हिन्दी में चिट्ठाकारी एक नई विधा है अत: इस कारण प्रतिलिपि अधिकार या कापीराईट के बारे में लोगों में कई भ्रांतियां है. इन भ्रातियों के चलते कई चिट्ठाकारों को दिनरात इस बात की फिकर रहती है कि कहीं कोई उनकी मौलिक रचना चुरा न ले एवं इसके लिये वे तमाम कार्य करते हैं, लेकिन इसका परिणाम कई बार उलटा होता है.
कई चिट्ठाकार कापीस्केप की सदस्यता ले लेते हैं एवं उनका ऊपर दिखाया गया प्रतीक अपने चिट्ठे पर लगा देते हैं, एवं निश्चिंत हो जाते हैं कि अब कोई उनकी रचना की नकल नहीं कर सकता. लेकिन कुल मिला कर वे सिर्फ कापीस्केप की कीमत बढा रहे हैं क्योंकि अधिकतर मामलों में (गैर अंग्रेजी भाषाओं में) नकल को कापीस्केप पकड नहीं पाता. हां, आपकी मेम्बरशिप के कारण उनके डाटाबेस में एक नाम और जुड जाता है अत: फायदा सिर्फ उनको होता है. इतना ही नहीं, कापीस्केप किसी भी तरह की वैधानिक सुरक्षा नहीं प्रदान करता.
कुछ लोग कापीस्केप के साथ इस लेख में दिया दूसरा प्रतीक भी अपने चिट्ठे पर चढा लेते हैं. यह बडी विचित्र बात है क्योंकि इस प्रतीक का मतलब है: “आपको मेरे चिट्ठे पर छपी मेरी हर रचना की नकल करने की वैधानिक अनुमति दी जाती है”.
दोनों प्रतीकों को एक साथ लगाना कुछ इस तरह है कि एक ओर तो आप पोटेशियम साईनाईड निगल रहे हैं, दूसरी ओर आप अगले मिनिट मेराथन दौडने का इरादा रखते है. दोनों साथ साथ नहीं चलेंगे. चूंकि क्रियेटिव कामन्स एक वैधानिक नोटीस/अनुमति है, अत: कोई भी व्यक्ति आपकी रचना की नकल कर अपने चिट्ठे पर (आप का नाम हटाये बिना) छाप सकता है एवं न तो कापीस्केप आपकी मदद करेगा न कानून.
इन दिनों चिट्ठाभ्रमण पर निकला तो कई चिट्ठों पर इस तरह की गलती दिखी एवं उन सब को सूचित किया एवं उन में से एक चिट्ठाकार दंपति ने अनुरोध किया कि सबके लाभार्थ इस जानकारी को एक आलेख के रूप में छापा जाये. यदि आप उन लोगों में से है जो अपनी रचना की प्रतिलिपि का अधिकार दूसरों को नहीं देना चाहते तो कृपया क्रियेटिव कामन्स के प्रतीक को अपने चिट्ठे से हटा लें. लेकिन एक बात — यदि आप अन्य लोगों को वैधानिक अधिकार देंगे तो आपको ही फायदा होगा. कई स्थापित चिट्ठाकारों ने पाठकों को यह वैधानिक अधिकार दे रखा है जिन में रवि रतलामी, उन्मुक्त , एवं सारथी चिट्ठे उल्लेखनीय है. यदि स्थापित लेख अपनी रचना के नकल की अनुमति खुले आम दे रहे हैं तो बाकी लोगों को सोचना चाहिये कि जरूर ऐसा करने से सब का भला होगा.
मेरा एक सुझाव और है: कापीराईट (प्रतिलिपि अधिकार) पर काफी लेख निम्न 3 चिट्ठों पर उपलब्ध हैं. हर चिट्ठाकार को ये आलेख पढ लेने चाहिये.
महत्वपूर्ण जानकारी दी है। चिट्ठाकारों के लाभ के लिए।
जानकारी अच्छी है और मेरी नजर में दोनों ही मात्र नौटंकी…जिसे ले जाना होगा वो तरीका जानता है. हम आज तक ऐसा लिख ही न पाये कि कोई ले जाये तो नो फिकर दोनों आईकॉन से. 🙂
हमारा सामान्य ज्ञान बढ़ाने का आभार…।
वैसे हम तो वह दिन देखने के लिए बेताब हैं जब हमा्रा लिखा दूसरे लोग उठा कर ले जाँय, मेरे नाम से या अपने नाम से, जैसे चाहें खूब प्रसारित करें। मुझे अचानक कोई ऐसा प्रकाशन या प्रसारण दिख जाय तो मैं खुशी से उछल पड़ूँ।
…लेकिन पहले हम इस लायक तो बनें।
एक नौटंकी हमने भी चिपका रखी है। आज शाम उतार देंगे!
अगर आप अपनी महत्वपूर्ण कविताये, गीत, कहानी, कांसेप्ट, मूल प्रती के प्रिंट के ऊपर कापीराईट करना चाहते है तो बहुत ही कम शुल्क में फ़िल्म राइटर असोसिएसन में करा सकते है.
http://thefilmwritersassociationindia.com/
मैंने मुसाफिर हूँ यारों पर ये लगाया था सिर्फ प्रयोग के वास्ते ताकि अगर ऍसा होता है तो पता चले कि कितना उपयोगी है ये टूल। नीचे वाला symbol मैंने पहली बार देखा। अब आप कह रहे हैं कि ये हिन्दी भाषा के लेखों को नहीं पकड़ सकता तब तो इसकी उपयोगिता किसी भी केस में कम ही रह जाती है।
कापीराईट लीख कर ही ज्यादा अच्छा है। क्यो की कोई चूराता है तो हम अरूरोध के अलावा कूछ नही कर सक्ते।
अच्छी जानकारी दीये हैं।