार से आठ मजबूत धागे इधरउधर खीच कर चिपका कर एक षटकोणनुमा ढांचा बना लेते थे एवं आगे की सारी बुनाई महीन धागों से इस षटकोण नीव पर की जाती थी.
मकडी की मुसीबत यह थी कि वह अपनी सामर्थ के बाहर बडा जाल बनाना चाहता था. इस कारण एक जगह धागे का एक सिरा चिपकाने के बाद उस धागे के दूसरे सिरे को काफी दूर स्थित दीवार पर चिपकाना चाहता था. अपनी पूरी शक्ति के साथ कूदने के बावजूद वह सामने की दीवार तक नहीं पहुंच पा रहा था. दसबीस बाद कूदने के बाद वह इतना पस्त हो गया कि वह काफी देर तक बिना हिलेडुले पडा रहा. राजा को लगा कि वह मर गया. लेकिन 5 मिनिट के विश्राम के बाद वह न केवल उठ खडा हुआ, बल्कि उसने स्थिति का मुआयना किया, एक नई जगह चुनी, एवं सारी शक्ति के साथ पुन: कूदा. इस बार वह सामने के दीवार तक पहुंच गया. इसके बाद उसका बाकी काम आसान हो गया.
तब राजा को लगा कि एक मकडी यह कर सकती है तो हाडमांस के मनुष्य को तो जरूर नये तरीके से एवं नये उत्साह के साथ कोशिश करनी चाहिये. वह तुरंत उठा, अपने बिखरे सैन्य को एकत्रित किया, सारे युद्ध तंत्र पर पुनर्विचार किया एवं विश्राम के बाद एक नये उत्साह के साथ युद्ध छेड दिया. इस बार वह जीत गया
यदि कोई व्यक्ति जीवन में सिर्फ सफलता ही सफलता चाहता है एवं निराशा की संभावना को नकारता है तो वह अज्ञानी एवं अंधा है. जैसे रात बिना दिन नहीं है एवं कडुवाहट बिना मिठास नहीं है, वैसे ही पराजय, निराशा, एवं हार के बिना सफलता, आशा, एवं आनंद नहीं है. जिस दिन हम यह समझ लेंगे उस दीन आशा का सूरज हमारे जीवन में चमकने लगेगा. [Pic By: yasmapaz & ace_heart]
मुझे भी यही लगता है कि, व्यावहारिक रूप से, जीवन संघर्ष है और निराश हो जाना ही मृत्यु!!
जीवन है ही संघर्ष से। प्रकृति तो जीवन और मृत्यु दोनों ही देती है। यह हम पर है कि हम जीवन को कब तक पकड़े रहते हैं।
जो लगा रहता है, विजय उसी को प्राप्त होती है. लक्ष्य पर ध्यान रखते हुए लगातार परिश्रम किया जाए तो कुछ भी मुमकिन है!
निराश होकर बैठ जाना हार मान लेना है, जबकि सतत प्रयत्नशील रहकर अपनी क्षमताओं का प्रयोग करने से सफलता का द्वार खुलता है।…उत्तम विचार। आभार।