यौन शिक्षा पर मेरे कई लेखों पर काफी सजीव चर्चा हुई थी एवं मैं उसके लिये पाठकों का बहुत आभारी हूँ. उन लेखों में मेरी स्थापना यह थी कि पश्चिमी अवधारणा पर आधारित यौन शिक्षा भारतीय समाज को बर्बाद कर देगी. कारण यह है कि पश्चिमी यौन शिक्षा सिर्फ यांत्रिक यौनक्रिया पर अधारित है. उसमें नैतिकता या जीवन के प्रति समग्र दर्शन का नितांत अभाव है. लेखों की सूची नीचे दी गई है.
यौन जीवन संबंधी भारतीय अवधारणा जीवन के प्रति समग्र दर्शन का हिस्सा है जहां काम जीवन का उतना ही महत्वपूर्ण हिस्सा है जितना पारिवारिक जीवन है. लेकिन पाश्चात्य माध्यमों के असर के कारण हम भारतीय अवधारणा को धीरे धीरे भूलते जा रहे हैं एवं काम को पवित्र स्तर पर रखने के बदले उसे पाश्विक स्तर पर उतार रहे हैं.
इसका एक उदाहरण है नई पीढी का भारतीय अश्लील साहित्य. कल तक का साहित्य जहां दो अपरिचितों के बीच आकास्मिक तरीके से होने वाले यौन संबंध तक सीमित था, वहां आज प्रचुर मात्रा में छापे द्वारा एवं अंतर्जाल पर उपलब्ध साहित्य हर तरह के मानुषिक संबंधों को तोड कर यौन संबंध स्थापित करने को एक सामान्य कार्य के रूप में प्रदर्शित करने लगा है.
उदाहरण के लिये इस नवसाहित्य में बहिन, भाभी, मौसी, बुआ, मां आदि को न केवल कामक्रिया के लिये उपयुक्त बताया जा रहा है, बल्कि नौजवानों को यह भी सिखाया जा रहा है कि परिवार कें अंदर (परिवार के सदस्यों के साथ) व्यभिचार करना आसान, सुरक्षित, चाहने योग्य, एवं बहुत सुरक्षित कार्य है. इसका परिणाम धीरे धीरे दिखने लगा है. परामर्शदाताओं के पास आने वाले लोग, एवं उनके पास पत्रों द्वारा पहुंचने वाले प्रश्नों में पारिवारिक स्तर पर होने वाले व्यभिचार, या उसके प्रयत्न, या उसके द्वारा उत्पन्न समस्याओं के हल का अनुरोध बढने लगा है.
पिछले लगभग 30 साल से मैं परिवार संबंधी परामर्श देता आ रहा हूँ. पिछले लगभग 6 सालों से DMOZ.Org नामक सर्च इंजन के लिये "यौनिक अपराध" विषय पर चौकन्नी नजर रखे हुए हूँ. इन कारणों से इस क्षेत्र में होने वाले बदलाव एकदम मेरी नजर में आ जाते हैं, एवं सारथी के मित्रों को याद दिलाना चाहता हूं कि आपके परिवार में एवं आपके बच्चों को किस तरह के साहित्य एवं जालस्थलों पर समय बिताने की आदत है इस पर सतत नजर रखना जरूरी है. नहीं तो फल घातक होगा, जिसके बारें में कुछ बातें आगे के चिट्ठों में देखेंगे.
बहुत सही कहा आपने शास्त्री जी. हकीकत यही है, फिर भी हम विरोध करना है के लिये विरोध तो करते हैं लेकिन असलियत स्वीकारने से डरते हैं. एक ओर हम मस्तराम को पढ़ते हैं दूसरी ओर सामने आकर उसका विरोध करते हैं. आखिर हम एक मुहिम चला कर क्यों नहीं इन जैसी अश्लील ब्लागों को फ्लैग करने का अभियान चलाते.
शास्त्री जी यह हरि अनंत हरि कथा अनंता जैसा ही अंतहीन विवाद है -यौन भावना मनुष्य की प्रबलतम जैवीय भावनाओं में से है -लाख जतन करो तब भी यह अपना आउटलेट खोज ही लेगी -इस पर शिक्षा आदि पैसे की बर्बादी है .
यौन शिक्षा का उद्देश्य ही यौन जिज्ञासा को भटकाव से रोकना होना चाहिए। इस के लिए एक सही दिशा में ले जाने वाली यौन शिक्षा जरूरी है। यह पारंपरिक अर्थात परिवार में ही प्राप्त हो सके तो सर्वोत्तम होगी।
मानसिक विकृति बहुत व्याप्त है। शायद सभी पीढ़ियों में है।